पहले तो देश का ज्यादातर वोटर कांग्रेस के साथ ही जुड़ा हुआ था. करीब करीब हर तबका, हर वर्ग. हर धर्म के लोग. हर जाति के लोग, लेकिन धीरे धीरे एक एक करके वे अलग होते गये. 2014 में बीजेपी के केंद्र की सत्ता पर दोबारा काबिज होने के बाद से कांग्रेस पिछले दस साल से सत्ता से बाहर है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हार का दुख तो 2014 में भी हुआ होगा, लेकिन 2019 की चुनावी हार उनके लिए बड़ा सदमा थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने के लिए राहुल गांधी ने 'चौकीदार चोर है' का नारा दिया था, लेकिन हार के बाद वो कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी से भी तौबा कर बैठे.
अमेठी लोकसभा सीट से खुद भी हार गये, लेकिन मन की बात जबान पर तब आई जब केरल विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. तब राहुल गांधी ने एक बयान से उत्तर और दक्षिण भारत के लोगों की राजनीतिक समझ को लेकर नई बहस छेड़ दी थी.
2019 के बाद से राहुल गांधी अपनी तरफ से कांग्रेस को खड़ा करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, और लोगों से जुड़ने के लिए भारत जोड़ो यात्रा भी कर रहे हैं - लेकिन न तो विपक्षी दलों के नेता कांग्रेस के साथ हो पा रहे हैं, और न ही देश के लोग.
और पूरे देश के लोगों की बात कौन कहे, जब अमेठी के लोग ही राहुल गांधी से मुंह फेर लेते हों. मुश्किल तो ये है कि राहुल गांधी की गतिविधियां लोगों को कांग्रेस के करीब लाने की जगह राहुल गांधी से भी दूर करती जा रही हैं - और न्याय यात्रा के तहत रायबरेली पहुंचे राहुल गांधी ताजा दौरे के बाद भी लोगों की नाराजगी की बातें सुनने को मिल रही हैं.
रायबरेली का ये वाकया बहुत कुछ कहता है
अमेठी लोकसभा सीट पर फतह के बाद बीजेपी की नजर रायबरेली पर जा लगी है. ऐसे में कांग्रेस की चुनौती रायबरेली पर काबिज रहते हुए अमेठी को फिर से हासिल करने की है. पांच साल में फर्क ये आया है कि अमेठी में मजबूती से डटी रहने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अब वहां अपना घर भी बनवा लिया है, और रायबरेली को सोनिया गांधी अलविदा कह दिया है. सोनिया गांधी अब राज्यसभा पहुंच गई हैं.
कांग्रेस ही नहीं, बल्कि दूसरे राजनीतिक दल भी अमेठी और रायबरेली के महत्व को अच्छी तरह समझते हैं. जब यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भारत जोड़ो न्याय यात्रा के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का न्योता मिला तो उनका भी जवाब आया था कि वो अमेठी या रायबरेली में यात्रा में शामिल होंगे - ये बात अलग है कि सीटों का बंटवारा न होने की बात बोल कर वो दोनों में से किसी जगह नहीं पहुंचे. हालांकि, बाद में आगे की यात्रा में एक बार वो शामिल जरूर हुए थे.
2019 की चुनावी हार के बाद बहुत दिनों तक राहुल गांधी ने अमेठी की तरफ झांकने की भी जहमत नहीं उठाई थी, लेकिन बाद में थोड़ा थोड़ा आना जाना शुरू कर दिये. 2022 के यूपी चुनाव के दौरान भी कैंपेन के लिए भी राहुल गांधी अमेठी गये थे.
रायबरेली से ज्यादा वास्ता प्रियंका गांधी वाड्रा का ही रहा है. सोनिया गांधी की सेहत ठीक न होने के चलते वहां के लोगों से मिलने जुलने का काम भी प्रियंका गांधी के जिम्मे ही रहा है, और उसी वजह से उनको रायबरेली से चुनाव लड़ाये जाने की भी चर्चा चलती रही है, लेकिन कांग्रेस की दूसरी लिस्ट में भी रायबरेली और अमेठी का नाम नहीं आया है.
