गौतम बुद्ध अपने दौर में लगातार यात्रा करते रहते थे, और आम तौर पर उनके शिष्यों का एक बड़ा दल उनके साथ रहता था. रास्ते में,आम तौर पर भिक्षु कई घरों में आश्रय लिया करते थे. गौतम ने उनके लिए एक नियम बनाया था कि उन्हें किसी स्थान पर दो दिन से ज्यादा नहीं रहना चाहिए ताकि मेजबानों पर ज्यादा बोझ न पड़े. अन्यथा, दस लोगों को एक महीने तक घर में टिकाना ज्यादातर घरों के लिए बहुत कठिन होगा. यह बस एक दिन भी हो सकता है, लेकिन दो दिन की अनुमति थी क्योंकि वे लंबी दूरी चल रहे होंगे और सुस्ताने के लिए उन्हें थोड़ा समय चाहिए.
हालांकि, गौतम ने कहा कि मानसून के समय वे एक जगह पर दो से ढाई महीने रुक सकते हैं, क्योंकि उस समय जंगल से होकर चलना जोखिम भरा हो सकता है और कई लोगों की जान जा सकती है. तो, वे एक बड़े नगर में रुकते थे और कई घरों में आश्रय लेते थे.
मानसून के एक मौसम में, भिक्षु किसी नगर में लोगों से भिक्षा लेने के लिए बाहर गए. आनंद, जो भिक्षु बनने से पहले गौतम का बड़ा चचेरा भाई था, बाहर गया और उसने नगर में एक वेश्या से भिक्षा प्राप्त की. वेश्या ने उस पर नजर डाली और कहा,- वह एक सुंदर लंबा और सीधा युवक था- ‘मैंने सुना है कि भिक्षु आश्रय की तलाश में हैं. तुम आकर मेरे घर में क्यों नहीं रहते?’ आनंद ने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उसे बुद्ध से पूछना चाहिए कि उसे कहां रहना चाहिए. औरत ने उसे ताना मारते हुए कहा, ‘ओह, तुम अपने गुरु से पूछने जा रहे हो? जाकर उनसे पूछो. देखते हैं कि वे क्या कहते हैं.’
आनंद ने दिन में जो कुछ इकट्ठा किया था उसे लाकर गौतम के चरणों में रख दिया और फिर पूछा, ‘इस स्त्री ने मुझे आमंत्रित किया है. क्या मैं वहां रह सकता हूं?’ गौतम ने कहा, ‘अगर वह तुम्हें इतने स्नेह से आमंत्रित कर रही है, तो तुम्हें वहां जाकर रहना चाहिए.’ जब उनके आस-पास इकट्ठा हुए नगर के लोगों ने यह सुना, तो शोर मच गया. उन्होंने कहा, ‘एक भिक्षु किसी वेश्या के घर में कैसे रह सकता है? यह आध्यात्मिक प्रक्रिया भ्रष्ट हो गई है.’ गौतम ने कहा, ‘आप इतना चिंतित क्यों हैं? समस्या क्या है?’ वे सब खड़े होकर चिल्लाने लगे.
गौतम ने कहा, ‘रुकिए! मैं इस मार्ग पर इसलिए हूं क्योंकि मैं देखता हूं कि यह जीने का सबसे शक्तिशाली तरीका है. लेकिन आप लोग मुझे बता रहे हैं कि उसके तरीके मेरे तरीकों से ज्यादा शक्तिशाली हैं. अगर यह सच है तो मुझे भी जाकर उसके साथ रहना चाहिए.’ अगर आप सच्चे साधक हैं तो इसे वैसा ही होना चाहिए. अगर आप किसी को अधिक ऊंचा पाते हैं, तो आपको उसके लिए जाना चाहिए. फिर भी, कई लोग चिल्लाते रहे और उनमें से कई चले गए.
आनंद जाकर वेश्या के घर में रहा. मानसून ऋतु होने के कारण, ठंड हो गई और भिक्षु पतले वस्त्र पहने था, तो वेश्या ने उसे ओढ़ने के लिए एक सुंदर रेशमी कपड़ा दे दिया. उसने खुद को उससे ढंक लिया. लोगों ने यह देखकर कहा, ‘देखो, वह जा चुका है!’ उसने अच्छा भोजन बनाया और भिक्षु को परोसा, और उसने खाया. शाम को, उसने भिक्षु के लिए नृत्य किया. उसने बैठकर बहुत सावधानी से, पूरी एकाग्रता से नृत्य को देखा. जब लोगों ने संगीत की आवाज सुनी तो उन्होंने कहा, ‘बस यही बाकी था, वह खत्म हो गया है.’ चीजें चलती रहीं. जब बरसात रुकी और जाने का समय आया, तो आनंद गौतम के पास आया... और उसके साथ एक स्त्री भिक्षु भी आई.
किसी मनुष्य में सत्य को खोजने की लालसा ऐसी चीज नहीं है, जिसे लोगों को सिखाया गया है. मानव बुद्धिमत्ता के लिए सर्वोच्च को खोजना स्वाभाविक बात है. अभी, वे किसी चीज में फंसे हो सकते हैं - शराब, नशीली दवाएं, सामाजिक नाटक, या किसी दूसरे से बेहतर होना - लेकिन उनकी आकांक्षा सर्वोच्च के लिए है. हमें उन्हें बस इतना समझाना है कि बेहतर सर्वोच्च मौजूद हैं.
कई साधु, संत, योगी, और गुरु ऐसा हमेशा से कर रहे हैं लेकिन वे अपने आस-पास के लोगों से ही बात कर सके. उनके समय में, उनमें से कइयों ने सिर्फ कृपा और ऊर्जा से असाधारण चीजें कीं, और अपने आस-पास लाखों लोगों को रूपांतरित किया और उन्हें सत्य के मार्ग पर लगाया.
लेकिन अब ऐसा समय आया है, जहां हमारी संचार करने की क्षमता ऐसी है कि हम सत्य को हर दरवाजे से अंदर पहुंचा सकते हैं और हर किसी के मन और दिल पर दस्तक दे सकते हैं. ऐसा पहले कभी संभव नहीं था. सत्य की आकांक्षा और सत्य की खोज को धरती पर मुख्य ताकत बनाने के लिए यह अब तक का सबसे अच्छा युग है, क्योंकि हमारे पास ऐसे साधन हैं जो पहले किसी के पास नहीं थे. आइए इसे कर दिखाएं!