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क्या बीजेपी के लिए संभव है 'सबका साथ सबका विकास' नारे से किनारा करना?

पश्चिम बंगाल के भारतीय जनता पार्टी के नेता शुभेंदु अधिकारी ने बीजेपी के सबसे अहम नारे सबका साथ-सबका विकास पर आपत्ति जताकर पार्टी में हलचल मचा दी है. हालांकि शुभेंदु पहले नहीं है. बीजेपी में कुछ नेता यह बोल चुके हैं कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए. पर क्या पार्टी के लिए यह संभव है?

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बंगाल बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी के बयान से हलचल
बंगाल बीजेपी के नेता शुभेंदु अधिकारी के बयान से हलचल

भारतीय जनता पार्टी के नेता और पश्चिम बंगाल में नेता विपक्ष और बीजेपी लीडर शुभेंदु अधिकारी ने बुधवार को एक बयान देकर पार्टी में हलचल में बढ़ा दी है. शुभेंदु  ने अपनी पार्टी के लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सभी कहते हैं- 'सबका साथ, सबका विकास', लेकिन अब हम यह नहीं कहेंगे. अब हम कहेंगे 'जो हमारा साथ, हम उनके साथ...' सबका साथ, सबका विकास कहना बंद करो. अल्पसंख्यक मोर्चा की भी जरूरत नहीं है. सभागार में शुभेंदु के भाषण पर कार्यकर्ताओं ने तालियां बजाकर स्वागत किया. दरअसल ऐसे समय में जब बीजेपी में यह मंथन चल रहा हो कि यूपी के मुस्लिम बहुल इलाकों में मुसलमानों को टिकट दिया जाए या नहीं. बीजेपी को लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त के बाद पार्टी अपने वोट बैंक के विस्तार कैसे हो इस पर विचार कर रही है. इसलिए हो सकता है कि  शुभेंदु की यह दलील बहुत से लोगों को नागवार लगे. पर शुभेंदु कोई पहले नहीं हैं. बीजेपी में इस तरह की बात करने वाले कई लोग हैं. हाल ही में कई नेताओं ने इस तरह के विचार व्यक्त किए हैं जिसका मतलब सीधा है कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए.

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भाजपा और सबका साथ सबका विकास का नारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा 2014 के आम चुनाव अभियान के दौरान दिया था. बाद में ये नारा भारतीय जनता पार्टी के चुनावी अभियान का मुख्य नारा बन गया था. जाहिर पार्टी इस नारे के जरिए यह दिखाना चाहती थी कि हर भारतीय का समावेशी और समग्र विकास किया जाएगा. उसके अलावा यह नारा भारत के सभी नागरिकों, विशेष रूप से पिछड़े और वंचित वर्गों के विकास और सशक्तिकरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को भी जनता के सामने रखता रहा है.

ये सभी जानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी का जन्म ही मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ हुआ था. रामजन्मभूमि आंदोलन के पहले तक बीजेपी के वोट देने वालों में मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या होती थी. बीजेपी के टॉप लीडर्स में भी कुछ मुसलमान जरूर रहते थे. पर धीरे-धीरे मुस्लिम कम्युनिटी को टिकट मिलना भी बंद हो गया. 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल एक मुस्लिम कैंडिडेट केरल में बनाया गया. चुनाव प्रचार के दौरान खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी हर सभा में मुसलमानों से संबंधित 2 प्रमुख बातों को मुद्दा बनाया. पहली बात यह कि संविधान में आरक्षण धार्मिक नहीं था इसलिए मुस्लिम लोगों को कैसे आरक्षण मिल रहा है. दूसरा देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का नहीं है. इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भाषण को मुद्दा बनाया गया जिसमें उन्होंने कहा था देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है.

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इसके बावजूद बीजेपी कहती रही है कि विकास के मुद्दे पर सभी भारतीय उनके लिए समान हैं. चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान सभी को विकास योजनाओं का लाभ मिलता रहा है और मिलता रहेगा. इसके साथ ही पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने सबका साथ-सबका विकास नारे के विरोध में कुछ नहीं कहा. कुछ नेता जरूर यह कहते हुए सुने गए कि उन्हें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए. इसमें केंद्रीय मंत्री गिरिराज किशोर का नाम प्रमुख है. जेडीयू के एक सांसद  को भी चुनाव जीतने के बाद यह कहते हुए सुना गया कि यादव और मुसलमान अपने काम लेकर उनके पास न आएं ,क्योंकि इन लोगों ने मुझे वोट नहीं दिया है. गौरतलब है कि जेडीयू और बीजेपी ने बिहार में मिलकर चुनाव ल़ड़ा था.

