देश की राजनीति में धर्म चलेगा या जाति का दबदबा? समय समय पर ये सवाल भी उठता रहा है, और घुमा फिरा कर जवाब भी मिलता रहा है. राजनीति में वैसे भी कम ही ऐसे मौके होते हैं जब किसी सवाल का सीधा जवाब मिलता है.
मंडल बनाम कमंडल की लड़ाई में भी इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश हो चुकी है. बारी बारी दोनो के पक्ष में जवाब मिल चुके हैं - और एक जवाब तो यही है कि न मंडल, न कमंडल ये वक्त ही तय करता है कि हाथी नाव पर होगा, या नाव हाथी को नदी पार कराएगी.
बीते एक दशक से भारतीय राजनीति में धर्म का ही बोलबाला महसूस किया गया है, लेकिन अब वही राजनीति जाति की तरफ जाती हुई प्रतीत हो रही है. बीजेपी के लिए ये बहुत ज्यादा परेशान करने वाली बात है.
तभी तो संघ ने अनुसूचित जाति और जनजाति से जुड़ाव बनाये रखने के लिए धार्मिक सम्मेलन का प्लान किया है. और ये बीड़ा थमाया गया है सबसे विश्वसनीय संगठन विश्व हिंदू परिषद को. वही विश्व हिंदू परिषद जिसने हिंदुत्व की राजनीति को ऐसी धार दी कि बीजेपी सहयोगी दलों के साथ केंद्र सत्ता से बाहर होने के बाद फिर से काबिज हो गई - लेकिन अयोध्या में राम मंदिर बनते ही, हालत ये हो गई जिसकी उस खेमे में कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी - लोकसभा चुनाव में बीजेपी अयोध्या ही हार गई.
बीजेपी को अयोध्या हराने वाले INDIA ब्लॉक की असली ताकत राहुल गांधी को तभी महसूस हुई जब 4 जून, 2024 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आये - और फिर वो सारी भूल-चूक-लेनी-देनी को दरकिनार कर वो मिशन को पूरा करने निकल पड़े हैं.
ये तो ऐसा लगता है जैसे राहुल गांधी भारतीय राजनीति में अपना इकिगाई (IKIGAI) मिल गया हो - और ऐसे दौर में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या बीजेपी में भी ये बात महसूस की जा रही है?
मजाक का दौर खत्म, गंभीर होने का वक्त है
बीते एक दशक में बीजेपी ने राहुल गांधी का जीना हराम कर रखा है, ये तो पूरा गांधी परिवार मानता है. 2014 में कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसल जाने के बाद राहुल गांधी को वे सारे दिन, और रातें भी देखनी पड़ीं जिनके बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. मां सोनिया गांधी के साथ कोर्ट में जाकर जमानत कराने से लेकर, प्रवर्तन निदेशालय के दफ्तर जाकर अफसरों के सामने पूछताछ के लिए पेश होने तक. कुछ देर के लिए तो गिरफ्तारी तक का खतरा भी मंडराने लगा था.
राहुल गांधी लगे रहे. अपने हिसाब से अपनी लड़ाई लड़ते रहे. एक एक करके सारे ही हथियार नाकाम होते जा रहे थे, लेकिन बंदा चलता रहा. लंबी भारत जोड़ो यात्रा के बाद, एक और न्याय यात्रा भी पूरी की. तब भी जबकि ज्यादातर गठबंधन साथी नाराज हो गये. नीतीश कुमार ने तो साथ ही छोड़ दिया.
ब्यूटी कॉन्टेस्ट में राहुल गांधी के जातीय ऐंगल खोजने को लेकर बीजेपी नेता मजाक उड़ा रहे हैं. 'पप्पू' वाली बातें 'बालक बुद्धि' पर आ चुकी हैं, लेकिन राहुल गांधी को अब ऐसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. बिलकुल वैसे ही जैसे संसद में अनुराग ठाकुर की बातों से बेअसर रहे थे. अनुराग ठाकुर का कहना था, जिनकी जाति का कुछ पता ही नहीं है वो भी जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं.
