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व्यंग्यः बाउंड्री से बॉल लाने लगे ऑटो और ई-रिक्शा... मंगोलिया ने उतारा चंगेज़ का क़र्ज़!

मंगोलिया के क्रिकेटर्स का नेपाल के खिलाफ खेलते हुए दम फूल गया. दरअसल, मंगोलिया के लोग भले हैं, विचार करते हैं कि सदियों पहले चंगेज़ खां ने दुनिया को बड़ा सताया था. अब दुनिया की खुशी में हमारी खुशी है. इस बात पर वे नेपाल को बिना लड़े जीत जाने देते हैं.

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क्रिकेट में नेपाल ने मंगोलिया को हरा दिया
क्रिकेट में नेपाल ने मंगोलिया को हरा दिया

आईसीसी की एशियाई क्रिकेट का चीरहरण हो गया! दिन दहाड़े कपड़े फाड़ दिए गए! हांगझाऊ एशियन गेम्स में नेपाल ने टी-20 इतिहास में पहली बार ठोंक दिए 314 रन..! एक खिलाड़ी तो इतनी विकट मार कुटाई पर उतरा कि सिर्फ 9 गेंदों में फिफ्टी ठोंक दी.

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मंगोलियाई खिलाड़ियों का बॉल के पीछे दौड़-दौड़कर फूल गया दम. ऐसी तबियत से ठुकाई हुई थी कि बॉउंडरी से बॉल लाने में मिनी बस और ऑटो तक लगाने पड़े थे. कुछ तो ई रिक्शा ले आए थे कि सुविधा रहेगी गुरू! बॉल जल्दी वापस ले आएंगे. खिलाड़ी मैदान पर भागे कम और थकान के मारे स्ट्रेचर पर लेटे ज्यादा.

मंगोलिया की तरफ बॉलिंग तू कर-तू कर...को लेकर ऐसी तू-तू, मैं-मैं हुई थी कि कप्तान को विकेटकीपर तक से ग्लव्स उतरवाने पड़ गए. कई बॉलर तो `चाबी कार में रह गई है लेकर आता हूं...बच्चे की पेरेंट-टीचर मीटिंग में जाना है..` गीज़र ऑन ही छोड़ दिया है अभी बंद करके आता हूं!` `पासबुक अपडेट करवाना है..!` जैसी हरकत पर उतर आए थे. हद तो तब हुई जब नेपाल के एक खिलाड़ी महज 34 गेंदों पर शतक जमाकर शर्माजी के लड़के रोहित का रिकॉर्ड भी जमींदोज़ कर दिया.

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नेपाल ने इतने रन बनाए कैसे? क्रिकेट स्कोरर का दिमाग भंड हो गया...कई रोते-किलपते रहे...कुछ तो पागल होते-होते बचे! हाय दैय्या, कैसे बना गए स्कोर...अब कौन पार कर पाएगा! फैब फोर कंट्रीज का क्या होगा? अब 9 से कम गेंदों में किससे हाफ सेंचुरी बनवा लोगे? गेल तो पतली गली से निकल लिया है. कौन उठाएगा ये बोझा!

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उधर, मंगोलिया में तो राष्ट्रीय रोना-किलपना मच हुआ है. सौ बरस पुराना एक बुढऊ तो टीले पर बैठकर छाती पीट रहा है. कई बार फिसलकर नीचे लुढ़क चुका है लेकिन फिर टीले पर चढ़ जाता है. पूरा देश उसे टीवी पर दिखा रहा है. कई चैनल उन एक्सपर्ट को तलाश रहे हैं जो स्टूडियो में बैठकर इस हार में जीत की तलाश कर बाजीगर बन सकें. आधा किलो मरहम लगा सकें.

मंगोलियाई टीम जब खेल रही थी तो पूरा देश जरूरी काम छोड़कर टीवी के सामने जुटा हुआ था. एक कुछ ज्यादा ही क्रिकेट प्रेमी था वो तो हर शॉट पर चीख-चीख कर लोटन कबूतर हुआ जा रहा था. वो तो साथ वाले ने उसे बताया कि जिनकी कुटाई चल रही है वे तो हमारे वाले हैं, तब माना... नहीं तो लोट-लोटकर रोनाल्डो हुआ जा रहा था.

