scorecardresearch
 

राहुल गांधी की रायबरेली में चार लाख वोटों से जीत के ये मैसेज किसके लिए हैं?

रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत इसके संकेत हैं कि पार्टी उपयुक्त माहौल मिलते ही अपने पुराने दिनों की रफ्तार पकड़ सकती है. यह भारतीय जनता पार्टी सहित सभी दलों के लिए संदेश है.

Advertisement
X
राहुल गांधी की रायबरेली में बड़ी विजय यूं ही नहीं मिली है
राहुल गांधी की रायबरेली में बड़ी विजय यूं ही नहीं मिली है

देश में कई चुनावों के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए खुशी की खबर आई है. राहुल गांधी के नेतृत्व में इस बार कांग्रेस ने अपनी सीटों की संख्या 2 गुनी कर ली है. बीजेपी को सबसे अधिक शिकस्त देने वाली पार्टी के रूप में भी कांग्रेस ही उभर कर सामने आई है. किसी भी कीमत पर इस बार राहुल गांधी की इस उपलब्धि को हम छोटा नहीं कर सकते हैं. राहुल गांधी की यह उपलब्धि कुछ वैसी ही है जैसी उनकी मां सोनिया गांधी ने कांग्रेस के सबसे मुश्किल भरे दौर 1996-2004 के बीच अपने करिष्माई नेतृत्व के जरिए उबार लिया था. हालांकि इस बार के चुनाव रिजव्ट कांग्रेस हो या I.N.D.I.A गठबंधन दोनों के लिए बहुमत के जादुई नंबर को पाना दूर की कौड़ी है. मगर राहुल गांधी की रायबरेली में करीब 4 लाख वोटों से हुई जीत ने साबित कर दिया कि यह जीत तुक्के में मिली हुई नहीं है. क्योंकि इतनी बड़ी जीत किसी के असंतुष्ट होने, किसी जाति या धर्म का समर्थन मिलने से नहीं मिलती. राहुल गांधी की इतनी बड़ी जीत के कई मायने हैं .आइये देखते हैं किस तरह कांग्रेस फिर से पुराने दिनों के गौरव को हासिल कर सकती है. भविष्य में इसका असर भारतीय जनता पार्टी ही नही अन्य दलों पर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता.

Advertisement

1-सहयोगी मजबूत हों तो कांग्रेस फिर से पैर के बल खड़ी हो सकती है

रायबरेली और अमेठी में मिली जीत के पीछे समाजवादी पार्टी की बढ़ी भूमिका है. कारण कि इन दोनों जगहों पर विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को बड़े पैमाने पर वोट मिला था. इन दोनों ही सीटों पर समाजवादी पार्टी के सबसे अधिक विधायक चुनाव जीतकर आए थे. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वालों में से कई तो तीसरे नंबर पर थे. जाहिर है कि रायबरेली और अमेठी की संसदीय सीटों पर बीजेपी को मिली सफलता के पीछे समाजवादी पार्टी की लोकप्रियता ही ने काम किया है.

दरअसल यह समय गठबंधन की राजनीति का है. गठबंधन की राजनीति के महत्व को समझते हुए ही  2014 और 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला फिर भी सरकार में सभी साथी दलों को रिप्रजेंटशन दिया गया. राहुल गांधी को समझना होगा कि उन्हें किसी भी तरह से अन्य राज्यों में भी अपने सहयोगियों को साथ लाना होगा. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को और बिहार में नीतीश कुमार को भी साथ लाने में कांग्रेस की ओर से ही लापरवाही हुई. ममता और नीतीश बार-बार कहते रहे कि सीट शेयरिंग के काम को निपटा लिया जाए पर देर कांग्रेस की ओर से ही हुई. कांग्रेस अगर खुद को बढ़ा भाई मानकर अपने साथी पार्टियों को तवज्जो देती है तो चुनाव परिणाम उसे रायबरेली और अमेठी के जैसे ही अन्य जगहों पर मिलते.

Advertisement

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन खतरे में ही था, जिसे अखिलेश यादव की सूझबूझ कहें या जरूरत जिसने इंडिया गठबंधन की लाज बचा ली. एमपी में सीट शेयरिंग के मुद्दे पर अखिलेश यादव के खिलाफ कांग्रेस नेताओं ने कितने बयान दिए. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय तक ने अखिलेश के खिलाफ बहुत कुछ कहा. मध्य प्रदेश के एक कांग्रेस नेता ने यहां तक कहा कि कौन होते हैं अखिवेश वखिलेश. यह अखिलेश का पेशेंस ही था कि कांग्रेस नेताओं के दंभ भरे बयानों के बावजूद उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया.  

