किसी भी मिट्टी को खेती योग्य होने के लिए, उसमें कम से कम 3-6% जैविक तत्व होने चाहिए. उत्तरी यूरोप में औसत जैविक तत्व 1.48% है, दक्षिण यूरोप में 1.1%, अमेरिका में 1.25-1.4%, भारत में 0.68%, और अफ्रीका में 0.3% है. दुनिया के बड़े हिस्सों में, यह 1% से काफी कम है. दुनिया भर में, एक भी देश में इसकी न्यूनतम मात्रा 3% नहीं है. वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि 2045 तक, हम आज से 40 कम अनाज उगा रहे होंगे और हमारी आबादी 9 अरब से ज्यादा होगी. यह ऐसी दुनिया नहीं है जिसमें आप रहना चाहेंगे या ऐसी दुनिया जो आप अपने बच्चों के लिए छोड़कर जाना चाहेंगे.
समाधान में कई बारीकियां हैं, जिनकी संख्या या जटिलता में कमी नहीं है लेकिन अगर हम कुछ हासिल करना चाहते हैं तो सबसे महत्वपूर्ण है एक-सूत्री कार्यवाही. सारे सम्मेलनों में से जिस एकमात्र सम्मेलन से सकारात्मक और निर्णयात्मक नतीजा निकला है, वह 1987 का मॉन्ट्रियल प्रोटाकॉल था जहां हमने ओजोन लेयर में छेद पर फोकस किया था. उसे काफी हद तक एक-सूत्री कार्यवाही के कारण ठीक कर दिया गया है. अब समय आ गया है जहां मिट्टी के लिए उस तरह की कार्यवाही की जरूरत है.
मुख्य रूप से, हमारी समस्या यह है कि दुनिया की 71% जमीन पर खेती होती है और पक्की जमीन 4.2% है. इससे धरती पर फोटोसिंथेसिस की मात्रा कम हो गई है जो कार्बन को अलग करने और ऑक्सीजन पैदा करने की एक बड़ी प्रक्रिया है. फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया से पहले वातावरण में औसत ऑक्सीजन मात्रा 1% से थोड़ी ज्यादा थी. आज यह 21% है लेकिन पिछले हजार सालों में, फोटोसिंथेसिस 85% तक नीचे आ गई है.
इसे ठीक करने के लिए शहरी जमीन को थोड़ा ज्यादा हरा बनाने के अलावा हम कुछ ज्यादा नहीं कर सकते. ठीक करने का असली काम कृषि-भूमि पर ही होगा, जिस ओर हर दिन लोग रुख कर रहे हैं. वहां हम क्या कर सकते हैं? सबसे महत्वपूर्ण चीज वहां पर सूक्ष्मजीवों के लिए जैविक तत्व के रूप में थोड़ा भोजन डालना है. वही सारे जीवन का आधार हैं. जैविक तत्वों को बढ़ाना चाहिए.
हम पर्यावरण के दूसरे मुद्दों पर ध्यान देना जारी रख सकते हैं लेकिन जटिल मुद्दों और उनके समाधान में, अमल करना एक बड़ी चुनौती बन जाता है. क्योंकि अमल जमीन पर होना होता है और जमीन को किसान संभालते हैं, वैज्ञानिक नहीं. तो, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि प्रोत्साहन-आधारित, एक-सूत्री कार्यक्रम लाया जाए.
किसानों के लिए तीन-चरणों वाले प्रोत्साहन
हर देश 3% जैविक तत्व को एक न्यूनतम औसत निर्धारित कर सकता है और किसानों को वहां पहुंचने की आकांक्षा करने के लिए आकर्षक प्रोत्साहन दे सकता है. उद्योग और बिजनेस, किसानों के लिए द्वितीय स्तर के प्रोत्साहन के रूप में कार्बन क्रेडिट प्रणाली लागू कर सकते हैं. तृतीय स्तर के प्रोत्साहन को, उस तरीके को बदलकर तय किया जा सकता है, जिस तरीके से बाजार में भोजन पर लेबल लगाया जाता है. अभी, फल और सब्जियों पर ‘ऑर्गेनिक’ का लेबल लगाया जा रहा है जैसे कि दूसरे भोजन इनॉर्गेनिक हों, ऐसा नहीं है. साथ ही, किसी उत्पाद में उर्वरक और कीटनाशक की मात्रा को नापना अत्यंत कठिन है. सबसे सरल चीज मिट्टी में जैविक तत्व को नापना है.
उन जमीन से आने वाले कृषि उत्पाद- फल, सब्जियां, अनाज जिनमें जैविक तत्व 3% तक आ गया है. उन्हें बाजार में अलग अलमारी में रखा जाना चाहिए. हमें यह बताने के लिए पर्याप्त विज्ञान मौजूद है कि जिस खेत में 3% जैविक तत्व हैं, उससे प्राप्त भोजन में क्या सूक्ष्म पोषक तत्व मौजूद हैं, उसके क्या स्वास्थ्य लाभ हैं. जब स्वास्थ्य सेवा पर दबाव कम होता है और देश की आबादी अधिक स्वस्थ और खुश रहती है तो कार्य-दिवस, उत्पादकता और रचनात्मकता के संदर्भ में, उससे देश को कितना लाभ मिला है. किसानों को इन तीन-चरण वाले प्रोत्साहनों से, यकीनन मिट्टी विलुप्त होने की यह आपदा कम होनी शुरू होगी.
लुप्त होती जा रही हैं सूक्ष्मजीवों की प्रजातियां
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, हर साल सूक्ष्मजीवों की 27 हजार प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं. इस दर से अगले 30-35 साल में हम ऐसे मुकाम पर पहुंच जाएंगे जहां अगर हम अपना सब कुछ लगा दें तो भी हालात को बदल नहीं पाएंगे. क्योंकि हम न लौट सकने वाली जगह पहुंच चुके होंगे. लेकिन अभी हमारे सामने यह चुनौती है और सौभाग्य भी है कि हम अभी कार्यवाही कर सकते हैं. हम वह पीढ़ी हो सकते हैं जो आपदा की कगार से वापस लौट आई है. यह देखना चाहूंगा कि हम सब इसके लिए मेहनत करें. मेरी यह अपील आपमें से हर किसी से है. मैं चाहता हूं कि COP15 बस एक और सम्मेलन के रूप में नहीं, बल्कि एक ठोस, अमल योग्य कार्यवाही के रूप में समाप्त हो जहां हम आने वाले कुछ सालों में एक स्पष्ट बदलाव देखेंगे.