क्या यह केवल संयोग है कि मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद अब पंजाब बीजेपी के प्रमुख सुनील जाखड़ को अपनी हवाई यात्रा में टूटी सीट मिली है? सुनील जाखड़ ने रविवार को चंडीगढ़-दिल्ली इंडिगो फ्लाइट की टूटी हुई सीटों की तस्वीरें शेयर कीं. हालांकि यह मामला पुराना है. उन्होंने जनवरी में यात्रा के दौरान यह फोटो खींची थी. जाखड़ का यह बयान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के एयर इंडिया की शिकायत के एक दिन बाद आया है. अभी 2 दिन पहले की बात है कि चौहान को भोपाल से दिल्ली की हालिया उड़ान में टूटी हुई सीट मिली थी. इसके बाद केंद्रीय मंत्री ने इस घटना का जिक्र करते हुए तंज कसा था कि एयर इंडिया पर टाटा समूह के अधिग्रहण के बाद उम्मीद थी कि कुछ सुधार होगा पर ऐसा कुछ भी नहीं. जाहिर है कि एक केंद्रीय मंत्री अगर इस तरह का ट्वीट करता है तो इसका मतलब है कि या तो सरकार में उसकी सुनी नहीं जा रही है या वो जानबूझकर किसी को टार्गेट करना चाहते हैं.
शिवराज चौहान के गुस्से पर क्यों हो रहा है संदेह
शिवराज चौहान आम तौर पर बेहद सुलझे हुए और जिम्मेदार किस्म के नेता हैं. अचानक किसी भी बात प्रतिक्रिया करना उनकी आदत में शुमार नहीं है. जो लोग उन्हें जानते हैं उनको यह यकीन नहीं हो रहा है कि इस तरह कैसे शिवराज अचानक एयर इंडिया और टाटा समूह को टार्गेट पर ले लिया. दरअसल शिवराज यह सवाल टाटा समूह से नहीं उठा रहे है. सवाल तो केंद्र सरकार और उड्डयन मंत्रालय से है. अगर कोई विभाग ठीक से नहीं काम कर रहा है उसके लिए जिम्मेदार पूरा मंत्रिमंडल है. टाटा समूह भी अगर टिकट का पैसा लेकर आम लोगों को सुविधाएं नहीं दे रहा है तो इसके लिए जिम्मेदार मंत्रालय है. शिवराज इस तरह अपनी व्यथा लिखते हैं जिससे लगता है कि वो जानबूझकर उड्डयन मंत्रालय का नाम नहीं लिख रहे हैं पर उनका निशाना वहीं पर है.
चूंकि एक केंद्रीय मंत्री सरकार का अहम हिस्सा होता है. संसदीय लोकतंत्र में कलेक्टिव रिस्पांसिबिल्टी का सिद्धांत चलता रहा है. मतलब किसी एक की सफलता या विफलता पूरे मंत्रिमंडल की सफलता या विफलता मानी जाती रही है. इसका मतलब ये रहा है कि अगर एक आदमी डूबता है तो सबको डूबना होता है. मतलब कि किसी एक को रिजाइन करने का मतलब पूरी सरकार के रिजाइन करने से होता रहा है. हालांकि अब इसका पालन बंद हो चुका है. पर नैतिक रूप से इसका असर अब भी है. किसी भी मंत्री की कामचोरी से होने वाला नुकसान पूरी सरकार को उठाना पड़ता है.
क्या शिवराज चौहान को यह ट्वीट करने से पहले अपने स्तर पर संबंधित विभाग से शिकायत नहीं करनी चाहिए थी? एक मंत्री की हैसियत से उन्हें उड्डयन मंत्रालय या उड्डयन मंत्री से बात करना चाहिए था. इसके बाद भी समस्या का सावधान नहीं होता तो उन्हें मंत्रिमंडल की बैठक में यह मामला उठाना चाहिए था. सोशल मीडिया पर कोई भी बात तब आनी चाहिए थी जब चारों ओर से वह निराश हो चुके हों. अगर इस तरह से किसी भी सरकार , प्रशासन या एमएनसीज के बड़े जिम्मेदार गलतियां गिनवाने शुरू करें तो जाहिर है किसी भी ऑर्गेनाइजेश में कलह का वातावरण पैदा होना लाजिमी होगा.
