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राहुल गांधी और खड़गे क्षेत्रीय नेताओं पर ठीकरा फोड़कर हार की जिम्मेदारी से बच पाएंगे क्या? | Opinion

महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार नेताओं पर गाज गिरने वाली है. मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐसा बोला है, और राहुल गांधी ने उस पर मुहर लगाई है - लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हार के लिए असली जिम्मेदार कौन है?

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क्या विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए सिर्फ राज्यों के नेता जिम्मेदार हैं?
क्या विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के लिए सिर्फ राज्यों के नेता जिम्मेदार हैं?

कांग्रेस कार्यसमिति में विधानसभा चुनावों में हुई हार पर गंभीर चर्चा हुई है. कांग्रेस के भीतर जारी आपसी गुटबाजी और बयानबाजी पर भी बात हुई है, और ऐसी हरकतों से बाज आने की कांग्रेस नेताओं को चेतावनी भी दी गई है. 

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने महाराष्ट्र और हरियाणा की हार के लिए जिम्मेदार नेताओं के खिलाफ एक्शन की भी बात की है - और खास बात है कि मीटिंग में मौजूद राहुल गांधी ने भी मल्लिकार्जुन खड़के की बातों को एनडोर्स करते हुए कहा है कि वो सख्ती से पेश आयें. 

बेशक, जिम्मेदारियों की समीक्षा होनी चाहिये. जो जिम्मेदार हैं, उनको मालूम भी होना चाहिये कि जिम्मेदारी सिर्फ लेने या देने की चीज नहीं होती है, निभाना भी पड़ता है. परफॉर्म भी करना पड़ता है - सबसे बड़ा सवाल है कि क्या महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में हार के लिए सिर्फ क्षेत्रीय नेता ही जिम्मेदार हैं? 

क्षेत्रीय नेतृत्व  का कल्चर ही कहां रहा है?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना ये कहना कि विधानसभाओं के चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं लड़े जाने चाहिये, बिल्कुल सही है. लेकिन, ये संभव भी है क्या? ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि चुनावों में एजेंडा कौन तय करता है? मुद्दा क्या बनता है. अगर पूरे चुनाव हर जगह राष्ट्रीय मुद्दा ही छाया रहेगा, तो स्थानीय मुद्दे उठाने का मौका कैसे मिलेगा?

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मीटिंग में मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, आखिर कब तक राज्यों के नेता राष्ट्रीय नेताओं के साथ राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ते रहेंगे?

बीजेपी का तो फंडा साफ है. बीजेपी राष्ट्रीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ती है. 2019 के महाराष्ट्र और हरियाणा  विधानसभा चुनावों में भी ये मसला उठा था. क्योंकि तब महाराष्ट्र में बीजेपी की उतनी सीटें नहीं आई थीं, जितनी अपेक्षा थी. और, हरियाणा में तो बहुमत से चूक ही गई थी - फिर भी बीजेपी ने रवैया नहीं बदला.

महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव भी बीजेपी वैसे ही लड़ी जैसे यूपी चुनाव. जैसे लोकसभा चुनाव. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ छाये रहे, बंटेंगे तो कटेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भला योगी का नारा कैसे दोहराते, इसलिए शब्द बदल दिये, लेकिन भाव वही रखा, एक हैं तो सेफ हैं. झारखंड चुनाव अपवाद कैाटेगरी में चला गया. 

जब बीजेपी राष्ट्रीय मुद्दे उठाएगी, तो कांग्रेस को जवाब देना ही पड़ेगा. जवाब देने से कांग्रेस नेता भाग तो सकते नहीं. मल्लिकार्जुन खड़गे को ये सलाहियत देने से पहले कोशिश ये करनी होगी कि कांग्रेस एजेडा सेट करे और बीजेपी को भी स्थानीय मुद्दों पर रिएक्ट करने के लिए घसीट लाये. 

