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मासूमों की जीने की उम्मीद तोड़ रहा 'सपनों' का बोझ, हमें सोचना होगा!

युवाओं में डिप्रेशन किस हद तक सुसाइडल थॉट्स में बदलता जा रहा है? इस पर हाल ही में एक स्टडी हुई है. ये स्टडी इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंटिफिक रिसर्च एंड इंजीनियरिंग डेवलपमेंट (IJSRED) में छपी है. जिसमें साइंस स्टूडेंट्स में डिप्रेशन और आत्महत्या के विचार ज्यादा देखे गए. जबकि सोशल साइंस के छात्र और छात्राओं में कम पाए गए. 

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छात्रों के बढ़ते सुसाइड के मामले
छात्रों के बढ़ते सुसाइड के मामले

अकेलापन... उदासी... चिड़चिड़ापन... गुस्सा... हिंसा...और सुसाइडल थॉट्स... आजकल के युवाओं में ये सारी समस्याएं आम होती जा रही हैं. खासकर पढ़ाई करने वाले किशोरों में ये ज्यादा बढ़ रही है. इसकी वजहें सिर्फ कामयाब होना या अच्छे मार्क्स लाने का प्रेशर नहीं है. न ये सिर्फ परिवार से मिल रहा है. असल मायने में एक समाज के तौर पर हम सब इसके जिम्मेदार हैं. बच्चों के मन में उनकी परवरिश के दौरान ही ऐसे सपनों के बीज बो दिए जाते हैं, जिनके पनपने पर मासूम मन उनका भार संभाल नहीं पाते. 

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इस वक्त 19 फरवरी 2024 रात के आठ बजकर 15 मिनट पर जब मैं ये आर्ट‍िकल लिख रही हूं, अभी-अभी कोचिंग नगरी कोटा से एक किशोर के मौत की खबर आई है. वो छात्र अपने कमरे से नोट्स लिखकर आठ दिन पहले लापता हो गया था. पेरेंट्स को उसके मन में चल रहे भावों का जरा-सा भी अंदाजा नहीं रहा होगा, वरना वो उसे रोक लेते. 

अब उनके हिस्से में जीवन भर का दर्द और पछतावा ही रह गया है. किशोरों पर हुए अध्ययनों में पाया गया है कि उनमें डिप्रेशन वयस्कों से ज्यादा तेजी में सुसाइडल थॉट्स में बदल जाता है. उन्हें जब किन्हीं कारण कामयाबी नहीं मिल पाती तो बच्चे यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि अब जीवन में कुछ भी नहीं बचा.

छात्र-छात्राओं में क्यों आ रहे हैं सुसाइडल थॉट्स

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अवसादग्रस्त लोगों को दुनिया हमेशा नाकारात्मक नजर आती है, वो हर चीज को नकारात्मकता के भाव से देखने लगते हैं. युवाओं में डिप्रेशन किस हद तक सुसाइडल थॉट्स में बदलता जा रहा है? इस पर हाल ही में शोधार्थी अमित रायकवार ने एक स्टडी की है. ये स्टडी इंटरनेशनल जर्नल ऑफ साइंटिफिक रिसर्च एंड इंजीनियरिंग डेवलपमेंट (IJSRED) में छपी है. 

इसमें रिसर्चर ने दिल्ली-एनसीआर के कॉलेजों में पढ़ने वाले सोशल साइंस और साइंस के 200 स्टूडेंट्स पर अध्ययन किया. इसमें 100 साइंस (50- छात्र और 50-छात्राएं) और 100 सोशल साइंस (50 छात्र और 50-छात्राएं) थे. इनमें डिप्रेशन के लक्षण देखने के लिए  Beck Depression Inventory और आत्महत्या के विचारों का परीक्षण करने के लिए Suicidal Ideations Scale का इस्तेमाल किया गया. 

सोशल साइंस और साइंस के 200 स्टूडेंट्स पर हुई रिसर्च

इसमें तुलनात्मक अध्ययन के जरिए यह जानने का प्रयास किया गया कि साइंस और सोशल साइंस के छात्र और छात्राओं में डिप्रेशन, आत्महत्या के विचारों में क्या अंतर है. साथ ही यह भी जानने की कोशिश की गई कि इन दोनों ग्रुप में कोई संबंध है या नहीं, इस अध्ययन में सामने आए निष्कर्ष इस प्रकार हैं. 

1) साइंस स्टूडेंट्स में डिप्रेशन और आत्महत्या के विचार ज्यादा देखे गए. जबकि सोशल साइंस के छात्र और छात्राओं में कम पाए गए. 

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2) जिन कॉलेज के छात्र छात्राओं में डिप्रेशन के लक्षण थे उनमें आत्महत्या के विचार अधिक पाए गए.

3) कॉलेज की छात्राओं में डिप्रेशन और आत्महत्या के विचार सबसे ज्यादा थे. लेकिन छात्रों ने आत्महत्या करने की कोशिश सबसे ज्यादा की.

क्या है सुसाइडल आइडिएशन?
जब कोई शख्स आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगता है तो मनोचिकित्सक इस स्थिति को सुसाइडल आइडिएशन (आत्महत्या का ख्याल) कहते हैं. यही वजह है कि अवसादग्रस्त लोगों में आत्महत्या करने की दर सबसे ज्यादा देखी गई है. मस्तिष्क में बायो न्यूरोलॉजिकल बदलावों के चलते लोगों को लगने लगता है कि उनका जीवन अब किसी काम का नहीं रह गया है. इसके बाद सुसाइड करने का विचार आता है. 

