जंग के मैदान में उतरते वक्त आत्मविश्वास से भरपूर होना चाहिये, लेकिन उसका मतलब ये नहीं कि हकीकत से आत्मविश्वास का कोई वास्ता न हो. अब तो आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी जोश में होश न गंवाने की नसीहत दे रहे हैं - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विजय के वक्त विनय की याद दिला रहे हैं, और विकास की बात कर रहे हैं.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई है. अपने हिसाब से वे रास्ते की हर बाधा हटाते भी चल रहे हैं. भारत जोड़ो न्याय यात्रा की राह में बैरिकेडिंग को भी हटा कर आगे बढ़ रहे हैं. और राहुल गांधी का पूरा सपोर्ट है. कह रहे हैं, बैरिकेड तोड़ा है कानून नहीं.
राम मंदिर उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, 'मैं प्रभु श्रीराम से क्षमा याचना भी करता हूं... हमारे पुरुषार्थ में कुछ तो कमी रह गई होगी... हमारी तपस्या में कुछ कमी रही होगी... हम इतने सदियों तक मंदिर निर्माण नहीं कर पाये… आज वो कमी पूरी हुई.'
न्याय यात्रा के दौरान जब राहुल गांधी से पूछा जाता है, अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद देश में जो लहर उत्पन्न हुई है उसका का मुकाबला कैसे करेंगे? बड़े आत्मविश्वास के साथ राहुल गांधी कहते हैं, 'ऐसा कुछ नहीं है कि कोई लहर है.'
राहुल गांधी याद दिलाते हैं कि अयोध्या समारोह को वो पहले भी राजनीतिक कार्यक्रम बता चुके हैं और कहते हैं, नरेंद्र मोदी जी ने वहां एक समारोह और एक शो किया... ये अच्छा है.
अपनी प्रेस कांफ्रेंस में ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा' के पीछे न्याय की सोच का भी जिक्र करते है, और विस्तार से बाद में बताने को कहते हैं.
ओबीसी के हितों की बात करने वाले राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान जिन 5 पांच न्याय पर फोकस रखने का कहा है, उसमें जातिवाद की झलक नहीं दिखती है. न ही अडानी वाले कथित भ्रष्टाचार की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राम मंदिर के उद्धाटन के तुरंत बाद 1 करोड़ घरों में सौर ऊर्जा ले जाने का वादा कर देते हैं. मतलब, वे भी अपना फोकस सामाजिक न्याय पर ही रखना चाहते हैं. जिसमें 'मोदी की गारंटी' दी जा सके.
आखिर राहुल गांधी के '5 न्याय' बनाम मोदी की '4 जातियां' आने वाले चुनाव में ये लड़ाई कहां तक जाएगी?
क्या आम चुनाव का मुद्दा तय हो गया?
राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस के कुछ देर बाद ही सोशल मीडिया पर यात्रा से जुड़े पांच न्याय के बारे में बताया गया है. हालांकि, सिर्फ नाम गिनाये गये हैं. कुछ भी विस्तार से नहीं बताया गया है. राहुल गांधी ने कहा भी था कि सभी मुद्दों का ध्यान रखते हुए महीने भर के भीतर एक कार्यक्रम रखा जाएगा.
राहुल गांधी ने पांच न्याय का जो फॉर्मूला पेश किया है, वे हैं - भागीदारी न्याय, श्रमिक न्याय, नारी न्याय, किसान न्याय और युवा न्याय.
देश के पांच राज्यों में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान जातीय जनगणना की मांग भी जोर शोर से हो रही थी. बिहार में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट आने के बाद तेजस्वी यादव और राहुल गांधी सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट कर रहे थे. राहुल गांधी तो हर चुनावी रैली में भी जातीय जनगणना की मांग दोहराते थे, और सत्ता में आने पर जातिगत गणना कराने का वादा भी कर रहे थे. कांग्रेस ने भी कार्यसमिति की बैठक बुला कर जातीय जनगणना को लेकर प्रस्ताव पास किया था.
विपक्ष की जातीय जनगणना की मांग को काउंटर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में चार जातियों की बात की थी - गरीब, युवा, महिलाएं और किसान.
चुनाव नतीजों के बाद से तो सन्नाटा ही छा गया. अब तो शायद ही किसी के मुंह से जातीय जनगणना का जिक्र सुनने को मिलता हो. कांग्रेस को जातीय जनगणना की मांग से खास अपेक्षा रही होगी, लेकिन मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की हार के बाद तो लगता है, उम्मीद ही टूट गई.
अपनी यात्रा शुरू करने से पहले राहुल गांधी सिर्फ तीन तरह के न्याय की बात की थी - आर्थिक न्याय, सामाजिक न्याय और राजनीतिक न्याय. आर्थिक न्याय के तहत वो बेरोजगार युवाओं, कर्ज में डूबे किसानों और महंगाई की मार के बीच पढ़ाई, कमाई और दवाई के लिए संघर्ष करते गरीबों को न्याय दिलाने की बात करते हैं. सामाजिक न्याय में वो वंचितों के अधिकारों और बेटियों के आत्मसम्मान के साथ न्याय दिलाने की बात करते हैं. और राजनीतिक न्याय के रूप में स्वतंत्रता, समानता और मानवीय गरिमा के आदर्शों के साथ न्याय की लड़ाई लड़ने का वादा कर चुके हैं.
राहुल और मोदी की बातों को लोक कैसे समझें?
मुद्दे की बात ये है कि लोग राहुल गांधी के न्याय और नरेंद्र मोदी की जाति की परिभाषा को कैसे समझें? और ये भी देखना है कि चुनावों में ये दोनों नेता अपना एजेंडे लोगों को समझाते कैसे हैं?
आइए राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी दोनों की तरफ से पेश एजेंडे को समझने की कोशिश करते हैं -
1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिन चार जातियों का जिक्र किया था वो बेशक जातीय जनगणना के मांग का काउंटर था, लेकिन उन पर ध्यान दिया जाये, और उनके बारे में सोच समझ कर काम किया जाये तो निश्चित तौर पर कल्याणकारी होगा.
2. राहुल गांधी भी असल में प्रधानमंत्री मोदी की तीन जातियों सहित 5-न्याय दिलाने के लिए संघर्ष की बात कर रहे हैं. सवाल है कि मोदी जिन जातियों के वेलफेयर की बात कर रहे हैं, राहुल गांधी उनको ही न्याय दिलाने की बात कर रहे हैं - और असल खेल भी इसी में है.
ये तो लोगों के मानने पर हैं. अगर लोग मानते हैं कि मोदी की बातों में दम नहीं है, तो वे राहुल गांधी से न्याय दिलाने की उम्मीद रखेंगे - लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ. अगर लोग मान लेते हैं कि मोदी ठीक कर रहे हैं, तो राहुल गांधी किसे न्याय दिलाएंगे.
दोनों नेताओं के एजेंडे में तीन मुद्दों का कॉमन होना ये तो बता रहा है कि विचारधारा अलग होने के बावजूद दोनों पक्ष कहीं न कहीं लोक कल्याण के मुद्दे पर सहमत हैं. लोकहित के लिए लोकतंत्र में इससे अच्छी बहस क्या हो सकती है?