शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे हैं. ये कोशिश भी वो अपने बूते कर रहे हैं, क्योंकि बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है.
बीजेपी असल में विधानसभा चुनाव भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ रही है. वैसे ही जैसे गुजरात त्रिपुरा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में भी लड़ चुकी है. लेकिन नतीजे आलग अलग आये हैं.
ये सबको पता है कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के अलावा बीजेपी के पास कोई चेहरा नहीं है, लेकिन नेतृत्व को शायद ऐसी बातों से बहुत फर्क नहीं पड़ता. ऊपर से मध्य प्रदेश में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को टिकट देकर बीजेपी ने शिवराज सिंह चौहान का कद छोटा करने की भी कोशिश की है.
ऐसी तमाम बाधाओं के बावजूद शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश की राजनीति में सब पर भारी पड़ रहे हैं - वोटिंग से ठीक पहले आये एक सर्वे (CSDS Lokniti Poll) के नतीजे तो ऐसा ही बता रहे हैं, भले ही बीजेपी आलाकमान का अपना अलग आकलन हो. वैसे 3 दिसंबर को तो सब कुछ साफ हो ही जाना है - दूध का दूध, पानी का पानी!
सर्वे में सब पर भारी हैं शिवराज सिंह चौहान!
चुनाव मैदान में शिवराज सिंह चौहान का मुकाबला कांग्रेस के कमलनाथ से है. 2018 में कांग्रेस के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे, और करीब सवा साल तक इस पद पर बने भी रहे. कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला तो उसके पास कोई विकल्प नहीं था, लिहाजा शिवराज सिंह चौहान पर ही भरोसा करना पड़ा.
सर्वे में 2018-2020 की कमलनाथ सरकार और 2020-2023 के दौरान शिवराज सिंह चौहान के शासन की तुलना करते हुए सवाल पूछे गये, तो 36 फीसदी लोगों ने शिवराज सिंह सरकार को बेहतर बताया, जबकि 34 फीसदी लोगों की नजर में कमलनाथ सरकार का कामकाज बेहतर रहा.
और जब ये पूछा गया कि मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री किसे बनना चाहिये, तो भी ज्यादा लोग शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में ही खड़े नजर आये.
सर्वे में शामिल 38 फीसदी लोग शिवराज सिंह चौहान को ही फिर से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं, लेकिन 34 फीसदी लोग ऐसे भी मिले जो चाहते हैं कि कमलनाथ ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें.
मुख्यमंत्री पद को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर के बारे में पूछा गया, और लोगों के जवाब दोनों नेताओं के लिए निराश करने वाले रहे. महज 4 फीसदी लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया और सिर्फ 2 फीसदी लोग नरेंद्र सिंह तोमर को मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.
शिवराज के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है क्या?
चुनाव चाहे किसी भी स्तर का क्यों न हो, सत्ता विरोधी फैक्टर बहुत मायने रखता है. अगर जनता सरकार के कामकाज से नाराज है तो सत्ता से हाथ धोना पड़ता ही है, लेकिन सत्ता में वापसी को सरकार की लोकप्रियता से जोड़ कर देखा जाता है.
लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद 2018 में शिवराज सिंह चौहान को हार का मुंह देखना पड़ा था, क्योंकि सत्ता विरोधी लहर आड़े आयी थी - ताजा मामला थोड़ा अलग लगता है.
ये पूछे जाने पर कि लोग शिवराज सिंह चौहान की मौजूदा सरकार को कैसे देखते हैं, 27 फीसदी लोग कह रहे हैं कि वे पूरी तरह संतुष्ट हैं. और 34 फीसदी लोग ऐसे हैं जो मान रहे हैं कि पूरी तरह तो नहीं लेकिन किसी न किसी रूप में संतुष्ट जरूर हैं.
वैसे 34 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जो शिवराज सरकार से कुछ हद तक या पूरी तरह असंतुष्ट भी हैं - सर्वे से निकल कर सामने आ रही लोगों की ये भावना नतीजों में कैसे देखने को मिलती है, महत्वपूर्ण तो वही होगा.
मध्य प्रदेश की कानून-व्यवस्था ठीक मानने वाले लोगों की संख्या भी खराब मानने वालों से ज्यादा है - और ये बात भी शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में ही जाती है. 36 फीसदी लोग मध्य प्रदेश की कानून-व्यवस्था की स्थिति को बेहतर मानते हैं, लेकिन 30 फीसदी लोग मान रहे हैं कि शिवराज सरकार में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है.
महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था का हाल
शिवराज सरकार में महिला सुरक्षा के मुद्दे पर लोगों की राय काफी बंटी हुई सामने आयी है. आंकड़े भी काफी दिलचस्प हैं. 36 फीसदी लोग मानते हैं कि महिला सुरक्षा के मामले में शिवराज के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार में सुधार हुआ है, और उतने ही यानी 36 फीसदी लोग ये भी मानते हैं कि इस शासन में महिला सुरक्षा की स्थिति खराब हुई है.