क्या मुसलमान बीजेपी के साथ आ सकते हैं

उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने हैं. पार्टी पूरी जोर लगा रही कि विपक्ष के मुकाबले उसे अधिक सीट मिले. यह सभी जानते हैं कि लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त और उसके उपचुनावों में मिली हार से पार्टी बैकफुट पर है. शायद अब बीजेपी एक भी हार नहीं देखना चाहती है. यूपी उपचुनावों में बीजेपी के लिए मुश्किल है कि कुछ सीट मुस्लिम बाहुल्य वालीं हैं. इसलिए बीजेपी में कुछ लोग चाहते हैं कि कम से कम दो सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे जाएं. खबर है कि आज लखनऊ में सीएम आवास पर हुई बीजेपी की बैठक में भी यह सवाल उठा था कि क्या बीजेपी को उपचुनावों में मुस्लिम कैंडिडेट्स को उतारना चाहिए.

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सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी राष्ट्रीय स्तर पर करीब 8 प्रतिशत वोट मुसलमानों का बीजेपी के हिस्से में गया था. गुजरात में तो यह आंकड़ा 29 प्रतिशत है . हालांकि उत्तर प्रदेश में केवल 2 परसेंट मुसलमानों ने ही बीजेपी को वोट दिया है. सवाल यह है कि क्या मुसलमान बीजेपी के साथ आ सकते हैं. इसका उत्तर यही है कि जब गोधरा के बाद हुई हिंसा को भूलकर मुसलमान गुजरात में 29 परसेंट वोट तब दे सकते हैं जब इसके लिए प्रयास ही नहीं किया गया. जाहिर है कि अगर प्रयास किया जाए, मुस्लिम कैंडिडेट खड़े किए जाएं तो यह परसेंटेज जरूर बढ़ सकता है. राजनीति में कभी कोई विचार स्थाई नहीं होता है. पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों के बावजूद सिखों के बीच सबसे लोकप्रिय पार्टी कांग्रेस ही है. देश में बहुत से उदाहरण हैं जब पार्टी के कोर वोटर्स पूरी तरह बदल गए हैं.

मुस्लिम वोट के लिए बीजेपी ने अब तक क्या किया

देश की 543 लोकसभा सीटों में 65 सीट ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी 35 फीसदी से अधिक है. यूपी की 80 में से 14 लोकसभा सीटों पर और पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 13 पर मुस्लिम आबादी 35 फीसदी से अधिक है. इसके अलावा केरल की 8, असम की 7, जम्मू-कश्मीर की 5, बिहार की 4, मध्य प्रदेश की 3 और दिल्ली, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र और तेलंगाना की 2-2 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक की आबादी 35 फीसदी से अधिक है. तमिलनाडु में भी ऐसी एक लोकसभा सीट है. ऐसे में बीजेपी अगर यह कहे कि हमें मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए तो उसका नुकसान तो उसे उठाना ही पड़ेगा. अगर शुभेंदु जैसे लोग यह समझते हैं कि सौ फीसदी हिंदुओं को बीजेपी के लिए पोलराइज्ड कर लेंगे तो यह असंभव तो नहीं पर मुश्किल जरूर लगता है.

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यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी हिंदू हितों की बात तो करती रहती है. पर मुस्लिम वोट के लिए भी लगातार प्रयास किया जाता रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था पसमांदा मुसलमानों की समस्याओं पर काम करना चाहिए.आरएसएस की एक विंग राष्ट्रवादी मुसलमानों को साथ लाने के लिए इंद्रेश कुमार के नेतृत्व में बहुत दिनों तक काम करती रही है.ये अलग बात है कि बीजेपी को जितना वोट अशरफ मुसलमानों से मिला है उतना समर्थन उसे पसमांदा मुसलमानों ने नहीं दिया है. सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि 12 प्रतिशत अशरफ मुसलमानों ने बीजेपी को वोट दिया है जबकि पसमांदा मुसलमानों ने केवल 5 प्रतिशत वोट ही दिया है. 

