मणिपुर से संघर्षभरी शुरुआत और असम में हिमंत बिस्वा सरमा से टकराव के बाद राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा पश्चिम बंगाल में प्रवेश करने वाली है. ऐसा तो नहीं कि ममता बनर्जी ने बंगाल में नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया हो, लेकिन जो संकेत दिया है वो उससे कम भी नहीं है.
ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में लोक सभा चुनाव अकेले लड़ने के ऐलान के साथ ही तृणमूल कांग्रेस ने ये भी साफ कर दिया है कि भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने का उसका कोई इरादा नहीं है. टीएमसी का ये रिएक्शन भी बिलकुल वैसा ही है जैसा सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर कांग्रेस की राष्ट्रीय गठबंधन समिति के नेताओं से मिलने को लेकर था.
असम के बाद भारत जोड़ो न्याय यात्रा 25 जनवरी को कूच बिहार से पश्चिम बंगाल में प्रवेश करने जा रही है. असम के मुकाबले पश्चिम बंगाल में न्याय यात्रा को छोटा रखा गया है. असम में न्याय यात्रा के तहत 833 किलोमीटर की दूरी रखी गयी थी, जबकि पश्चिम बंगाल के लिए ये दूरी 523 किलोमीटर ही है. असम के 17 जिलों से गुजरने वाली राहुल गांधी की यात्रा पश्चिम बंगाल में सिर्फ 7 जिलों को कवर करेगी, जिसमें कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले मालदा और मुर्शिदाबाद भी शामिल हैं. बंगाल के बाद न्याय यात्रा बिहार पहुंचेगी, जहां पहले से ही नीतीश कुमार के ताजा हाव-भाव से उथल-पुथल मची हुई है.
ममता बनर्जी के बेहद सख्त रुख के बावजूद कांग्रेस का टोन काफी नरम लग रहा है. भारत जोड़ो न्याय यात्रा को लेकर मीडिया के सवालों पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश का कहना है, 'आपने ममता जी का पूरा बयान नहीं पढ़ा है... पूरा बयान है कि हम भाजपा को हराना चाहते हैं, और भाजपा को हराने के लिए कोई कदम पीछे नहीं लेंगे... उसी भावना के साथ हम पश्चिम बंगाल में प्रवेश कर रहे हैं.
राहुल गांधी का भी कहना है कि ममता बनर्जी को न्याय यात्रा के निमंत्रण दिया गया है, और जयराम रमेश के अनुसार भी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने INDIA ब्लॉक के सहयोगी दलों के नेताओं को भारत जोड़ो न्याय यात्रा का निमंत्रण दिया है.
लेकिन न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा से बातचीत में टीएमसी के एक नेता ने कहा, 'हमें कांग्रेस से कोई औपचारिक निमंत्रण नहीं मिला है... और अगर हमें मिलता भी है तो इसमें हमारे शामिल होने की संभावना नहीं है.'
बावजूद टीएमसी के ऐसे कड़े रुख के, कांग्रेस की तरफ से काफी नरमी बरती जा रही है. कुछ कुछ वैसे ही जैसे 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को सपा-बसपा गठबंधन के आस पास फटकने न देने के बावजूद राहुल गांधी और कांग्रेस नेता अखिलेश यादव और मायावती का जिक्र आने पर बड़े ही सम्मान के साथ पेश आते देखे जाते थे.
ममता बनर्जी के प्रति कांग्रेस का रुख इतना नरम क्यों?
22 जनवरी की सर्वधर्म समभाव रैली में भी ममता बनर्जी के निशाने पर कांग्रेस ही रही. सीटों के बंटवारे को लेकर ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेतृत्व को खूब खरी खोटी सुनाई थी. और उसके ठीक पहले टीएमसी की एक मीटिंग से भी खबर आई थी, जिसमें ममता बनर्जी ने कहा था कि तृणमूल कांग्रेस लोक सभा चुनाव सभी 42 सीटों पर अकेले भी लड़ सकती है.
लेकिन राहुल गांधी ने अपनी तरफ से ऐसी बातों को तूल न देने की पूरी कोशिश की थी. राहुल गांधी का कहना था कि उनकी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की ओर से कोई न कोई नेता कुछ टिप्पणी कर देता है, लेकिन ममता बनर्जी के साथ खुद उनके बहुत अच्छे रिश्ते हैं.
