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RSS को योगी में नजर आने लगा 'भविष्य', जानिए संघ प्रमुख से मथुरा में हुई मुलाकात में ऐसा क्या हुआ । Opinion

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पिछले दिनों मथुरा मंथन के दौरान हुई मुलाकात के बाद मीडिया में अटकलों का बाजार गर्म है. क्या संघ अब योगी को अचानक महत्व देने लगा है. पर यह कितना सही है आइये देखते हैं...

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उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ

लोकसभा चुनावों में यूपी में बीजेपी की भद पिटने के बाद प्रदेश भाजपा में जबरदस्त अंसतोष का माहौल उभर कर आ रहा था. कई बार ऐसा लगा कि दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने सीएम योगी के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल रखा है. कई बार ऐसी परिस्थितियां बनती दिखीं कि योगी कहीं बीजेपी की अंदरूनी राजनीति के शिकार न हो जाएं. पर किसी बाजीगर की भांति सीएम योगी एक बार फिर इस तरह मजबूत होकर उभर रहे हैं जैसा बहुत से लोगों ने सोचा भी नहीं होगा. हाल ही में मथुरा में हुई आरएसएस की दो दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक में जिस एक अतिथि ने सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित किया वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही थे. यहां उन्होंने न केवल संघ के शीर्ष नेताओं के साथ बंद कमरे में गुफ्तगू की, बल्कि उन्होंने कुछ ऐसे प्रस्ताव भी रखे जो भविष्य में पूरे भारत और हिंदू समाज पर प्रभाव डालने वाले साबित हो सकते हैं. इतना ही नहीं इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर को माने तो आरएसएस ने उन्हें भविष्य भी कहा है.

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1-कुछ पिछड़े और अन्य हिंदू समुदायों को भी कुंभ में शामिल कराने की योजना

जब भी किसी राज्य में आरएसएस की बैठक हो रही होती है तो समान्यतः भाजपा के मुख्यमंत्री शामिल होते ही रहे हैं. यह असामान्य नहीं है. लेकिन मथुरा में जिस तरह योगी आदित्यनाथ की लंबी बातचीच संघ नेताओं के साथ हुई वैसा पहले कभी नहीं हुआ था. इसके साथ ही योगी आदित्यनाथ द्वारा उठाए गए मुद्दे भी खास हो गए. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस ने बताया कि आदित्यनाथ ने उनसे कर्नाटक के प्रमुख ओबीसी समुदाय जैसे लिंगायत और कुछ आदिवासी समुदाय जो अभी तक कुंभ में शामिल नहीं होते रहे हैं उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने में मदद करने का अनुरोध किया. यूपी सीएम ने कहा कि इन समुदायों तक पहुंचना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे या तो ऐसे त्योहारों से दूर रहे हैं या उन्हें कभी आमंत्रित नहीं किया गया है. गौरतलब है कि अगले साल प्रयागराज में बड़े पैमाने पर कुंभ मेला आयोजित होने जा रहा है. जिसमें हिंदुओं का बडा वर्ग शामिल होता है. 

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संघ के शीर्ष नेताओं के साथ 45 मिनट की बंद कमरे में हुई बैठक के दौरान आदित्यनाथ ने इस मुद्दे पर विस्तार से बात की. यूपी सीएम की बातों से सहमत एक वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी ने कहा, यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर आरएसएस भी काम कर रहा है. कर्नाटक के लिंगायत, महाराष्ट्र के कारवी और केरल में कुछ संप्रदायों ने कुंभ से दूरी बनाए रखी है. पहले उन्हें साथ लाने का कोई प्रयास नहीं किया गया. हम इस पर काम कर रहे हैं. स्वामीनारायण संप्रदाय भी पहले कुंभ से दूर रहता था जिसे पिछले कुंभ में बुलाया गया और वे शामिल भी हुए.

2-योगी और आरएसएस के बीच की केमिस्ट्री 

योगी आदित्यनाथ बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं. इसमें अब कोई दो राय नहीं हो सकती. जिस तरह उन्हें देशभर से प्रचार के लिए बुलाया जाता है यह उनकी लोकप्रियता का ही सबूत है. इसके साथ ही उनके दिए गए भाषण और उनकी कार्यशैली को देश भर में फॉलो किया जाता है. अब उनकी कार्यशैली पर संघ ने भी मुहर लगा दी है. पर जिस तरह से वो लिंगायत समुदाय और आदिवासी समुदायों को कुंभ में शामिल कराने को लेकर एक्टिव हैं और उनके इस मुद्दे को संघ का सपोर्ट मिल रहा है यह आश्चर्यजनक है. यह संभवतः अपने राज्य से बाहर समुदायों तक पहुंचने का उनका पहला प्रयास है – जो पैन इंडिया लीडर बनने के लिए बेहतर कदम है.