2-अपने परंपरागत वोट बैंक को फिर से हांसिल किया है

राहुल गांधी को रायबरेली में करीब 4 लाख वोटों से मिली जीत यूं ही नहीं है. इसे किसी खास जाति या धर्म से जोड़कर नहीं देख सकते .क्योंकि इतनी बड़ी जीत का कोई एक पहलू नहीं होता है. राहुल गांधी के लिए रायबरेली में वही कैंडिडेट इस बार था जिसने 2019 में उनकी मां सोनिया गांधी के जीत का अंतर कम कर दिया था. रायबरेली से बीजेपी कैंडिडेट दिनेश प्रताप सिंह कभी सोनिया गांधी के रायबरेली में सबसे प्रमुख सलाहकार हुआ करते थे. कहा जाता है कि इनके आवास पंचवटी से ही पूरे जिले राजनीति होती रही है.  इसके अलावा रायबरेली के कई कद्दावर नेताओं जैसे अदिति सिंह, मनोज पांडे आदि को दूसरी पार्टियों जैसे कांग्रेस और समाजवादी पार्टी से बीजेपी में लाया गया था. इन सबके पीछे केवल एक ही प्रायोजन था कि रायबरेली को कांग्रेसमुक्त किया जा सके. पर इन तमाम नेताओं के बावजूद अगर 4 लाख वोटों से राहुल गांधी चुनाव जीतते हैं तो निश्चित है कि उन्हें सभी वर्गों को वोट मिला. उसमें राजपूत ,ब्राह्रण, दलित,पिछड़े सभी शामिल रहे होंगे. विशेषकर ब्राह्मणों और दलितों के काफी वोट मिलने के संकेत मिल रहे हैं. जाहिर है कि इन दोनों समुदायों के वोट कांग्रेस के परंपरागत वोट रहे हैं. ये एक संकेत है कि कांग्रेस अगर मजबूती से चुनाव लड़ती है तो जल्द ही अपने परंपरागत वोटों को फिर से हासिल कर सकेगी.

Advertisement

3-राहुल गांधी नेता के रूप में स्थापित हुए 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की जबरदस्त लोकप्रियता को छकाते हुए अगर बीजेपी कैंडिडेट को जनता 4 लाख वोटों से हराती है तो इसका सीधा निष्कर्ष निकलता है कि जनता ने जीतने वाले शख्स को नेता मान लिया है .लगातार भारत जोड़ो यात्रा, न्याय यात्रा, संविधान बचाने, आरक्षण बचाने की बात करने वाले राहुल गांधी की छवि अब गंभीर राजनीतिज्ञ की हो गई है. राहुल ने भी महंगाई, बेरोजगारी, खेती-किसानी की चुनौतियों से लेकर दलितों-आदिवासियों और विशेषकर युवाओं की बुनियादी मुद्दों को अगर जमकर उठाया है तो इसका मतलब है कि उन्हें इन मुद्दों की गहराई से समझ है.राहुल गांधी ने नरेन्द्र मोदी पर सीधे कड़े राजनीतिक हमले कर विपक्षी I.N.D.I.A गठबंधन में शामिल दलों में यह भरोसा पैदा किया कि भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं. 

4-राहुल के आगे फेल हो गई जाति और धर्म की राजनीति

उत्तर प्रदेश पिछले 3 दशकों से जाति और धर्म की राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा है.रामजन्मभूमि और मंडल कमिशन के नाम पर राजनीति की शुरूआत यहीं से हुई है.इसका बड़ा परिणाम यह हुआ कि प्रदेश की राजनीति मंडल की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी और मंडल की राजनीति करने वाली बीजेपी ने राज्य में इस तरह पांव जमाया कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस मुक्त हो गया.अमेठी और रायबरेली में जिस तरह कांग्रेस को बंपर वोट मिला है उसका सीधा मतलब ये निकलता है कि इन दोनों जगहों पर न धर्म की राजनीति का असर हुआ और न ही जाति की राजनीति का असर रहा. लोगों ने जाति धर्म से ऊपर उठकर मतदान किया है. जो कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत हो सकते हैं.

Live TV

Advertisement
Advertisement