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कई घरों में तो कुत्ते-बिल्लियों तक को सम्मानपूर्वक टीवी के सामने बिठाया गया था. टीम की तरह उनकी हालत भी खराब होती रही. उन्हें भी मालिक के साथ भौंक-भौंककर फिर काऊं...काऊंकर अपनी अपनी खुशी और दुख प्रकट करना पड़ा. बेचारों को स्वामीभक्ति के शाश्वत रिप्रजेंटेटिव होने की परंपरा का पालन करना था.

हालांकि वे तय ही नहीं कर पा रहे थे कि ऐसा अपना मालिक काहै पगलैट हुआ जा रहा है. कई सीनियर किस्म के कुत्ते तो इस सिचुएशन से ट्यूनिंग बैठा चुका थे. वे मालिकों की ऐसी भयंकर खुशी प्रकट करने के क्षणों में भी संयमित बने रहकर सिर्फ पूंछ हिलाकर काम चला रहे थे.

मालिक ज्यादा खुश हुआ तो टीवी पर देखकर सामने वाले खिलाड़ी पर ही भौंक दिया. वे खेल में ज्यादा टांग नहीं अड़ाते, मालिक पर नजर रखते हैं. कई मामलों में मालिक से भी ज्यादा व्यावहारिक होते हैं. बड़े खिलाड़ियों को देखकर जान चुके हैं कि उन्हें तो खेल के पैसे, विज्ञापन के पैसे, जीते तो जनता से पैसे, हारे तो कहीं और से भी पैसे यानि हर ओर से पैसे मिलते हैं. हमारा मालिक क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला टाइप दीवाना हुआ जा रहा है, इस पर ज्यादा दिमाग नहीं लगाते. इस कारण वे टीवी से ज्यादा मालिक पर नजर रखते हैं. मालिक उनके आईक्यू लेवल को नहीं जानता. वे बताना भी नहीं चाहते रोटी-पानी का जुगाड़ बना रहे इतना जरूरी है उनके लिए, इसलिए चेहरे पर भोलेपन-मूर्खता की ताजगी भरी चमक हमेशा रखते हैं. इसलिए कुत्तों का वफादारी ब्रांड्स सदियों से साख कायम रखे है. कुत्ते हैं इसलिए इन फिजूल की बातों पर ज्यादा नहीं सोचते. हल्की सी पूंछ हिलाकर ही मुद्दा उड़ा देते हैं.

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तो बात चल रही है मंगोलिया क्रिकेटरों की नेपाल के खिलाफ दुर्दशा की...वहां के लोग भले हैं, विचार करते हैं कि सदियों पहले चंगेज़ खां ने दुनिया को बड़ा सताया था...अब दुनिया की खुशी में हमारी खुशी है. इस बात पर वे नेपाल को बिना लड़े जीत जाने देते हैं. जिन एक्सपर्ट को लाया गया है उन्होंने निजी तौर पर बताया है कि मंगोलिया के लिए इस खेल में जीत हार से ज्यादा दुनिया की खुशी मायने रखती है. और रोटी-पानी का जुगाड़ चलता रहे कुत्तों की खुशी इसमें है.

पूरे दृश्य पर हम कोई टिप्पणी नहीं कर रहे हैं. लेकिन ए प्लस बी एजीक्यूल टू... जैसा सीधा-साधा समीकरण ऐसा बता रहा है. खैर, जाने दीजिए. समीकरणों की कौन परवाह करता है. समीकरण तो किताबों के लिए होते हैं. मंगोलिया ने हारकर भी कितनों के दिल जीते हैं आपको पता है कि नहीं?
तो इतने सरल समीकरण के तहत एक बेचारा देश दूसरे देश को जीत जाने देता है...हम ऐवैई ही आईसीसी ऐसे मैच करवाकर क्या हासिल कर रहा है... के नाम पर सिर धुनते रहते हैं.

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