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश में मामा के नाम से मशहूर हैं. महिला वोटर पर उनका खास जोर देखने को मिलता है. और इसकी सबसे बड़ी वजह लाड़ली बहना योजना है. केंद्र की मोदी सरकार भी महिलाओं पर सबसे ज्यादा मेहरबान होने का श्रेय लेती है - और संसद में महिला आरक्षण बिल के पास होने के बाद तो ये उसका हक भी बनता है. लगता है, सर्वे में इसका भी थोड़ा असर देखने को मिल रहा है.
ये पूछे जाने पर कि मोदी सरकार और शिवराज सरकार में से महिलाओं का ज्यादा ख्याल कौन रखता है, लोग मोदी सरकार के पक्ष में खड़े हो जाते हैं. 16 फीसदी लोगों का कहना है कि महिलाओं के लिए मोदी सरकार ने ज्यादा काम किया है, जबकि 9 फीसदी शिवराज सिंह सरकार के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं - और 41 फीसदी लोग मानते हैं कि दोनों सरकारों ने महिलाओँ के लिए काम किया है, लेकिन 16 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जो ये मानने को बिलकुल तैयार नहीं है कि दोनों में से किसी भी सरकार ने महिलाओं के लिए कुछ किया भी है.
अब सवाल ये उठता है कि वोट देने को लेकर महिलाओं और पुरुषों की क्या राय है? आंकड़े बताते हैं कि 46 फीसदी महिलाएं शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में खड़ी दिखायी पड़ रही हैं, लेकिन कमलनाथ भी जोरदार टक्कर दे रहे हैं. 44 फीसदी महिलाओं का वोट कमलनाथ के पक्ष में जा सकता है. इसे समझने की कोशिश करें तो ऐसी महिलाओं की संख्या ज्यादा जरूर है जो शिवराज सिंह चौहान के नाम पर वोट देने का मन बना चुकी हैं, लेकिन ऐसी महिलाएं जो मध्य प्रदेश में बदलाव चाहती हैं, उनकी संख्या भी थोड़ी सी ही कम है.
सर्वे में शामिल पुरुषों के बीच बराबरी पर जोर आजमाइश चल रही है - 41 फीसदी पुरुष शिवराज सिंह चौहान को ही अगले मुख्यमंत्री के रूप में देख रहे हैं, और इतने ही पुरुष कमलनाथ को फिर से मौका देना चाहते हैं.
गांव के मतदाता क्या कह रहे हैं?
मध्य प्रदेश में भी कई चीजें बीजेपी से दूर और पास वैसे ही हैं, जैसे देश के बाकी हिस्सों में. शहरी क्षेत्रों में तो मध्य प्रदेश में भी बीजेपी का कोई सानी नहीं नजर आ रहा है. लेकिन मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में बीजेपी के प्रति भरोसा पहले जैसा ही है.
ताजा सर्वे में भी इसी बात की झलक मिलती है. शहरों में तो 55 फीसदी लोग बीजेपी के सपोर्ट में खड़े हैं, और 35 फीसदी लोग कांग्रेस के समर्थन में. लेकिन गांवों में ये समीकरण बदला हुआ दिखाई देता है. गांवों में 44 फीसदी लोग कांग्रेस के पक्ष में हैं, तो बीजेपी के पक्ष में 39 फीसदी लोग ही देखने को मिल रहे हैं.
हो सकता है ये सब बीजेपी के प्रति किसानों की नाराजगी अभी पूरी तरह खत्म न हो पायी हो. केंद्र की मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस तो ले लिये थे, और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में चुनाव भी जीत लिये - लेकिन किसानों के दबदबे वाले पंजाब में बीजेपी की एक न चली.
एक महत्वपूर्ण बात और. पूरे देश में विपक्षी गठबंधन जातीय जनगणना की जोर शोर से मांग कर रहा है, खास तौर पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी. बिहार में हुई जातिगत गणना के नये आंकड़े भी आ चुके हैं. आर्थिक सामाजिक सर्वे के आंकड़ों पर भी वैसे ही सवाल उठाये जा रहे हैं, जैसे जातियों की संख्या में खामियां गिनायी जा रही थीं.
मध्य प्रदेश में भी 44 फीसदी लोग ऐसे हैं जो जातिगत गणना के पक्ष में हैं, जबकि बीजेपी की तरफ से या शिवराज सिंह चौहान पहले इस मुद्दे से दूरी बना कर चले आ रहे थे. छत्तीसगढ़ और बिहार में केंद्रीय मंत्री अमित शाह के बयान के बाद बीजेपी का नया रुख सामने आया है. फिर भी 24 फीसदी लोग मध्य प्रदेश में ऐसे भी हैं जो जातीय जनगणना के पक्ष में कतई नहीं हैं.