मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के मैदान में आमने सामने तो बीजेपी और कांग्रेस हैं, लेकिन निशाने पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव आ रहे हैं - और सूबे के सियासत की आंच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक पहुंच रही है.
अखिलेश यादव और विपक्षी गठबंधन INDIA को लेकर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की दो बातें काफी महत्वपूर्ण हैं. ये कोई ज्यादा दिक्कत वाली बात नहीं है, लेकिन अखिलेश यादव के मामले में दिग्विजय सिंह की बात के भी दो मायने निकलते हैं.
दिग्विजय सिंह का कहना है कि अखिलेश यादव के लिए जो शब्द बोले गये, वे नहीं बोले जाने चाहिये थे. दिग्विजय सिंह की ये प्रतिक्रिया मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की एक टिप्पणी पर आयी है. अगर दिग्विजय सिंह ने ये बात बतौर कांग्रेस के सीनियर नेता कही है, जैसे INDIA गठबंधन को लेकर उनका बयान आया है, तो अलग मतलब समझा जाएगा, लेकिन ये उनकी निजी टिप्पणी है तो बात ही खत्म हो जाती है.
एक कार्यक्रम के दौरान कमलनाथ से जब अखिलेश यादव को लेकर सवाल पूछा गया था तो वो बड़े ही बेरूखे होकर बोले, छोड़ो भई अखिलेश-वखिलेश. जब इस बारे में अखिलेश यादव से पूछा गया तो उनका रिएक्शन था, 'ये बात तो ठीक कही उन्होंने... वखिलेश कौन है? अखिलेश तो हैं ना... अगर ये बातें कहेंगे तो समाजवादी पार्टी भी ऐसी बातें कह सकती है, लेकिन हम उन उलझनों में नहीं फंसना चाहते हैं... कमलनाथ जी से हमारे संबंध बहुत अच्छे हैं... नाम देखो उनका कितना अच्छा है... जिनके नाम में ही कमल हो तो वो वखिलेश ही कहेंगे. अखिलेश तो नहीं कहेंगे ना.'
असल में ये सारी बातें मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन को लेकर चल रही हैं. कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात पक्की न हो पाने के बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के 45 उम्मीदवार उतार चुके हैं. और वैसे ही नीतीश कुमार भी अब तक जेडीयू के 5 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर चुके हैं. कहते हैं कि जेडीयू की तरफ से दर्जन भर उम्मीदवार चुनाव लड़ने वाले हैं.
समाजवादी पार्टी को कांग्रेस हल्के में क्यों ले रही है?
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को लेकर दिग्विजय सिंह बताते हैं, 'कमलनाथ ने क्या कहा... मुझे नहीं पता, लेकिन किसी के बारे में ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिये. कमलनाथ ने मेरे पास एक टीम भेजी थी. बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि समाजवादी पार्टी चुनाव में छह सीटें मांग रही है. मैंने कमलनाथ को रिपोर्ट भेजी कि हम उनके लिए चार सीटें छोड़ सकते हैं. मैंने CWC की बैठक में केंद्रीय नेतृत्व से ये भी पूछा कि हमें INDIA गठबंधन के साथ क्या संबंध रखना चाहिये.' दिग्विजय सिंह के अनुसार, 'केंद्रीय नेतृत्व ने सब राज्य नेतृत्व पर छोड़ दिया है. INDIA गठबंधन लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ेगा, लेकिन राज्य चुनावों में हमारे पास अलग-अलग मुद्दे हैं.'
ये ठीक है कि राज्यों के मुद्दे अलग अलग है, लेकिन लंबे समय से अखिलेश यादव को लेकर राहुल गांधी का जो रुख सामने आया है, उसका सीधा असर INDIA गठबंधन पर पड़ना निश्चित है - और अगर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में विपक्ष एकजुट नहीं हो पाता तो देश के बाकी हिस्सों में साथ होकर भी कोई फायदा नहीं होने वाला है.
