राजनीति में बात बात पर इस्तीफे मांगे जाते हैं. जैसे ही कुछ होता है, एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी इस्तीफा मांगने लगते हैं - और हर बार नैतिकता की दुहाई दी जाती है, लेकिन कोई ऐसा नहीं करता.
शायद इसलिए भी क्योंकि राजनीति में नैतिकता सिर्फ आखिरी स्थिति में होती है. जब कहीं कोई रास्ता नहीं सूझता. बच कर निकल पाने का कोई भी रास्ता नहीं बचता. वैसे अरविंद केजरीवाल इस बात के अपवाद बन गये हैं - और बिलकुल उसी रास्ते पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी नजर आ रहे हैं.
लोकायुक्त पुलिस के एफआईआर दर्ज कर लेने के बाद भी सिद्धारमैया का फैसला नहीं बदला है. सिद्धारमैया ने साफ साफ बोल दिया है कि वो इस्तीफा नहीं देंगे - और सिद्धारमैया के सामने भी आगे की राह अरविंद केजरीवाल जैसी ही नजर आ रही है.
जैसे बीजेपी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा मांग रही थी, वैसे ही कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से भी इस्तीफा मांग रही है, लेकिन इस्तीफे को लेकर केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह का बयान भी आपको याद ही होगा.
2015 में भगोड़े कारोबारी ललित मोदी की मदद करने को लेकर जब विवाद हुआ तो कांग्रेस सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे से इस्तीफा मांगने लगी थी. तब सुषमा स्वराज केंद्र सरकार में विदेश मंत्री हुआ करती थीं, और वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री.
ये उन दिनों की ही बात है जब राजनाथ सिंह और रविशंकर प्रसाद कैबिनेट के कुछ फैसलों की जानकारी देने मीडिया के सामने आये थे, तभी विवादों में घिरी सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे के इस्तीफे के बारे में सवाल पूछ लिया गया.
राजनाथ सिंह ने भी बड़ा ही दिलचस्प जवाब दिया, 'नहीं, नहीं... इस पर मंत्रियों के त्यागपत्र नहीं होते हैं भैया... यह यूपीए की नहीं, एनडीए की सरकार है.'
ये शानदार जवाब सुनकर हर कोई हैरान था. जिस जबान से अक्सर ही शुचिता और नैतिकता की बातें सुनने को मिलती रही हों, वो शख्स ऐसी बातें करने लगे तो सुनकर किसी को भी ताज्जुब होगा ही - और वो सिलसिला आज भी जारी है. बल्कि, आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने तो ये मामला चार कदम आगे ही बढ़ा दिया है.
अब पूरा देश जान गया है कि कुर्सी छोड़ने का कानून नहीं है
कुछ ही दिनों का फासला रहा होगा. जब प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने मिलते जुलते अलग अलग मामलों में हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार किया था. हेमंत सोरेन को रांची से, जबकि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में मुख्यमंत्री आवास से.
दोनो मामलों में एक खास फर्क ये रहा कि हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल तिहाड़ जेल में रहने के दौरान भी दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहे. जब लोकसभा चुनाव में कैंपेन के लिए उनको अंतरिम जमानत मिली तब भी वो मुख्यमंत्री बने रहे, और जमानत अवधि समाप्त होने के बाद सरेंडर करने जाते वक्त भी - दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दिया जरूर, लेकिन ईडी और सीबीआई दोनो मामलों में जमानत पर छूट कर बाहर आने के बाद.
हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर एक दूसरे के उलट फैसला लिया. हेमंत सोरेन ने बाहर आते ही फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली, जबकि अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया. और, अपनी नई भरोसेमंद नेता आतिशी को दिल्ली की कुर्सी सौंप दी.
जब अरविंद केजरीवाल जेल में थे तो कई बार उनके मुख्यमंत्री बने रहने को लेकर सवाल उठे, लेकिन संविधान में ऐसी कोई बाध्यता न होने की दुहाई दे दी जाती. कुछ ऐसे वाकये भी हुए जब मुख्यमंत्री का हस्ताक्षर न हो पाने की वजह से काम रुके हुए थे, लेकिन कभी काम रोक दिया गया तो कभी दूसरे रास्ते अख्तियार करने पड़े.
अदालतों में अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को लेकर अदालतों में कई याचिकाएं भी डाली गईं, लेकिन वे हर बार खारिज हो जातीं. दिल्ली शराब नीति केस की सुनवाई के दौरान भी ये मामला उठा, और अदालत की आखिरी टिप्पणी यही होती कि इस्तीफे का फैसला सिर्फ अरविंद केजरीवाल की मर्जी पर निर्भर करता है.
नियम तो पहले से था, लेकिन अब ये बात हर कोई जान चुका है - और लगता है सिद्धारमैया भी उसी रास्ते पर चलने का फैसला कर चुके हैं.
नेताओं ने इस्तीफे के बजाय आरोप-प्रत्यारोप का रास्ता चुना है
कर्नाटक हाई कोर्ट से झटका खाने के बावजूद सिद्धारमैया बेअसर दिखे, और इस्तीफे की बात तो दूर वो तो हर बात के लिए बीजेपी को जिम्मेदार बताने लगे. बोले, जहां भी विपक्षी दलों की सरकार है, बीजेपी उसे गिराने में लगी रहती है... कई जगह पर उन्हें सफलता भी मिली है, पर कर्नाटक में ऐसा नहीं होगा.
सिद्धारमैया का कहना था, जनता हमारे साथ चट्टान की तरह खड़ी है... हमारी पार्टी के सभी जन प्रतिनिधि, कार्यकर्ता और आलाकमान मेरे साथ हैं.
अरविंद केजरीवाल केस से तुलना करें तो सिद्धारमैया कांग्रेस आलाकमान और कार्यकर्ताओं के साथ साथ कर्नाटक की जनता की बात कर रहे थे. अरविंद केजरीवाल के मामले में तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में एक सर्वे भी करा लिया था, जेल से सरकार चलाई जा सकती है या नहीं? और सर्वे के बाद ये भी दावा किया गया था कि दिल्ली के लोग चाहते हैं कि अरविंद केजरीवाल जेल से सरकार चलायें - और अब तो मानना भी पड़ेगा, अरविंद केजरीवाल ने जेल से सरकार चलाकर तो दिखा ही दिया है.
अब जनता भी समझ ले कि नेता कुर्सी नहीं छोड़ेंगे
अपने राजनीतिक विरोधियों को टारगेट पर लेते हुए सिद्धारमैया कहते हैं, बीजेपी ने धन बल से, ऑपरेशन कमल से, सरकार गिराने की कोशिश की पर वे कामयाब नहीं हुए... मैं बीजेपी और जेडीएस से डरने वाला नहीं हूं... क्योंकि करनाटक की जनता कांग्रेस के साथ है... इनकी कोई कोशिश कामयाब नहीं होगी... जनता ने 136 एमएलए का मैंडेट दिया हुआ है.
कोलकाता रेप-मर्डर केस को लेकर ममता बनर्जी भी भारी दबाव में थीं. बीजेपी सड़क से सदन तक ममता बनर्जी का इस्तीफा मांग रही थी - लेकिन उनसे इस्तीफे की अपेक्षा कैसे की जाये जब वो कोलकाता के पुलिस कमिश्नर तक के इस्तीफे की पेशकश ठुकरा देती हों.
राजनीति में नैतिकता वैसे ही नाजायज हो चुकी है, जैसे जंग और मोहब्बत में हर बात जायज मानी जाती रही है - और सिद्धारमैया उसी राह के नये मुसाफिर बनने जा रहे हैं.