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जिस तरह मथुरा बैठक में आदित्यनाथ और आरएसएस के नेताओं की 45 मिनट तक बंद कमरें में बैठक हुई यह भी दर्शाता है कि अब योगी संघ के सबसे दुलारे नेता बन चुके हैं.संघ के साथ उनके बढते संबंधों को इस तरह भी देख सकते हैं कि सीएम योगी ने जो संघ को सुझाव दिया वो उसे किस तरह अंजाम दे रहा है. योगी ने सुझाव दिया कि संघ अपने शताब्दी वर्ष समारोह के हिस्से के रूप में घोषित पांच प्रण (पांच प्रतिज्ञा) को बढ़ावा देने के लिए कुंभ मंच का उपयोग करे, जिसमें सामाजिक सद्भाव से लेकर पर्यावरण संरक्षण तक के मुद्दे शामिल हों.

3-योगी को भविष्य बोलने का क्या आशय है

इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि आरएसएस के वरिष्ठ नेता ने उन्हें भविष्य कहते हुए कहा कि योगी जी संघ से नहीं हैं, लेकिन वे राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं. जो भी हमारी विचारधारा साझा करता है, वह हमारा है. पूरा देश उन्हें हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में स्वीकार करता है, वह विचारधारा का भविष्य उनमें देखता है. हम समाज के निर्णय पर सवाल उठाने वाले कौन हैं? आरएसएस सूत्रों ने कहा कि यदि संघ संगठनात्मक ताकत का प्रतिनिधित्व करता है, तो सीएम अपनी करिश्माई राजनीतिक नेतृत्व के साथ इसके पूरक हैं.

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जिस तरह संघ ने योगी के नारे बंटेंगे तो कटेंगे को अहमियत दी है वह भी उन्हें भविष्य बताने की पीछे की एक वजह के रूप में स्थापित होता है. मथुरा बैठक में बोलते हुए आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने योगी के इस नारे को बोलकर संघ की मुहर लगा दी है.

4-संघ से कभी बहुत दूर थे योगी

आदित्यनाथ की राजनीतिक यात्रा में आरएसएस के संस्थागत ढांचे का कोई रोल नहीं रहा है. कॉलेज के दिनों में कुछ दिन एबीवीपी से जुड़े रहने के अलावा, वह हिंदू महासभा की वैचारिक परंपरा से जरूर संबद्ध रहे हैं. आरएसएस और हिंदू महासभा के पारंपरिक रूप से भिन्न विचार रहे हैं, जबकि दोनों ही हिंदुत्व की विचारधारा से संबंधित रहे हैं.

हालांकि हिंदुत्व के मुद्दों पर उनकी आक्रामकता और कानून को पालन कराने वाली उनकी सख्त छवि जैसे कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए एनकाउंटर पॉलिसी और बुलडोजर को हथियार बनाने आदि के चलते उन्हें आरएसएस का प्रिय बना दिया.

हालांकि अभी कुछ दिनों पहले तक दोनों के बीच में एक किस्म का रहस्यमय संदेह बरकराथ था. कुछ दिन पहले गोरखपुर में हुई आरएसएस की एक बैठक में सीएम और संघ के नेताओं की मुलाकात हुई या नहीं इस पर बहुत सी बाते हुईं. कुछ अखबारों ने बकायदा दोनों के मिलने की  जगह और समय तक के बारे में बताया. पर दोनों ही तरफ से यह कहा गया कि संघ प्रमुख मोहन भागवत और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की मुलाकात नहीं हुई.

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इसे एक उदाहरण से और समझ सकते हैं. आज से दो साल पहले की बात है, संघ के नेता दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ में संक्षिप्त प्रवास पर थे. लेकिन लखनऊ आने के पहले वह केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत अन्य के साथ बैठक कर चुके थे. बताते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने अपनी तरफ से दत्तात्रेय होसबोले से मिलने की कोई पहल नहीं की. वह लखनऊ से मिर्जापुर के दौरे पर चले गए. मिर्जापुर से गोरखपुर और अपने तय कार्यक्रम के अनुसार व्यस्त हो गए. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दत्तात्रेय होसबोले ने मुख्यमंत्री की व्यस्तता देखकर एक दिन और प्रवास किया. फिर भी योगी की तरफ से मिलने का कोई संकेत न मिलने पर वह लौट गए. लेकिन, अब स्थिति बदल गई है.

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