अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन को एक साल हो गये. तब सिंगर स्वाति मिश्रा का एक गीत हर तरफ गूंज रहा था, ‘राम आएंगे...’ - और राम आ भी गये. राम के आने के साल भर बीत भी गये.
ये तो है कि अयोध्या आंदोलन के सहारे ही बीजेपी केंद्र की सत्ता तक दोबारा पहुंची, और फिलहाल यूपी की सत्ता पर काबिज है. जहां बीजेपी के महाकुंभ में सेलीब्रेट करने की बात है, तो मेला सर्किट हाउस के त्रिवेणी संकुल में यूपी कैबिनेट की बैठक भी तो होने जा ही रही है.
राम के अयोध्या आ जाने की खुशी हिंदू समाज महाकुंभ में डुबकी लगाकर सेलीब्रेट कर रहा है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी अब भी मायूस है, और ये मायूसी तभी खत्म होगी जब मिल्कीपुर उपचुनाव के नतीजे उसके पक्ष में आ जायें.
राम मंदिर उद्घाटन की सालगिरह
22 जनवरी, 2024 को हुआ राम मंदिर उद्घाटन समारोह, असल में अयोध्या आंदोलन की पूर्णाहूति थी - और उसके बाद होने वाले आम चुनाव के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा दिया था, लेकिन बीजेपी लक्ष्य से बहुत दूर रह गई. 400 की कौन कहे, बीजेपी तो अपने बूते बहुमत का आंकड़ा भी नहीं छू सकी.
यूपी में बीजेपी पहले वाले चुनावों के मुकाबले आधी सीटों पर तो सिमट ही गई, अयोध्या क्षेत्र में पड़ने वाली फैजाबाद लोकसभा सीट भी हार गई - और जिस तरह से मिल्कीपुर उपचुनाव को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आमने सामने भिड़े हुए हैं, प्रतिष्ठा तो अब भी दांव पर ही है.
22 जनवरी की तारीख को लेकर हाल फिलहाल एक और बहस छिड़ी हुई है, असली आजादी को लेकर. देश को मिली आजादी को लेकर बहस तो अपनी तरफ से कंगना रनौत भी चलाने की कोशिश कर चुकी हैं, लेकिन उनकी तरफ से दी गई ‘2014 के बाद देश को मिली आजादी’ वाली बात को गंभीरता ने नहीं लिया गया.
लेकिन, आजादी को लेकर जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत कुछ कहें, तो बहस तो होनी ही है. रिएक्ट तो लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी किया है.
अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के दिन को याद करते हुए हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत का कहना था, 15 अगस्त 1947 को… भारत को, अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी मिलने के बाद, एक लिखित संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया गया था… लेकिन उस समय की भावना के अनुसार, दस्तावेज का पालन नहीं किया गया… भारत, जिसने कई शताब्दियों तक उत्पीड़न का सामना किया था, उसे सच्ची आजादी, उस दिन हासिल हुई थी.
2025 के अपने पहले ‘मन की बात’ कार्यक्र में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे थे, प्राण प्रतिष्ठा की ये द्वादशी भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनर्स्थापना की द्वादशी है.
शब्दों में थोड़ी हेर फेर भले लगे, लेकिन राजनीतिक भाव बिल्कुल एक हैं - और यही बहस का लब्बोलुआब भी है.
बीजेपी को अयोध्या का रिटर्न गिफ्ट बाकी है
बहुतों को तो बहुत उम्मीद थी, लेकिन कई ऐसे लोग भी मिलते हैं जिन्हें लगता था कि उनकी जिंदगी में राम मंदिर नहीं बन सकेगा. राम मंदिर निर्माण के रास्ते में बहुत सारी बाधाएं थीं, और रास्ता साफ करने वाले फैक्टर भी कई थे. सभी अपना अपना रोल निभा रहे थे.
हिंदुओं की लड़ाई का जिम्मा विश्व हिंदू परिषद ने अपने हाथ में लिया. थोड़ा आगे बढ़ते ही संघ भी साथ आ गया - और आंदोलन को राजनीतिक आवाज देने का श्रेय तो बीजेपी को ही जाएगा, लेकिन बदले में उसको क्या मिला. आज की तारीख में ये सबसे बड़ा सवाल है.
ये सवाल और भी गंभीर हो जाता है, जब राम मंदिर आंदोलन की पूर्णाहूति वाले साल में ही बीजेपी अयोध्या हार जाती है. तकनीकी तौर पर तो नाम फैजाबाद लोकसभा सीट है, लेकिन जिले का नाम तो बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही बदलकर अयोध्या कर दिया है - और अब मिल्कीपुर में प्रतिष्ठा फंसी हुई है.
बेशक मिल्कीपुर के नतीजे हिंदुत्व की राजनीति में बीजेपी को आगे की राह दिखाएंगे, लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि अयोध्या का रिटर्न गिफ्ट अभी बाकी है.
बीजेपी की तरफ से हाल फिलहाल प्रयागराज को भी अयोध्या जितनी ही अहमियत मिल रही है. और महाकुंभ को भी, जैसे राम मंदिर उद्घाटन हो.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो पहले से ही जुटे हुए हैं, लेकिन अयोध्या की तरह मोदी का भी साथ उनको मिलने वाला है. अपडेट ये है कि मोदी महाकुंभ में 5 फरवरी को पहुंचेंगे. अब इसे संयोग समझिये या प्रयोग मिल्कीपुर और दिल्ली में वोटिंग भी उसी दिन है.