गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन खत्म हो चुका है. दो दिवसीय अधिवेशन के पहले दिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पार्टी की रणनीति और सामाजिक समीकरणों को लेकर अपनी बात रखी. राहुल ने वही बातें रखीं जिस पर आज कल वो लगातार बोलते हैं. पिछले 2 सालों से वो लगातार जाति जनगणना की बातें कर रहे हैं. करीब हर मंच पर वो अगड़ा-पिछड़ा, जाति जनगणना, आरक्षण बढ़ाने की बात जरूर करते हैं. इस हफ्ते तीन मौकों पर उनके तीन बयानों पर गौर करिए.
- 'हम दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण में उलझे रहे और इस बीच OBC हमारे साथ से दूर हो गया.'
-'लेकिन मोदी जी ने साफ़ कह दिया कि वे जातिगत जनगणना नहीं कराएंगे. इसीलिए हमने भी कह दिया है कि अगर ये काम आप नहीं करेंगे तो हम संसद में आपके सामने जातिगत जनगणना का कानून पास करेंगे.'
-आप अपर कास्ट (सवर्ण) नहीं हैं, तो इस देश में सेकेंड क्लास सिटिजन (दूसरे दर्जे के नागरिक) हैं.
मतलब साफ है कि राहुल गांधी पिछड़ों के नए मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं. मंडल की राजनीति उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की राजनीति को खत्म करने के लिए तत्कालीन पीएम वीपी सिंह ने शुरू की थी. अब राहुल गांधी मंडल 2.0 के जरिए भारतीय जनता पार्टी ही नहीं अपनी सहयोगी पार्टियों पर भी सर्जिकल स्ट्राइक करना चाहते हैं. पर राहुल गांधी के लिए पिछड़ी राजनीति का मसीहा बनना आसान नहीं है . उनके मंडल 2.0 में बहुत झोल है.
1-क्या वे किसी ओबीसी को पीएम बनाएंगे?
कांग्रेस ने बहुत दबाव में करीब 25 साल बाद गांधी परिवार के बाहर के एक दलित व्यक्ति को पार्टी का अध्यक्ष बनाने का साहस दिखाया . हालांकि मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्ष के रूप में कितनी चलती है ये पूरा देश जानता है. सभी महत्वपूर्ण फैसले राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी कैंप के जरिए ही लिए जाते हैं. यूपीए सरकार के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी पता था कि उनकी हद क्या है? एनएसी चेयरपरसन के रूप में सोनिया गांधी और कांग्रेस के स्वाभाविक अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी उन पर हमेशा से भारी रहते थे. क्या इस तरह का ही सही, किसी ओबीसी नेता को पीएम बनाने का वादा करेंगे राहुल गांधी? जाहिर है कि बिना इस तरह के वादे के शायद ही ओबीसी समाज राहुल के बहकावे में आए.
2-बिहार में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में जाति सर्वे का अनुपात नहीं देखा गया
बिहार की राजधानी में पहुंचकर सवर्णों को छोड़कर शेष लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक कहने वाले राहुल गांधी बार-बार कह रहे हैं कि वह सभी वर्गों को सामाजिक न्याय दिलाएंगे. बिहार में कांग्रेस ने एक अप्रैल को 40 जिलाध्यक्ष की सूची जारी की. इनमें से 21 नए चेहरे हैं. 19 जिलाध्यक्षों को रिपीट किया गया है. 40 जिलाध्यक्षों में सबसे ज्यादा 14 सवर्ण जाति से अध्यक्ष बनाए गए हैं. उसके बाद ओबीसी की संख्या 10 है. 5 दलित, 6 मुस्लिम और एक महिला को जिम्मेदारी दी गई है.
साफ दिखाई दे रहा है कि सबसे अधिक महत्व सवर्णों को मिला है. बिहार में हुए जाति सर्वे के अनुसार सवर्णों की आबादी कुल हिंदू आबादी की 15.52 परसेंट है. बिहार में हिंदुओं की आबादी 81 परसेंट हैं. इस तरह सवर्ण हिंदुओं की आबादी कुल आबादी में 15.52 परसेंट से भी कम हो गई. पर कांग्रेस जिलाध्यक्षों में सवर्णों का अनुपात कम से कम 40 प्रतिशत है. जाति सर्वे के हिसाब से पिछड़ों की संख्या का अनुपात करीब 63 प्रतिशत है जबकि जिलाध्यक्षों की सूची में उन्हें 25 प्रतिशत ही हिस्सेदारी मिली है.