रायबरेली के लोगों की गांधी परिवार से नाराजगी की बात राहुल गांधी के हाल के दौरे के बाद सामने आई है. राहुल गांधी के रायबरेली दौरे में भी भीड़ तो वैसी ही देखी गई जैसी अमेठी में देखने को मिली थी. अमेठी को लेकर तो स्मृति ईरानी का आरोप था कि राहुल गांधी के स्वागत के लिए लोग बाहर से बुलाये गये थे.
बहरहाल, रायबरेली को लेकर ऐसी बातें तो नहीं हो रही हैं, लेकिन जो हो रही हैं, वे किसी भी तरीके से अच्छी नहीं कही जाएंगी. न तो गांधी परिवार के लिए न ही कांग्रेस की राजनीतिक सेहत की खातिर.
बताते हैं कि रायबरेली में राहुल गांधी के स्वागत के लिए 29 स्थान चुने गये थे - और सभी जगह राहुल गांधी पहुंचे भी. कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने राहुल गांधी का जोरदार स्वागत भी किया, लेकिन उनके मन में एक टीस रह गई.
पूरे दौरे में राहुल गांधी एक भी जगह अपनी गाड़ी से उतरे नहीं. लोग उनके करीब आने, उनसे हाथ मिलाने को तरसते ही रह गये - जब अमेठी का ये आलम है, तो देश के बाकी हिस्सों का क्या कहें?
रायबरेली की इस एक घटना ने गांधी परिवार से लोगों के डिस्कनेक्ट होने की पूरी कहानी कह दी है - क्या राहुल गांधी को वास्तव में लोगों की बिलकुल भी परवाह नहीं है?
राहुल गांधी के मन में जो भी हो, उनके ऐक्ट तो अलग ही इरादा जाहिर करते हैं. अगर राहुल गांधी का ऐसा ही व्यवहार रहता है, तो भला रायबरेली के लोग कब तक एकतरफा रिश्ता निभाते रहेंगे - आखिर कब तक भावनात्मक रूप से गांधी परिवार से जुड़ाव महसूस करेंगे?
फिर तो सोनिया की भावुक चिट्ठी भी बेअसर हो जाएगी
रायबरेली के लोगों को लिखे भावुक पत्र में सोनिया गांधी ने कहा था, 'मेरा परिवार दिल्ली में अधूरा है... वह रायबरेली आकर आप लोगों से मिलकर पूरा होता है... यह नेह- नाता पुराना है... ससुराल से मुझे सौभाग्य की तरह मिला है.'
सोनिया गांधी ने अपने पत्र में इंदिरा गांधी की हत्या का भी जिक्र किया था, और राजीव गांधी की हत्या के बाद रायबरेली के लोगों से मिले संबल के बारे में भी, सास और जीवनसाथी को हमेशा के लिए खोकर मैं आपके पास आई... आपने अपना आंचल मेरे लिए फैला दिया.
सोनिया गांधी ने 2014 के बाद कांग्रेस की चुनौतियों की तरफ भी ध्यान दिलाया और स्वीकार किया कि रायबरेली के लोग उनके साथ चट्टान की तरह बने रहे, और बोलीं, 'यह कहते हुए मुझे गर्व है कि आज मैं जो कुछ भी हूं, आपकी बदौलत हूं... मैं इस भरोसे को हरदम निभाने की हरदम की है.'
लेकिन क्या राहुल गांधी को भी ऐसी बातों की कोई परवाह है? क्या राहुल गांधी ने कभी ये जानने की कोशिश की कि चुनाव दर चुनाव वोट देते आ रहे रायबरेली के लोगों को मन में क्या चल रहा है?
ये तो साफ है कि राहुल गांधी रायबरेली के लोगों की वैसी कोई मदद नहीं कर सकते जो सत्ता में होन पर ही संभव है. जो भी कर सकते हैं, वो संसदीय निधि के दायरे में रह कर ही - लेकिन क्या रायबरेली के लोगों की भी ऐसी ही कोई अपेक्षा है?
मानते हैं कि राहुल गांधी की सत्ता की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है. मानते हैं कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने में भी दिलचस्पी नहीं है - लेकिन अपने वोटर में दिलचस्पी क्यों नहीं है?
और चुनाव हार जाने पर बताने लगते हैं कि लोगों की राजनीतिक समझ में ही कमी है. भला ऐसे कैसे चलेगा?