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उत्तर प्रदेश में BJP से राजपूतों की नाराजगी का सच, पार्टी को कितना नुकसान होने की आशंका

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार पर उनके विरोधी ठाकुरों की सरकार होने का आरोप लगाते रहे हैं. अब अगर कोई यह कहे कि बीजेपी सरकार में राजपूतों की उपेक्षा हो रही है तो यह जल्दी गले नहीं उतरेगा. पर ठाकुरों का असंतोष गॉसिप नहीं, हकीकत है .

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गाजियाबाद में नरेंद्र मोदी के साथ रोड शो में वीके सिंह
गाजियाबाद में नरेंद्र मोदी के साथ रोड शो में वीके सिंह

पिछले हफ्ते गुजरात ही नहीं उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में अचानक भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ राजपूतों के कुछ संगठनों ने मोर्चा संभाल लिया. यह बड़ा ही अचंभित करने वाला था. क्योंकि उत्तर प्रदेश में इस समय ठाकुर बीजेपी के कट्टर समर्थक हैं. पूर्वी यूपी के राजनीतिक गलियारों में यहां तक कहा जाता है कि गैर-बीजेपी दल का ठाकुर नेता केवल शरीर से ही उस पार्टी में है, आत्मा उसकी बीजेपी में होती है. जाहिर है कि जब ऐसी बातें हो रही हों तो, ठाकुरों की बीजेपी से असंतोष की बात पर कौन यकीन करेगा? पर ये गॉसिप नहीं है, हकीकत है. पर सवाल यह है कि यह असंतोष किस लेवल का है और इसके क्या परिणाम हो सकते हैं.

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सहारनपुर से दिल्ली की ओर जाने वाले हाइवे पर 7 अप्रैल को एक अलग फिजा थी. ननौता गांव पश्चिमी यूपी के ठाकुर समाज के लोगों के जुटान का गवाह बना था. क्षत्रिय समाज संघर्ष समिति की ओर से यहां आयोजित क्षत्रिय स्वाभिमान महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए पश्च‍िमी यूपी ही नहीं राजस्थान और हरियाणा से भी लोग आए थे. फिलहाल इस जुटान का सबसे बड़ा इफेक्ट यह हुआ कि नेशनल मीडिया में यह बात आ गई कि बीजेपी से राजपूत नाराज हैं. इससे पहले कि ये मामला बड़े बीजेपी की आतंरिक मशीनरी राजपूतों को मनाने में जुट गई है. बताया जा रहा है कि 11 अप्रैल को मेरठ में सिसौली में,13 अप्रैल को गाजियाबाद के धौलाना और 16 अप्रैल के सरधना के खेड़ा में क्षत्रिय स्वाभिमान महापंचायत का आयोजन किया जाएगा. इस तरह से यूपी के पहले चरण और दूसरे चरण की सीटों पर बीजेपी का काम खराब करने की तैयारी है. 

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1-राजपूतों की नाराजगी , केवल एक गुट का असंतोष

ऐन चुनाव के एक हफ्ते पहले इस तरह का जुटान होना संदेह तो पैदा कर ही रहा है. केवल टिकट कम मिलने का बहाना लेकर इतना बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा किया जा सकता था. जाहिर है कि पार्टी के ही कुछ लोग इसके पीछे हैं. मेरठ के वरिष्ट पत्रकार प्रेमदेव शर्मा कहते हैं कि राजपूत संगठनों में कई गुट हैं. बीजेपी को लेकर सामने आया असंतोष पूरी तरह गुटबाजी का नतीजा है. 

कहा जा रहा है कि मुजफ्फरनगर दंगे के दौरान पश्च‍िमी यूपी में भाजपा के फायरब्रांड चेहरे रहे सुरेश राणा, संगीत सोम और चंद्रमोहन को हाशिए पर भेजे जाने से ठाकुर समाज में नाराजगी है. सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, मेरठ में पकड़ रखने वाले सुरेश राणा को भाजपा ने बरेली मंडल की जिम्मेदारी सौंपी है, वहीं चंद्रमोहन बागपत जिले के प्रभारी हैं, जो सीट भाजपा के सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के खाते में गई है. पश्चिमी यूपी में जो ठाकुर चौबीसी भाजपा की जीत की कहानी लिखती थी, उसी ठाकुर चौबीसी ने भाजपा के बहिष्कार का एलान कर दिया है. इन बगावती तेवरों ने मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से प्रत्याशी संजीव बालियान की मुश्किलें सबसे ज्यादा बढ़ा दी हैं.

31 मार्च को मेरठ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली से दो दिन पूर्व खतौली विधानसभा के ठाकुर बाहुल्य ग्राम मढ़करीमपुर में संजीव बालियान अपने जनसंपर्क में गए थे. जहां उनके काफिले पर हमला हुआ. इसमें कई गाड़ियां क्षतिग्रस्त हुईं. बालियान ने आरोप लगाया कि उनपर हमला संगीत सोम के इशारे पर हुआ है. संगीत सोम के भाई एक दिन पहले इस गांव में गए थे जिस पर संगीत ने स्पष्ट किया कि उनके भाई उस गांव में काफी दिन से नहीं गए है.  मेरठ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बाद मुख्य मंच के पीछे बने सेफ हाउस में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले का संज्ञान लिया और सरधना के पूर्व विधायक संगीत सोम व केंद्रीय मंत्री डॉ संजीव बालियान के साथ एक बैठक भी की. 