राहुल गांधी एक तरफ तो यह कहते हैं कि जाति जनगणना कराके उनको आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व देंगे पर जनता देख रही है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा है. जाहिर है कि जब मलाई खाने का वक्त आता है तो कांग्रेस अगड़ों की पार्टी हो जाती है.
3- हिमाचल-कर्नाटक और तेलंगाना का बजट बनाने वालों में कितने परसेंट ओबीसी-दलित?
राहुल गा्ंधी यह सवाल बार-बार उठाते हैं कि देश और राज्यों में होने वाले महत्वपूर्ण फैसलों में कितने प्रतिशत दलित और पिछड़े लोगों की हिस्सेदारी होती है. उन्होंने एक बार केंद्रीय बजट बनाने वालों के बारे में भी सवाल उठाया था. हलवा सेरेमनी की फोटो दिखाते हुए सवाल किया था कि बजट बनाने वाले में 99 प्रतिशत लोग सवर्ण समुदाय से हैं. राहुल की बातों को पब्लिक तब तक नहीं मानेगी जब तक कांग्रेस हिमाचल , कर्नाटक और तेलंगाना में जहां उसकी सरकारें हैं वहां महत्वपूर्ण फैसलों में पिछड़ों और दलितों को भागीदार नहीं बनाया जाता. राहुल गांधी को इन राज्यों में ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि कम से कम बजट निर्माण में तो 90 प्रतिशत भागीदारी पिछड़े और वंचित लोगों की हो सके. बिना यह कदम उठाए राहुल के मंडल मसीहा बनने का ख्वाब अधूरा रह जाएगा.
4-बीजेपी नहीं, लालू और अखिलेश लगाएंगे राहुल की योजना का पलीता
चाहे इंडिया गठबंधन में कांग्रेस रहे या बाहर पर राहुल गांधी को मंडल मसीहा बनने से रोकने में बीजेपी से बड़ी भूमिका लालू यादव परिवार और अखिलेश यादव होंगे. एक छोटे से उदाहरण से समझिए . बिहार में पप्पू यादव और कन्हैया कुमार को लालू परिवार इसलिए उभरने नहीं दिया क्योंकि तेजस्वी यादव को बिहार में कोई प्रतिस्पर्धी न मिले. तो ऐसा कैसे हो सकता है कि अखिलेश यादव और लालू यादव यूपी और बिहार में जिस पिछड़ी जाति के वोटर्स के भरोसे से दशकों से राजनीति कर रहे हैं उन्हें आसानी से कांग्रेस को सौंप देंगे. राहुल गांधी कांग्रेस के परंपरागत वोटर्स जैसे ब्राह्मण, दलित और मुसलमान को तो अपने साथ कुछ मात्रा में लाने में सफल हो सकते हैं पर पिछड़े वोटों के बारे में कुछ कहना मुश्किल है.
5-मंडल मसीहा बनने के लिए पिछड़ी जाति का होना कितना जरूरी?
भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र मोदी के जैसे पिछड़ी जाति के नेता के पीएम बनने के पहले ही सोशल इंजिनियरिंग शुरू हो गई थी. कल्याण सिंह, उमा भारती के रूप में दो राज्यों को पिछड़ी जाति के मुख्यमंत्री मिल चुके थे. इसका नतीजा यह रहा कि इन राज्यों में पिछड़ी जाति के बीच बीजेपी ने अपनी पहचान बना ली. पर नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद पूरे देश की पिछड़ी जातियों में संदेश गया कि अब बीजेपी ब्राह्मण और बनियों की पार्टी नहीं रही. क्योंकि देश के सर्वोच्च पद पर एक पिछड़ा व्यक्ति आसीन हो चुका है. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने का साहस दिखाया पर वो पिछड़ों के मसीहा नहीं बन सके, क्यों कि वो जाति से क्षत्रिय थे. वीपी सिंह के नाम पर लालू यादव, मुलायम सिंह यादव आदि ने पिछड़ी जातियों में ऐसी पैठ बनाई कि कई दशकों तक उसका फायदा उठाया. कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि राहुल गांधी जब तक देश के सर्वोंच्च पद के लिए अपनी दावेदारी जारी रखेंगे, उम्मीद कम है कि पिछड़ी जाति को लोग उन्हें अपना मसीहा मानें. कारण कि वो खुद को हिंदू ब्राह्मण के रूप में रिप्रेजेंट करते हैं.