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महाराष्ट्र चुनावों में नई सरकार पर ही नहीं भविष्य के इन चार मुद्दों पर भी लगेगी मुहर

Maharashtra Vidhan Sabha Chunav 2024: महाराष्ट्र का चुनाव कई मायनों में इस बार अनोखा है. जनता इस बार अपने लिए सरकार ही नहीं चुनने वाली है, बल्कि उससे भी कुछ अधिक फैसला उसके वोट से होने वाला है. कम से कम 4 ऐसे फैसले होने वाले हैं जिनसे महाराष्ट्र की राजनीति प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगी.

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देवेंद्र फडणवीस , एकनाथ शिंदे और अजित पवार
देवेंद्र फडणवीस , एकनाथ शिंदे और अजित पवार

Maharashtra Chunav 2024: महाराष्ट्र विधानसभा के लिए आज बुधवार को वोट पड़ रहे हैं. जनता के सामने महायुति गठबंधन जिसमें (बीजेपी-शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार गुट) और महाविकास अघाड़ी गठबंधन( एनसीपी (एसपी) , शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस ) में किसी एक को चुनने का ऑप्शन है. अगर लोकसभा चुनावों के परिणामों पर एक नजर डालें तो ऐसा लगता है कि जनता महायुति से नाराज है. पर लोकसभा चुनावों के बाद अरब सागर में बहुत पानी बह चुका है. फिलहाल दोनों ही गठबंधनों के बीच जबरदस्त मुकाबला है. इस बीच महाराष्ट्र की जनता के सामने अपना विधायक चुनना बहुत आसान नहीं है. क्योंकि सब घालमेल हो गया है. जिस प्रत्याशी को वोट देना है वो अब दूसरे दल में है, जिस दल को वोट देना है उसका प्रत्याशी ही नहीं है. कई जगह पार्टी का वैलिड प्रत्याशी कोई और है दल किसी और को जिता रहा है. हिंदुत्व की विचारधारा और धर्मनिरपेक्षता की खिचड़ी बन चुकी है. एक ही गठबंधन के साथी एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं. कुल मिलाकर महाराष्ट्र के मतदाता के सामने बड़ी विकट परिस्थिति है कि वो किसको वोट दे. महाराष्ट्र में इस बार का वोट केवल नई सरकार चुनने का ही फैसला लेकर नहीं आने वाली है. और भी कई ऐसे महत्वपूर्ण चीजें हैं जिनका फैसला इस बार के चुनावों में होने वाला है. आइये देखते हैं.

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1-रियल शिवसेना कौन, शिंदे या यूबीटी? इस बार लग जाएगी मुहर 

महाराष्ट्र में कभी हिंदू हृदय सम्राट के रूप में राज करने वाले बाला साहब ठाकरे के नाम का कभी जलवा कभी पूरे भारत में होता था. अब उनकी विरासत का सवाल है. प्रदेश के वर्तमान सीएम एकनाथ शिंदे बाला साहब के अनन्य भक्त और सहयोगी रहे हैं. उद्धव ठाकरे के साथ भी उन्होंने अपनी पार्टी भक्ति को उसी तरह दिखाय जिस तरह बाला साहब के साथ थे. पर पार्टी की अंदरूनी राजनीति और उद्धव ठाकरे के व्यवहार और भारतीय जनता पार्टी की जोड़ तोड़ की राजनीति के चलते शिवसेना 2 भागों में बंट गई. आधे अधिक लोग शिवसेना शिंदे गुट के साथ आ गए. उद्धव ठाकरे के पास न मूल पार्टी रही और न ही चुनाव चिह्न. बीजेपी ने आगे बढ़कर एकनाथ शिंदे को प्रदेश का सीएम बना दिया. आम लोगों और कार्यकर्ताओं के नजदीक होने का लाभ शिंदे को मिला. लोकसभा चुनावों में जीत की स्ट्राइक रेट उनकी उद्धव सेना के मुकाबले बेहतर रही. अब सवाल उठता है कि क्या विधानसभा चुनावों में भी शिंदे सेना को उद्धव सेना पर बढ़त हासिल होगी. यह चुनाव शिवसेना के लिए निर्णायक होने वाला है. अगर एक बार फिर उद्धव सेना को महाराष्ट्र में मात मिलती है तो यह उनके और उनकी पार्टी के लिए घातक साबित होगा. एकनाथ शिंद अगर बढ़िया प्रदर्शन करते हैं और हंग असेंबली बनती है तो बहुत मुमकिन है कि एक बार फिर प्रदेश का मुख्य़मंत्री पद उन्हें ही मिले.

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2-रियल एनसीपी कौन है? 

महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार की राजनीति की शायद यह अंतिम पारी हो . इस तरह का उन्होंने खुद संकेत दिया है. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कभी सर्वे सर्वा रहे शरद पवार को धोखा उन्हीं के भतीजे अजित पवार से मिला है. अगर राजनीतिक आंकड़ों की बात करें तो लोकसभा चुनावों में अजित पवार को जिस तरह जनता ने नकार दिया उससे तो यही लगता है कि विधानसभा चुनावों में भी ऐसा हो सकता है. जिस तरह शरद पवार ने अपनी खोई हुई साख को फिर से पाने के लिए मेहनत की है उसका फल उन्हें मिल सकता है. पर महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार और अजित पवार के बीच किस तरह के संबंध हैं यह समझना बहुत ही मुश्किल है. जिस तरह शरद पवार के रानजीतिक कदम रहें हैं उससे तो कई बार लगता है कि दोनों पवार मिले हुए हैं. अभी हाल ही में 2019 में महाराष्ट्र की सरकार बनाने का खुलासा अजित पवार ने किया था उससे तो यही लगता है कि बीजेपी में आकर दूसरे दिन एनसीपी में वापसी सिनियर पवार की रणनीति का हिस्सा था. वैसे भी अगर महाराष्ट्र में हंग असेंबली आती है तो अजित पवार और शरद पवार एक साथ दिख सकते हैं. अजित पवार ने अपनी पार्टी में बोल रखा है कि कोई भी शख्स सीनियर पवार के बारे में अपमानजनक कुछ नहीं बोलेगा. 

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3-बीजेपी को बड़ा भाई महाराष्ट्र में बनना है या नहीं 

भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में बड़ा भाई बनने के लिए बहुत दिनों से संघर्ष कर रही है. यही कारण था कि शिवसेना और बीजेपी की बरसों पुरानी मित्रता दांव पर लग गई. उद्धव ठाकरे 2019 में कम सीट होने के बावजूद खुद को सीएम बनाने की मांग पर अड़ गए. बीजेपी ने इनकार कर दिया तो उन्होंने कांग्रेस और एनसीपी के साथ महाविकास अगाड़ी बनाकर खुद सीएम बन गए. पर दुर्भाग्य से बीजेपी को फिर भी अपना मुख्यमंत्री बनाने का सौभाग्य नहीं मिला. शिवसेना और एनसीपी को बंट गई. दोनों का एक एक धड़ा बीजेपी के साथ महायुति गठबंधन में शामिल है. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है फिर भी सीएम का पद एकनाथ शिंदे को देना पड़ा. ठीक वैसे ही जैसे बिहार में विधायकों की संख्या अधिक होने के बावजूद नीतीश कुमार को सीएम बनाए रखना मजबूरी है. कुछ दिनों पहले डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने बयान दिया कि हमारे अगले सीएम एकनाथ शिंदे ही होंगे. पर अभी इसी हफ्ते गृहमंत्री अमित शाह ने संकेत दिए हैं कि महाराष्ट्र का सीएम कौन होगा अभी तय नहीं होगा. अगर बीजेपी को पर्याप्त बहुमत मिल जाता है तो जाहिर है कि सरकार में सीएम बीजेपी का ही होगा. पर अगर थोड़ी सीट भी कम होती है तो बीजेपी के लिए मुश्किल होगा महायुति को एकजुट रखना. इसलिए इस बार का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्या बीजेपी अपना सीएम बनाने में सफल हो पाती है.

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4-खिचड़ी विचारधारा की राजनीति का भविष्य

महाराष्ट्र की राजनीति में इस बार विधानसभा चुनावों में जिस तरह विचारधारा की खिचड़ी पकी है उसका मिसाल मिलना नामुमकिन है. महायुति में शामिल एनसीपी अजित पवार ने जिस तरह डंके की चोट पर बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ अपनी चलाई है वह शायद पहली बार है. बीजेपी बस सुनती रही है. अब बीजेपी की कौन सी ऐसी मजबूरी थी कि वह अजित पवार के हर उस फैसले को भी बर्दाश्त करती रही जो उसकी नीतियों के बिल्कुल खिलाफ था. नवाब मलिक बीजेपी और उसके बड़े नेताओं यहां तक कि पीएम के बारे में भी बहुत कुछ बोलते रहे हैं. उनपर दाउद इब्राहिम के सहयोगी होने का आरोप रहा है. ईडी ने पिछले साल उन्हें गिरफ्तार भी किया था. पहले अजित पवार ने बीजेपी के विरोध के बावजूद उनकी बेटी को टिकट दिया. बाद में नवाब मलिक को भी टिकट दे दिया . बीजेपी विरोध दर्ज कराती रह गई. इसी तरह अजित पवार ने सीधे शब्दों में बंटेंगे तो कटेंगे का विरोध किया. यहां तक कि अजित पवार ने बीजेपी के बड़े नेताओं की सभा भी अपने कैंडिडेट के लिए नहीं कराई. हालांकि पीएम मोदी का आशीर्वाद लेते रहे.इसी तरह महाविकास अघाड़ी में भी विचारधारा की खिचड़ी खूब पकी है. शिवसेना यूबीटी और कांग्रेस-एनसीपी (एसपी) का गठबंधन ही बेमेल था. अब जनता के वोट से तय होगा कि देश में ये खिचड़ी राजनीति का क्या भविष्य है?

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