मालूम नहीं ममता बनर्जी तक राहुल गांधी की ये बात और भावना पहुंची या नहीं, लेकिन करीब 24 घंटे के भीतर ही ममता बनर्जी ने ऐलान कर दिया कि तृणमूल कांग्रेस ने आने वाले लोक सभा का चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है. कांग्रेस को लेकर अपने रुख पर कायम ममता बनर्जी कहती हैं, 'मैंने उन्हें सीटों के बंटवारे पर एक प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने शुरू में ही इसे खारिज कर दिया... हमारी पार्टी ने अब बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है.'
टीएमसी नेतृत्व के सब कुछ साफ साफ बोल देने के बावजूद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश कह रहे हैं, 'रास्ते में कभी कभी स्पीड ब्रेकर आ जाता है... कभी कभी रेड लाइट आ जाती है... मतलब ये नहीं है कि हम पीछे हट जाएं.'
राहुल गांधी के बयान का जिक्र करते हुये जयराम रमेश कहते हैं, 'हम ममता जी के बिना INDIA ब्लॉक की कल्पना नहीं कर सकते... INDIA ब्लॉक पश्चिम बंगाल में लोक सभा चुनाव लड़ेगा और सभी सहयोगी दल हिस्सा लेंगे.'
ममता बनर्जी के बयान को जयराम रमेश अपने तरीके से समझने और समझाने की कोशिश करते हैं, और दावा करते हैं कि ममता बनर्जी ये कहना चाह रही हैं कि लोक सभा चुनाव में बीजेपी को हराना हम सभी की प्राथमिकता है.'
कांग्रेस महासचिव को अब भी पूरी उम्मीद है कि जो बातचीत चल रही है उसमें बीच का रास्ता निकाला जाएगा और पश्चिम बंगाल में सभी सहयोगी दल मिल कर चुनाव लड़ेंगे - हालांकि, कांग्रेस नेता की बातें लकीर पीटने जैसी ही लगती हैं. अब तो बस एक ही रास्ता है, कांग्रेस दो सीटों पर चुनाव लड़ने की हामी भर दे, और ममता बनर्जी इतनी दया कर देंगी.
कांग्रेस मौका तो है, लेकिन 'आपदा में अवसर' जैसा ही
भारत जोड़ो यात्रा तमिलनाडु से शुरू हुई थी, जहां डीएमके के साथ कांग्रेस का गठबंधन है. जो थोड़ा बहुत टकराव देखने को मिला था वो केरल, तेलंगाना और कर्नाटक में ही, जब कर्नाटक में बीजेपी की सरकार हुआ करती थी. वैसे तो हरियाणा की बीजेपी सरकार से भी राहुल गांधी को गुजरना पड़ा था, लेकिन कोई खास दिक्कत नहीं हुईं.
भारत जोड़ो न्याय यात्रा की तो शुरुआत ही मणिपुर में टकराव के साथ हुई है, जहां बीजेपी की सरकार है. आगे बढ़ते ही असम आ गया, लेकिन जिस पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी को सपोर्ट मिल सकता था, वो भी नहीं मिलने जा रहा है.
बेशक ममता बनर्जी का साथ न मिले, लेकिन पश्चिम बंगाल में राहुल गांधी के लिए पूरा मौका है. आखिर आपदा में भी तो अवसर होता ही है. अगर वो चाहें तो ममता बनर्जी के खिलाफ अधीर रंजन चौधरी को सपोर्ट करके कांग्रेस के लिए कुछ और संभावनाएं जगा सकते हैं - लेकिन इसके लिए पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के प्रति स्टैंड बदलना होगा.
जैसे 2021 के पश्चिम बंगाल चुनाव में राहुल गांधी एक ही रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ही तराजू में तौल रहे थे, एक बार फिर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ वैसा ही गरम मिजाज अख्तियार करना होगा.
कम से कम पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की स्थिति यूपी से तो बेहतर ही है. यूपी में कांग्रेस अमेठी हार चुकी है, लेकिन पश्चिम बंगाल में इस बार भी अधीर रंजन चौधरी को यकीन है कि दोनों सीटें अकेले दम पर जीत लेंगे. अगर ऐसी ही कुछ और सीटों पर कांग्रेस कोशिश करे तो बीजेपी को वोट नहीं देने वाले ममता बनर्जी की जगह कांग्रेस को वोट दे सकते हैं.
विधानसभा चुनाव की बात और थी, जिसे ममता बनर्जी ने 'एक पैर से जीत' लिया था, लेकिन दो पैरों से दिल्ली जीत पाना अब भी उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है.