अखिलेश यादव को लेकर दिग्विजय सिंह ने जो बात कही है, एक ही साथ वो राहुल गांधी और कमलनाथ दोनों को कठघरे में खड़ा करती है. जिस लहजे में कमलनाथ ने अखिलेश यादव के सवाल पर प्रतिक्रिया दी है, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी भी अखिलेश यादव को करीब करीब उसी अंदाज में उनकी हदें समझा रहे थे.
क्षेत्रीय दल कांग्रेस के लिए कितने महत्वपूर्ण है, ये तो राहुल गांधी ने कांग्रेस के उदयपुर मंथन शिविर में उनकी विचारधारा पर टिप्पणी करके जता दिया था. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने साफ तौर पर यही समझाने की कोशिश की थी कि क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करना ही होगा. राहुल गांधी की इस टिप्पणी पर कर्नाटक से लेकर बिहार जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी.
मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव और नीतीश कुमार का कदम अगर बीजेपी को कंफ्यूज करने के लिए है, तब तो ठीक है - लेकिन अगर विपक्षी गठबंधन की रणनीति भी यही है, तो आगे की राह काफी मुश्किल नजर आती है.
अगर दिल्ली यानी प्रधानमंत्री पद का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता हुआ माना जाता है, तो ये भी मान कर चलना चाहिये कि विपक्षी गठबंधन INDIA के मामले में भी यही बात लागू होती है. ऐसे में समाजवादी पार्टी को हल्के में लेना राहुल गांधी के लिए बहुत भारी पड़ सकता है.
राहुल गांधी को अखिलेश यादव अब क्यों नहीं पसंद आते?
2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन का स्लोगना था - 'यूपी को ये साथ पसंद है.' ये साथ राहुल गांधी और अखिलेश यादव का ही था. दोनों नेता तब साथ साथ चुनावी रैलियां और रोड शो भी करते रहे. प्रियंका गांधी भी यूपी के लड़कों के साथ को काफी उत्साह भरी नजर से देख रही थीं.
माना जाता है कि तब प्रियंका गांधी वाड्रा ने ही दोनों दलों के बीच चुनावी गठबंधन कराया था. और ऐसा करने के लिए उनको डिंपल यादव की भी थोड़ी मदद लेनी पड़ी थी. फिर डिंपल यादव ने अखिलेश यादव को और प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी को गठंबधन के लिए मना लिया था. कांग्रेस ने मोलभाव करके काफी सीटें ले ली, लेकिन नतीजे आये तो बुरी तरह लुढ़क गयी.
अखिलेश यादव सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे थे, और उनको बड़ी उम्मीद थी कि उनकी साइकिल पर कांग्रेस का हाथ लग जाये तो वो आसानी से रफ्तार पकड़ लेगी. चुनाव बाद गठबंधन टूट गया. गठबंधन टूट जाने के कई कारण माने जाते हैं, जिनमें एक कारण ये भी कहा जाता है कि राहुल गांधी, अखिलेश यादव को भाव नहीं दे रहे थे.
2019 के आम चुनाव के लिए अखिलेश यादव ने मायावती के साथ गठबंधन किया, और गठबंधन से कांग्रेस को पूरी तरह दूर रखा गया. बस रायबरेली और अमेठी सीट पर कांग्रेस को बख्श दिया गया, फिर भी राहुल गांधी की हार के साथ कांग्रेस को अमेठी सीट गंवानी पड़ी थी.
राहुल गांधी को उनके सलाहकार क्या ये नहीं बताते होंगे कि अमेठी जैसा ही खतरा 2024 में रायबरेली सीट पर भी मंडरा रहा है - क्या अखिलेश यादव की मदद के बिना राहुल गांधी कांग्रेस गढ़ बचा पाएंगे? क्या अखिलेश यादव की मदद के बिना राहुल गांधी अमेठी में बीजेपी से बदला ले पाएंगे?
