केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा महिला कर्मचारियों के लिए अनिवार्य पीरियड लीव के विचार पर अपना विरोध व्यक्त करने के बाद यह विषय एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है. इतना ही नहीं फिल्म इंडस्ट्री के एक और चर्चित नाम कंगना रनौत ने भी उनकी हां में हां मिलाकर उनकी बात पर मुहर लगा दी है.
ईरानी ने बुधवार को राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा द्वारा पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि 'पीरियड्स महिलाओं के जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है. और इसे विशेष अवकाश प्रावधानों की आवश्यकता वाली बाधा के रूप में नहीं माना जाना चाहिए'.ईरानी कहती हैं कि पीरियड्स कोई "अपंगता" नहीं है, इसपर सरकार पेड पॉलिसी की कोई नीति नहीं ला रही है. "सिर्फ कुछ महिलाओं को उन दिनों में जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. इस तरह की लीव से महिला कर्मचारियों के साथ भेदभाव बढ़ेगा."
स्मृति ईरानी के इस बयान के समर्थन में बॉलिवुड अभिनेत्री कंगना रनौत ने कहा , "जब तक ये किसी भी महिला के लिए कोई स्पेशल मेडिकल कंडीशन न हो, महिलाओं को पीरियड्स के लिए पेड लीव की जरूरत नहीं है. आप प्लीज इस बात को समझें. ये पीरियड्स किसी तरह की बीमारी या फिर कोई रुकावट नहीं है."
जाहिर है कि स्मृति ईरानी के इस बयान पर बवाल होना तय था.महिलाओं को संसद में आरक्षण देने वाली पार्टी बीजेपी की एक प्रमुख महिला नेता के बयान पर उसे महिला विरोधी साबित करने की होड़ तो लगनी ही थी. पर इन दोनों नेत्रियों के बारे में कोई राय बनाने के पहले हमें इन पांच बातों पर जरूर गौर करना चाहिए.
1-महिलाओं को पीरियड लीव की आवश्यकता क्यों है?
पीरियड लीव में ऐसी नीतियां शामिल होती हैं जो श्रमिकों या छात्रों को अपने मासिक चक्र से जुड़े दर्द या असुविधा का अनुभव होने पर समय निकालने की अनुमति देती हैं.द हिंदू के अनुसार, कार्यस्थल के संदर्भ में, यह उन नियमों को संदर्भित करता है जो भुगतान या अवैतनिक छुट्टी के साथ-साथ आराम के लिए समय प्रदान करते हैं.पीरियड का दर्द कुछ लोगों के लिए काफी असुविधाजनक हो सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, मासिक धर्म वाली आधी से अधिक महिलाएं हर महीने कुछ दिनों के लिए दर्द सहती हैं. जबकि कुछ के लिए, यह इतना गंभीर है कि रोजमर्रा के कार्यों और उत्पादकता में बाधा उत्पन्न हो सकती है. कॉर्पोरेट ऑफिसेस में टार्गेट एचिवमेंट का चक्कर इतना बड़ा हो गया है कि किसी भी महिला या पुरुष के लिए सामान्य दिनों भी परेशान होने के पर्याप्त कारण होते हैं. महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होने वाला दर्द केवल शारीरिक ही नहीं होता है. तमाम महिलाओं ने बताया कि इस दौरान होने वाला दर्द उन्हें फिजिकल से अधिक इमोशनल और सॉयकोलिजकल होता है. जिसे शायद ही पुरुष कभी झेलते हों . महिलाओं का कहना है कि इस दर्द कोई पुरुष समझ ही नहीं सकता.
द हिंदू के अनुसार, मासिक धर्म में होने वाली ऐंठन 15-25 प्रतिशत महिलाओं को प्रभावित करती है, जिसमें मिशिगन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान और वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रोफेसर सियोबन हार्लो का हवाला दिया गया है. ये ऐंठन मध्यम से गंभीर तक हो सकती है.
द इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए, स्त्री रोग विशेषज्ञ और मासिक धर्म जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाली सच्ची सहेली की अध्यक्ष डॉ. सुरभि सिंह ने बताया कि चूंकि हर महिला को मासिक धर्म अलग तरह से अनुभव होता है, कुछ के लिए तो अस्पताल में भर्ती होने तक की नौबत आ जाती है. उनका कहना है कि “इस मुद्दे पर एक समान नीति विकसित की जा रही है जो बहुत खतरनाक हो सकता है.”
2-ऐसे कानून बनने के बाद इ्म्प्लॉयर क्या करेगा ये भी सोच लीजिए
स्मृति ईरानी कहती हैं कि पीरियड लीव्स के लिए कानून बनने के बाद इम्प्लॉयर महिलाओं के साथ भेदभाव कर सकते हैं. ईरानी की इस बात में दम है. सामान्य तौर बहुत बड़े संस्थानों को छोड़ दीजिए तो बिना इस कानून के ही महिलाओं को रोजगार देने के मामले में हमारे देश की कंपनियों का बहुत खराब रिकॉर्ड है.
