शशि थरूर की किसी भी सलाह को कांग्रेस में कभी भी सीरियसली नहीं लिया गया. न तो किसी ने परवाह की गई, न ही कभी किसी ने ध्यान दिया है - लेकिन, ऐसी बातों से भी शशि थरूर को कोई फर्क नहीं पड़ा.
जब भी मौका मिलता है, शशि थरूर अपनी बात रखते जरूर हैं. कोई सुने, या न सुने. किसी को बुरा लगे तो लगे, शशि थरूर को परवाह नहीं रहती.
सलाह भी शशि थरूर की कोई मामूली तो होती नहीं, सीधे सीधे राहुल गांधी को टार्गेट करती है. और, वो भी उनके पसंदीदा राजनीतिक तेवर को चैलेंज कर डालती है.
कांग्रेस के G-23 के भी सदस्य रहे शशि थरूर, कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी लड़ चुके हैं. वो भी सोनिया गांधी की परमिशन लेकर, करीब करीब वैसे ही जैसे फिल्म बजरंगी भाईजान में सलमान खान परमिशन लेकर मुन्नी को छोड़ने के लिए पाकिस्तान पहुंच जाते हैं. जैसे फिल्म में सलमान खान को बजरंग बली का साथ मिलता है, शशि थरूर के साथ भी तिरुअनंतपुरम के लोग मजबूती से खड़े नजर आते हैं. तभी तो 2014 की प्रतिकूल परिस्थितियों से लेकर 2024 में बीजेपी के राजीव चंद्रशेखर को शिकस्त देकर बड़े आराम से हैट्रिक भी लगा डालते हैं.
शशि थरूर के बयान पर गौर करें तो वो राहुल गांधी की राजनीति पर बड़ी ही सख्त टिप्पणी है, जिसमें उनको सिर्फ नकारात्मकता ही नजर आती है - और इसीलिए बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी को शशि थरूर की सलाह मंजूर होगी, भले ही उसमें कांग्रेस के फायदे की ही बात क्यों न हो?
ऐसे में जबकि शशि थरूर के कांग्रेस में बने रहने पर सवाल उठ रहे हों, क्योंकि शशि थरूर कभी किसी बीजेपी नेता के साथ फोटो शेयर कर रहे हैं, तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार की तारीफ - कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में शशि थरूर के भाषण को समझना बहुत जरूरी हो जाता है.
थरूर की सलाह को राहुल गांधी की मंजूरी मिलेगी?
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर शशि थरूर की बातें खास मायने रखती है. देश की राजनीति में भी, केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी, शशि थरूर और उनके बयानों को गंभीरता से लेते हैं. अंग्रेजों से हर्जाना मांगने पर तारीफ भी करते हैं, और विदेश नीति के मुद्दे पर भरी संसद में कहते हैं, शशि जी आपके लिए नहीं कह रहा हूं - लेकिन कांग्रेस के भीतर उन्हीं शशि थरूर की बातें नक्कारखाने में तूती की ही आवाज साबित होती है.
फिर भी शशि थरूर हार नहीं मानते. अपनी राय जरूर देते हैं. भले ही भरी सभा में सोनिया गांधी उनको डांट देती हों. भले ही राहुल गांधी उनकी बातों को नजरअंदाज करते रहे हों, लेकिन वो अपनी धुन के पक्के लगते हैं. शायद यही वजह है कि बिना किसी अपेक्षा और परवाह के शशि थरूर ने एक बार फिर कांग्रेस नेतृत्व, विशेष रूप से राहुल गांधी को जरूरी सलाह दी है - लेकिन, सलाहियत भी ऐसी है कि राहुल गांधी पर कटाक्ष ही लगती है.
शशि थरूर कांग्रेस नेतृत्व को निगेटिविटी छोड़ने की सलाह दे रहे हैं. वो पहले भी राहुल गांधी को आगाह कर चुके हैं कि वो मोदी पर निजी हमले की जगह, सरकार और बीजेपी की नीतियों को टार्गेट करें - लेकिन ऐसी बातों के लिए कोपभाजन का ही शिकार होना पड़ा है. राहुल गांधी मोदी के साथ साथ आरएसएस, बीजेपी और और कारोबारी गौतम अडानी पर हमले रोकने के लिए राजी नहीं हैं.
कांग्रेस अधिवेशन में शशि थरूर ने कहा कि कांग्रेस को नकारात्मक आलोचना की नहीं, बल्कि उम्मीद, भविष्य और सकारात्मक विमर्श वाले राजनीति दल के रूप में आगे बढ़ना चाहिये. शशि थरूर का मानना है कि कांग्रेस को भविष्य की पार्टी होनी चाहिये, सिर्फ अतीत की नहीं.
कांग्रेस सांसद का कहना है, कांग्रेस को देश की जनता के सामने पॉजिटिव-विजन रखना होगा… हमें जनता को बताना होगा कि हमारे पास क्या रोडमैप है… अभी तक हम नेगेटिव कैंपेन ही कर रहे हैं, और बीजेपी को गलत बता रहे हैं.
शशि थरूर चाहते हैं कि कांग्रेस कांग्रेस की तरफ से लोगों को बताया जाये कि सत्ता में आने पर पार्टी लोगों के लिए क्या क्या करेगी. कोशिश होनी चाहिये कि भविष्य की बातें हों. शशि थरूर कहते हैं, ऐसा लगता है कि हम इतिहास के दौर की ही पार्टी बन गये हैं, और पुरानी बातों को ही दोहराते रहते हैं.
बात तो बिल्कुल सही है. गलत सिर्फ एक ऐंगल से है, निशाने पर राहुल गांधी आ जाते हैं.
राहुल गांधी को शशि थरूर की बातें भले ही नागवार गुजरती हों, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि सच ऐसा ही कड़वा होता है - फिर भी सवाल वही है, क्या राहुल गांधी ऐसी बातें सुनना भी चाहेंगे?
कांग्रेस के पुराने वोटर तक पहुंचे की कोशिश
देखा जाये तो राहुल गांधी की भी कोशिश है, और शशि थरूर भी लोगों से रिकनेक्ट होना चाहते हैं, लेकिन तरीका बिल्कुल अलग है - ये बात शशि थरूर ने तब भी कही थी, जब वो कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे थे.
राहुल गांधी भी तो कहते ही आ रहे हैं, हम ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम में ही उलझे रह गये, और ओबीसी समुदाय से हमसे दूर चला गया… हमें उनको जोड़ने के लिए प्रयास करने होंगे.
शशि थरूर भी कह रहे हैं, कांग्रेस को उन लोगों को वापस जोड़ने पर काम करना होगा, जो पिछले तीन लोकसभा चुनावों में पार्टी से दूर रहे हैं… ऐसे वोटर को साथ लाना होगा, जिनकी वजह से कांग्रेस सत्ता में आती थी.
कांग्रेस सांसद थरूर का मानना है कि अगर ऐसे लोगों को वापस लाया गया तो कांग्रेस 19-20 फीसदी के आंकड़े से ऊपर उठेगी, लेकिन वो अब तक उसी में उलझी हुई है. शशि थरूर की समझाइश है कि कांग्रेस को उन वोटर को साधने की कोशिश करनी चाहिये, जो 2009 में कांग्रेस के साथ थे.