जहां तक स्थानीय और क्षेत्रीय नेतृत्व खड़ा करने बात है, मल्लिकार्जुन खड़गे के विचार उत्तम हैं. लेकिन, चुनौती एक ही है. सब होगा कैसे?

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कांग्रेस में क्षेत्रीय नेतृत्व मजबूत करने का कल्चर कभी रहा भी है क्या? 

क्षेत्रीय स्तर पर जो भी मजबूत नेता रहे हैं, वे अपने दम पर खड़े हुए हैं, और अभी तो हाल ये है कि जो नेता ताकतवर हो गये हैं, आलाकमान की उसके आगे चलती ही नहीं. जो स्थिति इंदिरा गांधी के जमाने में हुआ करती थी, राहुल गांधी के जमाने तक वैसी ही बनी हुई है. फर्क बस ये है कि इंदिरा गांधी किसी भी नेता को कंट्रोल कर लेती थी, राहुल गांधी कोशिश ही करते रहते हैं. 

राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़, हरियाणा कहीं की भी बात हो, हाल तो एक जैसा ही है. अब राहुल गांधी की रणनीति रही हो, या खुद को बेबस पातें हो, वो तो हर जगह नेताओं को ऐसे ही उलझाये रहे. जब कांग्रेस सत्ता में आई, स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई. 

अशोक गहलोत की ताकत को मल्लिकार्जुन खड़गे से बेहतर कौन समझ सकता है. सोनिया गांधी के आदेश पर राजस्थान के ऑब्जर्वर बन कर खुद ही तो गये थे, और तत्कालीन प्रभारी अजय माकन के साथ बैरंग लौट आये थे. पंजाब का मामला सुलझाने वाली समिति के प्रभारी भी तो मल्लिकार्जुन खड़गे ही थे - नई बात सिर्फ ये है कि अब वो चुनाव जीत कर कांग्रेस के अध्यक्ष बन गये हैं. 

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क्या कांग्रेस नेताओं पर गाज गिरेगी?

CWC की बैठक में सलाहियत के साथ साथ मल्लिकार्जुन खड़गे ने नेताओं को तमाम नसीहतें भी दी. गुटबाजी को लेकर भी, और अनुशासन को लेकर भी - और कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भी. 

और बड़ी बात ये देखी गई कि मीटिंग में मौजूद राहुल गांधी भी महाराष्ट्र और हरियाणा की हार के लिए जिम्मेदार नेताओं के खिलाफ एक्शन के हिमायती नजर आये. मल्लिकार्जुन खड़गे ने साफ साफ बोल दिया कि वो कठोर फैसले भी लेंगे और संगठन में बदलाव भी किया जाएगा. 

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, व्यवस्था को ठीक करने के लिए मुझे चाबुक भी चलाना पड़ेगा. 

ये सुनते ही राहुल गांधी बोल पड़े, खड़गे जी... चाबुक चलाइये. 

बहुत अच्छा. चाबुक चलना ही चाहिये. जो भी चुनावी हार का जिम्मेदार है, उसके साथ ऐसा ही सलूक होना चाहिये.

लेकिन, सबसे बड़ा सवाल ये है कि हार के लिए असली जिम्मेदार कौन है? कहते हैं पापी पर पत्थर तो वही चला सकता है जिसने पाप न किया हो. व्यवस्था में अगर चाबुक किसी के हाथ लग गया है, तो भी वो चाबुक चलाने से पहले क्या ये नहीं सोचेगा कि उसकी कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं?

व्यवस्था के हिसाब से महाराष्ट्र की जिम्मेदारी नाना पटोले पर थी, और हरियाणा की पूरी कमान तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपने हाथ में रखे हुए थे. चुनाव नतीजे आने के बाद टिकट दिये जाने में दखल देने के लिए कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल का भी नाम लिया गया था. 

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नाना पटोले ने तो इस्तीफे की पेशकश भी कर दी है - तो क्या सिर्फ ये ही नेता हार के लिए जिम्मेदार हैं? राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती?

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