एक टीवी चैनल को लोकसभा चुनावों के दौरान दिए गए इंटरव्यू में पीएम मोदी ने मुस्लिम वोट बैंक को लेकर बड़ी बात कही थी. मुस्लिम समुदाय की सामाजिक स्थिति का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि मैं आज पहली बार कह रहा हूं. मैंने पहले कभी इन विषयों पर बातचीत नहीं की.मैं मुस्लिम समाज और उनके पढ़े-लिखे लोगों से कहता हूं कि आप आत्ममंथन कीजिए. सोचिए, देश इतना आगे बढ़ रहा है.. कमी अगर आपके समाज में महसूस होती है तो क्या कारण है? सरकार की व्यवस्थाओं का लाभ कांग्रेस के जमाने में आपको क्यों नहीं मिला? क्या कांग्रेस के कालखंड में इस दुर्दशा का शिकार हुए हैं? आपको आत्ममंथन करने की जरूरत है..पीएम मोदी ने मुस्लिम समाज से कहा कि आप वोट बैंक की राजनीति का हिस्सा बनकर यह सब कर रहे हैं.. अपने बच्चों की जिंदगी के बारे में तो सोचिए... अगर आपको भाजपा वालों से डर लगता हैं तो 50 लोग भाजपा कार्यालय में जाएं. एक दिन बैठे रहें. क्या वहां से कोई आपको निकाल देगा? आप वहां जाकर देखें, क्या चल रहा है? पीएम ने कहा कि आप कब्जा करो न बीजेपी कार्यालय में जाकर, कौन रोकता है आपको? 

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बंगाल में यूं ही नहीं शुभेंदु के मुंह से निकले बोल

शुभेंदु सबका साथ सबका विकास पर आपत्ति क्यों कर रहे है? शुभेंदु ने खुद इसे समझाया. उन्होंने कहा, हमें चुनावों में वोट नहीं डालने दिया जाएगा. क्योंकि हम हिंदू हूं. जिहादी सुबह से मेरे घर के सामने बैठे रहेंगे. पुलिस दर्शक दीर्घा में चली जाएगी. हमें तुरंत जाग जाना चाहिए. मैं इस साइंस सिटी में बैठा हूं. 10 किलोमीटर दूर घटकपुर और भांगर में चार हिंदू इलाके हैं. दोनों क्षेत्रों के हिंदुओं को वोट देने की अनुमति नहीं थी. बदुरिया, हरोआ, कैनिंग वेस्ट में वे डेढ़ लाख वोटों से जीते. बसंती एक्सप्रेस-वे इस्लामाबाद बन गया है. वोटर कार्ड से वोटिंग नहीं होती थी. पर्ची से वोटिंग होती थी. हम बंगाल में लोकतंत्र चाहते हैं. धानेखाली, केशपुर, इंदास, पत्रसायर, शितलाकुची में हिंदुओं को वोट देने की अनुमति नहीं थी. उन्होंने आगे कहा, मैं चुनाव के दिन गुंडों को घर में बंद रखना चाहता हूं. हम चाहते हैं कि केंद्रीय बलों को वोटर कार्ड देखने का अधिकार दिया जाए. मैं गवर्नर के पास गया. राष्ट्रपति को मेल किया. मैं कहना चाहूंगा कि पश्चिम बंगाल का संविधान खत्म हो गया है. हम संविधान बचाना चाहते हैं. संगठनात्मक कमजोरी, नेतृत्व संकट और उसके बाद वोटों की जिहादी लूट चल रही है.

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दरअसल शुभेंदु यूं ही ये सब नहीं बोल रहे हैं. बंगाल में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में टीएमसी नेताओं का इस कदर आतंक है कि बीजेपी नेता भी कुछ बोलने से डरते हैं.संदेशखाली एक उदाहरण है . इस इलाके में शाहजहां शेख का आतंक ही था कि ईडी अफसरों को पीटा गया. टीएमसी सरकार बड़ी मुश्किल से उसे गिरफ्तार कर सकी.

इसका गलत संदेश भी जा सकता है

भारतीय जनता पार्टी विपक्ष के संविधान बचाओ नारे से जूझ रही है. इस बीच बीजेपी अगर शुभेंदु के सुझाव पर अमल करे तो सिर्फ पार्टी का नुकसान ही हो सकता है. शायद यही कारण है कि शुभेंदु ने सबका साथ-सबका विकास के नारे के बारे में जो कुछ बोला था उसका खंडन करते हुए कहा है कि उनकी बातों का गलत अर्थ निकाला गया. पार्टी के बड़े नेता समझते हैं कि पार्टी पर वैसे ही आरोप लग रहा है कि वो दलितों और पिछड़ों का आरक्षण खत्म करना चाहती है. सबका साथ-सबका विकास नारे का अर्थ ही था कि पार्टी गरीब अमीर, शहर देहात, अगड़ा पिछड़ा सभी का विकास करना चाहती है. पार्टी मजदूर- किसान-व्यापारी-नौकरीपेशा-महिला-पुरुष आदि में भेदभाव नहीं करती है.  

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