क्या कांग्रेस ने ये सोचा है कि अगर बीजेपी के साथ साथ कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली में समाजवादी पार्टी उम्मीदवारों से भी लड़ना पड़ा तो अंजाम क्या हो सकता है?
घोसी मिसाल तो कांग्रेस के लिए भी है
यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय समाजवादी पार्टी नेतृत्व को नसीहत दे रहे हैं कि मध्य प्रदेश में उसे वैसे ही सपोर्ट करना चाहिये था, जैसे कांग्रेस ने घोसी उपचुनाव में समर्थन दिया था. एक बात तो माननी पड़ेगी घोसी के साथ जितने भी उपचुनाव हुए थे INDIA गठबंधन बीजेपी पर भारी पड़ा था.
लेकिन क्या कांग्रेस को भी ये बात नहीं समझनी चाहिये कि घोसी मॉडल ही बीजेपी को शिकस्त देने का सबसे कारगर हथियार हो सकता है? फिर क्यों कांग्रेस ओबीसी और मुस्लिम वोट के लिए दर दर भटकने लगी है. महिला आरक्षण बिल पर ओबीसी के लिए अलग आरक्षण की मांग करना और अजय राय का समाजवादी पार्टी नेता मोहम्मद आजम खां से मिलना तो यही बता रहा है.
अजय राय का ये कदम और कमलनाथ के रिएक्शन का लहजा, क्या अखिलेश यादव को चिढ़ाने जैसा नहीं है? और क्या ये सब बगैर राहुल गांधी की मंजूरी के हो रहा है?
जो सलूक कांग्रेस नेता अखिलेश यादव के साथ कर रहे हैं, क्या समाजवादी पार्टी को ये सब अच्छा लगेगा? क्या राहुल गांधी और उनके सलाहकारों को ऐसी बातों की कोई परवाह भी है?
राहुल गांधी को ये नहीं भूलना चाहिये उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ा विपक्षी दल है, और उसके पास महज दो विधायक हैं. लोक सभा की बात करें तो समाजवादी पार्टी के पास अब सिर्फ 3 सीटें बची हैं. 2019 में समाजवादी पार्टी को 5 सीटें मिली थीं. कांग्रेस के पास तो एक ही लोक सभा सीट है. रायबरेली जहां से सोनिया गांधी सांसद हैं.
कांग्रेस नेतृत्व को ये भी नहीं भूलना चाहिये कि अखिलेश यादव और नीतीश कुमार में बहुत बड़ा फर्क है. ये ठीक है कि लालू यादव की पीठ पर हाथ रख कर सोनिया गांधी ने नीतीश कुमार को हाशिये पर पहुंचाने की पूरी कोशिश की है, लेकिन ये नीतीश कुमार ही हैं जो सबसे पहले अखिलेश यादव को यूपी में प्रस्तावित विपक्षी गठबंधन का नेता घोषित कर चुके हैं - और अखिलेश यादव भी राहुल गांधी को आंख दिखाने लगे हैं. कांग्रेस को अखिलेश यादव की तरफ से ये संदेश देना कि यूपी में तो सीट शेयरिंग का फॉर्मूला समाजवादी पार्टी ही तय करेगी, आखिर क्या है?
अजय राय अगर अखिलेश यादव को घोसी की नसीहत दे रहे हैं तो प्रियंका गांधी के जरिये ही सही, राहुल गांधी को भी ये संदेश जरूर देना चाहिये कि घोसी कांग्रेस के लिए भी मिसाल ही है. अजय राय शुरू से ही प्रियंका गांधी के गुड बुक में रहे हैं, उनके हाथों में यूपी की कमान सौंपे जाने के पीछे वही भरोसा भी है. राहुल गांधी तो 2022 में भी अमेठी तक ही सीमित देखे गये थे, 2024 में शायद अलग रुख अपनायें - लेकिन सौ बात की एक बात, अखिलेश यादव को नजरअंदाज करके यूपी में INDIA गठबंधन तो कभी नहीं खड़ा होना वाला है.