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2-नाराजगी के कारणों में दम नहीं

राजपूत सभा की नाराजगी के कारणों में इतना दम नहीं है कि आम राजपूत इससे प्रभावित हो सके. राजपूत सभा का सबसे अधिक नाराजगी सम्राट मिहिरभोज को गुर्जर बताए जाने पर है. देश भर की जातियों में अपने को राजपूत और ब्राह्मण बताए जाने की प्रवृत्ति है. अगर गुर्जर समाज मिहिरोभोज को गुर्जर मानता है तो उसे कैसे रोका जा सकता है. इस पूरे प्रकरण में ठाकुर समाज कैराना से भाजपा सांसद और वर्तमान में लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार प्रदीप चौधरी की भूमिका से काफी नाराजगी है. ठाकुर नेताओं का मानना है कि पिछले वर्ष प्रदीप चौधरी और मेरठ से सपा विधायक अतुल प्रधान के उकसाने पर ही सहारनपुर से मिहिर भोज प्रतिहार गौरव यात्रा निकाली गई थी. इसके बाद से ठाकुर समुदाय प्रदीप चौधरी का विरोध कर रहा है.

क्षत्रिय महासभा के मुताबिक ठाकुर समाज के लोगों के टिकट कटने से ज्यादा बड़ी पीड़ा इस बात की है कि क्षत्रिय समाज ने देश भर में महापुरुषों की हजारों प्रतिमाएं लगाईं लेकिन किसी भी मूर्ति में महापुरुष के नाम के आगे राजपूत सम्राट नहीं लिखा. हमने हिंदू हृदय सम्राट या क्षत्रिय सम्राट लिखा लेकिन जाति सूचक शब्द का प्रयोग नहीं किया. दरअसल इस तरह की मांग करके क्षत्रिय महासभा बीजेपी के कोर वोटर्स को असंतुष्ट बना सकती है पर वोट डालने से नहीं रोक सकती है. 

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ठाकुर समाज की एक और पीड़ा बिल्कुल निराधार लग रही है. गाजियाबाद से सांसद वी.के. सिंह को लोकसभा उम्मीदवार न बनाए जाने और नोएडा से किसी ठाकुर को टिकट न मिलने को भी मुद्दा बनाया जा रहा है. 

3-यूपी में राजपूत अपने सबसे अच्छे दौर में

दरअसल क्षत्रिय महासभा की शिकायतों को इसलिए कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार ऐसा कहा जा रहा है कि यूपी में ठाकुरों की सरकार है. पूर्वी यूपी में तो योगी आदित्यनाथ की तुलना मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रित्व काल से की जाती है. योगी आदित्यनाथ के विरोधी यह कहते हुए नहीं थकते कि मुलायम सिंह यादव के काल में जिस तरह यादव सरकारी जाति बन गई थी, आदित्यनाथ के काल में राजपूत सरकारी जाति बन चुके हैं. आए दिन सरकार पर ये आरोप लगते हैं कि राजपूत माफिया पर कार्रवाई नहीं होती है. उत्तर प्रदेश सरकार पर महत्वपूर्ण नियुक्तियों में राजपूतों को तरजीह देने के भी आरोप लगते हैं.इसलिए क्षत्रियों को छोटी-छोटी बातों से बीजेपी के खिलाफ बरगलाना आसान नहीं होगा. 

4-घोसी उपचुनाव में समर्थन न देने का कारण सजातीय उम्मीदवार था

कुछ लोगों का कहना है कि जिस तरह घोसी उपचुनाव में राजपूतों ने बीजेपी का साथ नहीं दिया, हो सकता है कि पश्चिम यूपी में वैसा ही राजपूत दुहरा दें. घोसी में अगर बीजेपी को राजपूतों के वोट मिले होते तो दारा सिंह चौहान की इतनी बुरी हार नहीं हुई होती. इसलिए कहा जा रहा है कि इस आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता कि राजपूत बीजेपी की जगह किसी अन्य को वोट करें. पर घोसी उपचुनाव विधानसभा का चुनाव था. विधानसभा में लोकल मुद्दे काफी हावी होते हैं. घोसी में बीजेपी प्रत्याशी दारा सिंह चौहान के प्रति स्थानीय जनता की नाराजगी का भी एक कारण रहा. पर यहां ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है. दूसरी बात पश्चिमी यूपी में दूसरी बड़ी पार्टियों ने भी राजपूत उम्मीदवार नहीं खड़े किए हैं.जिसके चलते यह उम्मीद जगे कि राजपूतों के वोट बीजेपी से छिटक सकते हैं.

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5- केवल एक ही टिकट कटा

यूपी में अब तक केवल एक ठाकुर जाति के नेता वी के सिंह का टिकट ही कटा है. लेकिन माहौल इस तरह का बनाया जा रहा है कि बीजेपी उनकी दुश्मन है. यूपी में अब तक 63 सीटों पर टिकट फाइनल किए गए हैं. इनमें आठ जाति से ठाकुर हैं. इनमें मुरादाबाद से सर्वेश सिंह, लखनऊ से राजनाथ सिंह, अकबरपुर से देवेन्द्र सिंह भोले, हमीरपुर से पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल, फैजाबाद से लल्लू सिंह, गोंडा से कीर्ति वर्धन सिंह, डुमरियागंज से जगदंबिका पाल, जौनपुर से कृपा शंकर सिंह आदि का नाम है. अभी कुछ और नाम सामने आ सकते हैं. 

इसी तरह  2022 के विधानसभा चुनाव में 49 विधायक ठाकुर समाज से जीतकर विधानसभा मे पहुंचे हैं, जिनमें बीजेपी गठबंधन से 43, सपा से 4, बसपा से एक और जनसत्ता पार्टी से राजा भैया हैं. सहारनपुर के देवबंद से लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने वाले बृजेश सिंह को योगी सरकार में लोक निर्माण विभाग के राज्यमंत्री के रूप में जगह दी गई है. इसके अलावा ठाकुर समाज से आने वाले सत्येंद्र सिसोदिया को पश्च‍िमी यूपी में भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है.

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