क्या अंदरूनी राजनीतिक हलचल का परिणाम है
कोई भी पावरफुल मंत्री जब इस तरह का सवाल उठाता है तो जाहिर है कि वो दबाव में होता है. और आम तौर पर इस तरह के फैसलों का परिणाम उसे भुगतना पड़ता है. याद करिए उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शुरूआती दौर में एक बेहद पावरफुल मिनिस्टर होते सिद्धार्थनारायण सिंह , जो लाल बहादुर शास्त्री के परिवार से आते हैं. उन्होंने एक बार ट्वीट करके यह जानकारी दी कि उनके सरकारी घर में बरसात का पानी छत से टपक रहा है. उन्होंने अपने ट्वीट में बाबूशाही ( ब्यूरोक्रेसी) पर तल्ख टिप्पणी की थी. इस ट्वीट का मतलब काफी कुछ वैसा ही है जैसा शिवराज सिंह चौहान के ट्वीट का मतलब है. उनके कहने का मतलब भी यही था कि नौकरशाही पर सरकार का नियंत्रण नहीं है. भविष्य में सिद्धार्थ नाराणय सिंह को मंत्रिमंडल से बाहर होना पड़ा .
हालांकि शिवराज के साथ ऐसा नहीं होने वाला है. शिवराज जनता के नेता हैं. चुनावों में उनकी अहमियत अभी भी बरकरार है. अभी उनमें इतनी कूवत है कि वो दर्जनों सीट पर खेल बना और बिगाड़ सकते हैं. इसके साथ ही उन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का हाथ है. इसके साथ ही केंद्र की मोदी सरकार भी ठीक-ठाक उनको महत्व मिल रहा है. इसलिए राजनीतिक गलियारों में एक और स्पेक्युलेशन किया जा रहा है कि क्या शिवराज के माध्यम से टाटा समूह या तेलुगुदेशम पार्टी को संदेश दिया जा रहा है.
क्या शिवराज खुद की अलग इमेज बनाना चाहते हैं
24 फरवरी को पीएम नरेंद्र मोदी की बिहार यात्रा से 2 दिन पहले शिवराज सिंह चौहान कृषि मंत्री की हैसियत से मखाना किसानों के बीच पानी लगे खेतों में पहुंचे हुए हैं. पानी में घुसे हुए किसानों के बीच शिवराज का विडियो सोशल मीडिया में देखने को मिल रहा है.मध्यप्रदेश में अपने शासन काल में मामा के नाम से लोकप्रिय हो चुके शिवराज चौहान कृषि मंत्री के रूप में अपनी अलग पहचान बनाना चाहते हैं. मध्य प्रदेश की सत्ता जाने के बाद भी कई बार उनके व्यवहार से लगता रहा है कि वो सुपर सीएम के रूप में खुद को देखना चाहते हैं. पर कभी कभी वो सत्ता में न रहने की पीड़ा भी बताते रहते हैं. एक कार्यक्रम में उन्होंने 'हैं' और 'थे' के बीच का अंतर बताया और साथ ही पीएम मोदी की तारीफ कर बयान को बैलेंस करने की कोशिश भी की. शिवराज ने कहा कि राजनीति में बहुत अच्छे कार्यकर्ता और मोदीजी जैसे नेता हैं जो देश के लिए जीते हैं. लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो रंग देखते हैं. मुख्यमंत्री हो तो चरण कमल के समान हैं और नहीं हो तो होर्डिंग से फोटो भी ऐसे गायब हो जाती है जैसे गधे के सिर से सींग. उन्होंने यह भी कहा कि लगातार काम में लगा हूं और मुझे एक मिनट की भी फुरसत नहीं है. अच्छा है कि कि राजनीति से हटकर काम करने का मौका मिल रहा है.
कुछ दिनों पहले सीहोर जिले के भेरुंदा पहुंचे शिवराज ने लाडली बहनों को संबोधित करते हुए कहा कि चिंता मत करना, 10 तारीख को खाते में पैसा आएगा. उन्होंने यह भी कहा कि बहन-भाई का रिश्ता विश्वास का होता है और इस विश्वास की डोर कभी टूटेगी नहीं. हद तो तब हो गई थी जब मोहन यादव की कैबिनेट ने पहला आदेश लाउड स्पीकर की तेज आवाज पर अंकुश को लेकर जारी किया. मोहन सरकार के आदेश में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का जिक्र करते हुए यह साफ कहा गया कि धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों पर निर्धारित डेसिबल के भीतर ही लाउड स्पीकर बजाना होगा. भेरुंदा में ही बैंड संचालकों ने सरकार के इस आदेश को लेकर शिवराज को ज्ञापन सौंपा. शिवराज ने बैंड संचालकों को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप बैंड बजाएं, ढोल बजाएं, ताशे बजाएं. कोई रोकेगा तो मैं देख लूंगा.