महिलाओं को रोजगार देने में उन्हीं जगहों पर प्राथमिकता दी जाती है जहां उन्हें कम पारिश्रमिक में हायर करने का मौका होता है. बाकी जगहों पर उनके साथ भेदभाव बहुत निचले स्तर का होता है. जिन लड़कियों की शादी हुए एक साल या 2 साल हुआ होता है उन्हें नौकरी देने में कोई भी संस्थान इच्छुक नहीं होता है. क्योंकि इंप्लॉयर को यह आशंका होती है बहुत जल्दी यह लड़की प्रिगनेंसी लीव पर चली जाएगी. प्रिगनेंसी लीव चूंकि हमारे देश में पेड लीव हो चुका है. इसलिए कंपनियों को लगता है कि उन्हें मुफ्त मे 3 महीने की सैलरी भी देनी होगी. ऐसी लड़कियों को अगर कंपनी ने नौकरी दे भी दी तो कोई टीम लीडर उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहता . उसे पता होता है कि मेरी टीम का एक बंदा कभी भी कम हो सकता है.
इसी तरह अगर पीरियड् लीव के लिए अगर कानून बन गया तो महिलाओं के साथ और कार्यस्थलों पर और अधिक भेदभाव होगा. पहले तो कंपनियां नौकरी देने में आनाकानी करेंगी और अगर नौकरी मिल भी गई तो कार्यस्थल पर उन्हें भेदभाव का सामना करना पडेगा.
3-महिलाओं को कमतर मानने वाले हर कानून का क्यों विरोध होना चाहिए
महिलाएं किसी से भी कमजोर नहीं है.बहुत मुश्किल से यह बात अब पुरुषों को भी समझ में आने लगी है. जो फील्ड कभी पुरुषों के लिए आरक्षित होते थे उन जगहों पर भी महिलाएं बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं. सबसे पहले बात करते हैं मोटर ड्राइविंग की. महानगरों की सड़कों पर महिलाएं अब खुद कार ड्राइविंग करने वाली महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा हो चुकी है. किसी भी हादसे में कार ड्राइव करने वाली कोई महिला नहीं होती है. महिलाएं अब ट्रेन और फाइटर जेट भी उड़ा रही है.
कभी भी हादसों में किसी महिला का नाम नहीं आता है.राजनीति , शिक्षण और बिजनेस में महिलाएं लगातार अपना मुकाम हासिल कर रही हैं. हमारे देश में ही नहीं पूरी दुनिया में महिलाओं को द्वितीय श्रेणी की नागरिक बनाने के लिए पीरियड और प्रिगनेंसी जैसी बातों की बहुत बड़ी भूमिका रही है. महिलाएं सक्षम हैं कि इन शारीरिक जरूरतों के हिसाब समाज में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल सकती हैं. इस तरह के कानूनों से वो मानसिक रूप से ही कमजोर होती हैं.ब्यूटी ब्रांड ममा अर्थ की सह-संस्थापक गजल अलघ ने इस भी मुद्दे पर कहती हैं कि सदियों से महिलाएं अपने अधिकारों और समान अवसरों के लिए लड़ती रही हैं और अब पीरियड लीव के लिए लड़ना कड़ी मेहनत से अर्जित समानता को पीछे धकेल सकता है.
4-क्या कंपनियों की स्वेच्छा पर छोड़ देना चाहिए
कुछ कंपनियों और संस्थानों ने महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश देने के लिए कानून द्वारा बाध्य होने का इंतजार नहीं किया है. इनमें ऑस्ट्रेलियाई पेंशन फंड फ्यूचर सुपर, भारतीय खाद्य वितरण स्टार्टअप ज़ोमैटो और फ्रांसीसी फर्नीचर फर्म लुइस शामिल हैं जो क्रमशः 6, 10 और 12 दिन की छुट्टी देना शुरू किए हैं.भारत में स्विगी, बायजू जैसी कुछ कंपनियां भी मासिक धर्म अवकाश की अनुमति देनी शुरू की हैं.
पर हम जब दुनिया को देखते हैं तो यह लगता है कि भारत में क्यों नहीं इस प्रकार के अवकाश का कानून बनाया जा सकता है. मार्च 2021 में महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म अवकाश लेने की अनुमति देने वाला स्पेन यूरोप का पहला देश बन चुका है.पर दुनिया के तमाम देशों में आंशिक रूप से ही इसके लिए कानून बन चुका है.इंडोनेशिया ने 2003 में एक कानून पारित किया, जिसमें महिलाओं को बिना किसी पूर्व सूचना के प्रति माह दो दिन के मासिक धर्म अवकाश का अधिकार दिया गया लेकिन व्यवहार में यह प्रावधान विवेकाधीन है. जापान में, 1947 का एक कानून कहता है कि कंपनियों को महिलाओं को मासिक धर्म की छुट्टी देने के लिए सहमत होना होगा यदि वे इसके लिए अनुरोध करती हैं, जब तक उन्हें इसकी आवश्यकता हो.
दक्षिण कोरिया में, महिलाएं प्रति माह एक दिन के अवैतनिक मासिक धर्म अवकाश की हकदार हैं. इनकार करने वाले नियोक्ताओं को 5 मिलियन वॉन ($3,844) तक का जुर्माना भरना पड़ता है. ताइवान में, रोजगार में लैंगिक समानता का अधिनियम महिलाओं को प्रति वर्ष तीन दिन की मासिक छुट्टी देता है. वियतनाम में भी महिलाओं को हर महीने तीन दिन की मासिक धर्म की छुट्टी मिलती है. यदि नियोक्ता छुट्टी न लेने का निर्णय लेते हैं तो उन्हें उन्हें अधिक भुगतान करना होगा.