मिस इंडिया में जाति का सवाल पूछने वाले राहुल गांधी के बयान पर केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू कहते हैं, 'राहुल मिस इंडिया में भी आरक्षण चाहते हैं... बाल बुद्धि मनोरंजन के लिए अच्छी हो सकती है, लेकिन राहुल अपनी विभाजनकारी बातों से पिछड़े समुदायों का मजाक न उड़ायें... मिस इंडिया, ओलिंपिक के लिए एथलीट या एक्टर सरकार नहीं चुनती है.
बिलकुल सही बात है. किरेन रिजिजु का भले ही ये राजनीतिक बयान हो, लेकिन वो सीधे सपाट शब्दों में ही अपनी बात कह रहे हैं. लेकिन क्या वो राहुल गांधी की गंभीरता को समझ पा रहे हैं. राहुल गांधी जातीय राजनीति के असर को जो दूर तक देख चुके हैं, क्या किरेन रिजिजु और अनुराग ठाकुर से इतर भी बीजेपी नेता उस बात को समझ पा रहे हैं?
प्रयागराज में 'संविधान का सम्मान और उसकी रक्षा' कार्यक्रम में हिस्सा लेते वक्त राहुल गांधी सवाल उठाते हैं, मैंने मिस इंडिया की लिस्ट चेक की... इसमें कोई दलित, आदिवासी या ओबीसी महिला नहीं थी... प्रधानमंत्री कहते हैं कि देश सुपर पावर बन गया... कैसे सुपर पावर बन जाएगा, जब 90 फीसदी लोग सिस्टम से बाहर बैठे हैं.
ये बात राहुल गांधी ने कोई पहली बार नहीं कही है. संसद का विशेष सत्र बुलाकर जब महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया था तब भी राहुल गांधी ने ऐसी बातें की थी. राहुल गांधी ने तब केंद्र सरकार में तैनात ओबीसी सचिवों की संख्या का मुद्दा उठाया था - और वैसे ही बजट सत्र में हलवा बनाये जाने को लेकर भी सवाल खड़ा किया था.
राहुल गांधी की मंशा तो बीजेपी के रणनीतिकारों और सलाहकारों को तभी समझ लेनी चाहिये थी, जब राहुल गांधी महिला आरक्षण के मामले में अपने ही पुराने स्टैंड से यू-टर्न ले लिया था. जिस मुद्दे पर मुलायम सिंह यादव और लालू यादव की पार्टियों के विरोध के चलते कांग्रेस चाह कर भी महिला बिल नहीं पास करा सकी, उसी मुद्दे पर खुद राजी ही नहीं हुई, बल्कि ओबीसी महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की मांग नये सिरे से शुरू हो गई.
अगर अब भी किरेन रिजिजु और अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं को राहुल गांधी कास्ट पॉलिटिक्स के दूरगामी नतीजे नहीं समझ में आ रहे हैं, तो ये बीजेपी के लिए चिंता की बात होनी चाहिये.
बीजेपी ही नहीं, खतरा औरों पर भी है
बीजेपी को ये बिलकुल नहीं भूलना चाहिये कि जातीय जनगणना के मुद्दे पर उसके एनडीए साथी चिराग पासवान भी राहुल गांधी के साथ ही खड़े नजर आ रहे हैं. बीजेपी को 2018 का वो वाकया भी याद कर लेना चाहिये जब एससी-एसटी के मुद्दे पर चिराग के पिता रामविलास पासवान भी ऐसे ही डट कर खड़े हो गये थे.
ये तब की बात है जब कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव चल रहे थे. 21 मार्च, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट, 1989 के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्टा फैसला था कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम प्राधिकारी की इजाजत के बाद ही हो सकती है - सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ तब दलित समुदाय की तरफ से 'भारत बंद' भी बुलाया गया था, और बंद के दौरान हुई हिंसा में दर्जन भर लोगों की मौत भी हो गई थी.
राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव के बीच ही कांग्रेस नेताओं से ये मुद्दा उठाने को कहा. कांग्रेस तत्काल प्रभाव से दलितों के पक्ष में खड़ी हो गई. रामविलास पासवान सहित एनडीए के दलित सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास चले गये - और सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार ने बदल डाला. ऐसा ही उदाहरण एक बार फिर हाल ही में देखने को मिला जब एससी-एसटी आरक्षण में सब-कोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है.
बीजेपी कैसे भूल जाती है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण को लेकर एक बयान से 2015 के बिहार में हार का मुंह देखना पड़ा था. और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी तो बीजेपी के खिलाफ संविधान बदल कर आरक्षण खत्म करने की आशंका वाला नैरेटिव चला ही दिया - और बीजेपी को यूपी में 33 सीटों पर सिमट जाना पड़ा.
ध्यान दें, तो राहुल गांधी की जातीय राजनीति के निशाने सिर्फ बीजेपी नहीं है, बल्कि वे सारे ही राजनीतिक दल हैं जिनकी कास्ट वोट बैंक से ही डायनेस्टी पॉलिटिक्स चलती है. अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव के साथ साथ चिराग पासवान के भी सुर में सुर मिलाने की सबसे बड़ी वजह भी यही है.
जब कांग्रेस में संगठन का चुनाव चल रहा था तो शशि थरूर ने मल्लिकार्जुन खरगे को चैलेंज किया था. वो चुनाव तो हार गये, लेकिन शशि धरूर ने तब एक बहुत बड़ी बात कही थी. शशि थरूर का कहना था कि कांग्रेस को अपने कोर वोट बैंक के पास जाना चाहिये - और रूठे हुए को मना कर वापस लाना चाहिये. हो सकता है तब शशि थरूर की बातों को अन्य कांग्रेस नेताओं ने हवा में उड़ा दिया हो, लेकिन राहुल गांधी के मिशन मे तो लगता है कि शशि थरूर के सुझाव को गंभीरता से लिया गया है.
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी कई बार क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को लेकर बयान दिये थे, जिस पर काफी कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी. हालांकि, पहली बार राहुल गांधी ने ये बात उदयपुर के चिंतन शिविर के दौरान कही थी. राहुल गांधी का मानना है कि विचारधारा की लड़ाई देश में सिर्फ कांग्रेस और बीजेपी जैसे राजनीतिक दल ही करते हैं, बाकी क्षेत्रीय दलों के पास विचारधारा जैसी कोई चीज नहीं होती.
देखा जाये तो राहुल गांधी अब उस मिशन पर निकल चुके हैं जिसके निशाने पर पहले बीजेपी और फिर बारी बारी वे सभी राजनीतिक दल आने वाले हैं जिनकी राजनीति सिर्फ अपनी बिरादरी के बूते फलती फूलती आई है.
राहुल गांधी का मिस इंडिया के मामले में भी जातीय ऐंगल ढूंढ लेना यूं ही नहीं है. राहुल गांधी अपने वोटर तक अपना संदेश अच्छी तरह पहुंचा रहे हैं - और राहुल गांधी का वोटर धीरे धीरे मानने लगा है कि कोई तो है जो उनकी बात उठा रहा है. बिहार की राजनीति में लालू यादव को सोशल जस्टिस का पुरोधा माना जाता है.
जैसे बिहार में आरजेडी का वोटर कहता है कि सड़कें भले न बनवाई हो, विकास भले न किया हो लेकिन लालू यादव ने समाज में वंचित तबके को जो इज्जत दिलाई है, वो सबसे बड़ी बात है - और राहुल गांधी भी राजनीति की उसी राह पर फिर से चल पड़े हैं. राहुल गांधी की न्याय यात्रा को लेकर उनका वोटर मान कर चल रहा है कि देर हो सकती है, लेकिन अंधेरा खत्म होकर रहेगा. ये बात कांग्रेस पर भी लागू होती है.