आत्महत्या के 90 प्रतिशत मामले मानसिक विकार के चलते होते हैं. लोगों के मन में नकारात्मक ख्यालों का आना आम बात है. कई बार ऐसे ख्याल कुछ ही पलों के लिए आते है लेकिन कुछ लोगों में ये धीरे-धीरे बढ़ने लगता है. मानसिक विकारों को लेकर अभी भी काफी गलतफहमियां है, इसलिए लोग इस बारे में ज्यादा बात नहीं करते. 

छात्र-छात्राओं में बढ़ रही है आत्महत्या की दर

आज जब किशोरों में आत्महत्या दर बढ़ी है तो सच पूछ‍िए तो यही सही समय है बात करने का. एक दूसरे को समझने का. जीने की उम्मीदों को सपनों से बड़ा करने का. बच्चों की परवरिश में बदलाव लाने का और साथ ही साथ एक समाज के तौर पर हमारी जवाबदेही तय करने का भी यही सही वक्त है.

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मेंटल हेल्थ पर रिसर्च के दौरान छात्र-छात्राओं से कई सवाल किए गए. जैसे कि आप कब लो फील करते हैं, क्या आप भविष्य को लेकर निराश रहते हैं. क्या आप सारा दिन रोते रहते हैं. क्या आपके मन में किसी को मारने के ख्याल आते हैं. इस पर एक छात्र ने कहा कि मैं हर समय दुखी रहता हूं. इससे बाहर नहीं निकल पाता. इतना दुखी हो जाता हूं कि बर्दाश्त नहीं कर पाता. जब मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आता है तो मेरा मन करता है कि किसी को मार दूं. 

माता-पिता को बच्चों समझना जरूरी

इस मामले पर मानव व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (IHBAS) के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर उदय कुमार सिन्हा का कहना है कि आजकल इंजीनियरिंग की कोचिंग बचपन से ही शुरू हो जाती है. उन्हें कुछ नहीं बताया जाता है, उनको सिर्फ पढ़ना है और एग्जाम को क्रेक करना है. हर बच्चे की एक जैसी कैपेसिटी नहीं होती है. बच्चों पर प्रेशर बहुत होता है यह बात माता-पिता को भी पता होती है पर वो उसे नजरअंदाज करते  रहते हैं. जो बच्चे एग्जाम क्रेक कर लेते हैं IIT, Jee में अच्छे नंबर लाकर बड़े कॉलेज में चले जाते हैं, वहां भी सुसाइड हो रहा है. IIT भी अपने सेंटर में वेलनेस सेंटर खोल रहे हैं, जिससे बच्चों को पहले से ही  पहचान कर सकें. ये सब प्रेशर है क्योंकि उन्हें बचपन से ही यही सिखाया जाता है कि स्टडी ही सबकुछ है. अगर बच्चा किसी बात को लेकर परेशान है उसे यह नहीं सिखाया जाता है कि उस प्रॉब्लम को कैसे डील करना है. पैरेंट्स का रोल यहां बेहद अहम होते है. सुसाइड को रोकने के लिए मुहिम चालाने की जरूरत है.    

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प्रोफेसर डॉक्टर उदय कुमार सिन्हा (IHBAS)
प्रोफेसर डॉक्टर उदय कुमार सिन्हा (IHBAS)

 

भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं छात्र

वहीं एक छात्रा ने कहा, मैं भविष्य को लेकर विशेष रूप से हतोत्साहित नहीं हूं लेकिन निराश महसूस करती हूं. मुझे लगता है कि मेरे पास आगे देखने के लिए कुछ भी नहीं है. भविष्य निराशाजनक लगता है और चीजें बेहतर नहीं होती दिखती हैं.

सुसाइड को लेकर एक साइंस स्टूडेंट ने कहा कि जब भी मुझे अकेलापन महसूस होता है तो मेरा मन करता है कि मैं आत्महत्या कर लूं. वहीं, एक छात्र ने कहा कि किसी अपने का अचानक निधन मुझे मौत के करीब ले जाता है. कुछ अन्य छात्रों ने भी सुसाइड को लेकर रिएक्शन दिए. उन्होंने कहा कि आर्थिक तंगी के कारण खुद को जिंदा नहीं रखना चाहता. आपसी झगड़े मुझे अपना जीवन समाप्त करने के लिए उकसाते हैं. जब मुझे बेवजह किसी मुद्दे के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो मुझे ऐसा लगता है कि आत्महत्या कर लूं.

नोट:- (अगर आपके या आपके किसी परिचित के मन में आता है खुदकुशी का ख्याल तो ये बेहद गंभीर मेडिकल एमरजेंसी है. तुरंत भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 पर संपर्क करें. आप टेलिमानस हेल्पलाइन नंबर 1800914416 पर भी कॉल कर सकते हैं. यहां आपकी पहचान पूरी तरह से गोपनीय रखी जाएगी और विशेषज्ञ आपको इस स्थिति से उबरने के लिए जरूरी परामर्श देंगे. याद रखिए जान है तो जहान है.)

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