गुजरात बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला रहा है. आज यह पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ भी है. बीजेपी के लिए अपने बलबूते सत्ता हासिल करने का रास्ता गुजरात में गठबंधन से होकर गुजरा था. गुजरात में एक समय बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए विरोधी दलों ने साथ मिलाकर सरकार बनाई थी, लेकिन गठबंधन सरकार की हुई किरकिरी ने बीजेपी को गुजरात में सत्ता तक पहुंचा दिया. अब ऐसी ही पटकथा महाराष्ट्र में लिखी जा रही है.
गुजरात में तीसरे नंबर की पार्टी थी बीजेपी
साल 1990 तक महाराष्ट्र की तरह गुजरात में भी बीजेपी तीसरे नंबर की पार्टी थी. गुजरात में कांग्रेस और गैर-कांग्रेसी दबदबे के बीच बीजेपी नई और उभरती पार्टी रही. ऐसा नहीं है कि बीजेपी या जनसंघ का गुजरात में कोई अस्तित्व नहीं था लेकिन ऐसा भी नहीं था कि कोई सोच सके कि पार्टी कभी खुद के दम पर अकेले सरकार बनाएगी.
चिमनभाई पटेल से बीजेपी ने मिलाया था हाथ
1990 में जनता दल के नेता पूर्व कांग्रेसी चिमनभाई पटेल का हाथ थाम कर बीजेपी सत्ता में आई लेकिन रथयात्रा को रोकने के बाद जैसे ही बीजेपी ने दिल्ली में वीपी सिंह सरकार से समर्थन खींचा चिमनभाई ने बीजेपी को राज्य की सरकार से हटाकर कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया.
चिमनभाई और कांग्रेस के ‘बेमेल’ गठबंधन की सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया लेकिन अगले चुनाव में बीजेपी व्यापक जनमत के साथ सत्ता में आई और वो सत्ता आज भी कायम है. चिमनभाई की सरकार को ताकतवर बीजेपी ने एक विपक्ष के तौरपर इतना बदनाम किया कि उसका खामियाजा जनता दल को ही नहीं, उसका समर्थन करने वाली कांग्रेस को भी भुगतना पड़ा. लग रहा है कि बीजेपी महाराष्ट्र में यही इतिहास दोहराने की कोशिश कर रही है
उद्धव ठाकरे की कम नहीं हो रहीं दिक्कतें
महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी का अभूतपूर्व प्रयोग उद्धव ठाकरे की सरकार बनाने में तो सफल रहा लेकिन सरकार चलाने में उनके रास्ते के रोड़े खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे. ज्यादातर दिक्कतें एक के बाद एक लग रहे आरोपों से है. इस वक्त सरकार के कम से कम 6 मंत्री ऐसे हैं, जिनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां यानी सीबीआई, ईडी या इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाई चल रही है. इनमें से 2 मंत्रियों की गिरफ्तारी हो चुकी है. मंत्रियों के अलावा महाविकास अघाड़ी के 8 और नेता जो सांसद, विधायक या स्थानीय स्तर पर किसी महत्वपूर्ण पद पर हैं, उनके खिलाफ भी जांच चल रही है.
जांच एजेंसियों के निशाने पर ठाकरे परिवार
पहली बार एजेंसियों के रडार पर ठाकरे परिवार भी नजर आ रहा है. उद्धव ठाकरे के साले श्रीधर पाटणकर से जुड़े 11 फ्लैट 2017 से जुड़े एक मामले में ईडी ने जब्त करने का दावा किया है. दूसरी ओर मुंबई महानगर पालिका की स्थायी समिति के अध्यक्ष और उद्धव ठाकरे के करीबी यशवंत जाधव के खिलाफ चल रही इनकम टैक्स की जांच के तार ‘मातोश्री ‘ से जुड़ने की सुगबुगाहट है.
जाधव के घर मिली एक डायरी में ठाकरे परिवार का मुंबई स्थित घर मातोश्री के नाम से कुछ लेनदेन नजर आए हैं. फिलहाल इसमें कोई बड़ी कार्रवाई होगी ऐसा कहना मुश्किल है लेकिन क्या अब दोबारा शिवसेना के साथ रिश्ते ना बनाने का मन बीजेपी बना चुकी है? और क्या अब ये आरपार की लड़ाई होगी जैसे 1990 में गुजरात में चिमनभाई पटेल के जनता दल के साथ हुई थी?
लगती रहीं बीजेपी से हाथ मिलाने की अटकलें
महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद कई बार ये अटकलें लगीं कि शिवसेना दोबारा बीजेपी के साथ हाथ मिला सकती है. उद्धव ठाकरे की प्रधानमंत्री के साथ हुई पहली मुलाकात के बाद ये अटकलें तेज हुईं. तबतक एनीसीपी के नेता और मंत्री रहे अनिल देशमुख पर 100 करोड़ रुपये की वसूली का आरोप लग चुका था और देशमुख का इस्तीफा भी हो चुका था. माना गया की शिवसेना, सरकार में एनसीपी की दादागीरी से त्रस्त होकर बीजेपी से रिश्ते दोबारा सुधारना चाहती है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ उसके बाद एक के बाद एक उद्धव सरकार के बाकी मंत्रियों पर भी आरोप लगना शुरू हुआ. हालांकि ज्यादातर एनसीपी से जुडे नेता और मंत्री ही निशाने पर रहे.
बीजेपी ने शिवसेना से दोस्ती के रास्ते बंद किए!
महाराष्ट्र की राजनीति का एक अलिखित कानून है, जिसमें ठाकरे परिवार पर सीधे आरोप लगाने से बीजेपी नेता बचते हैं. कहा जाता है कि बीजेपी ने शिवसेना के साथ हाथ मिलाने का रास्ता खुला रखा है. जिस तरह तमाम मनमुटाव के बावजूद शिवसेना बीजेपी 2019 में साथ आए, उसी तरह इस बार भी दरवाजे खुले रखे गए हैं. महाराष्ट्र के नेता विपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी कहते थे कि महा विकास अघाड़ी सरकार अपने ही बोझ से गिरेगी लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा है, लगता है बीजेपी ने अब वो रास्ता बंद कर दिया है.
कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना के अंतर्विरोध के भरोसे बैठने की बजाय सीधे शिवसेना पर वार शुरू हुआ है. पहली बार है कि बीजेपी नेता सीधे ठाकरे परिवार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं. खुद उद्धव ठाकरे ने विधानसभा के अंदर अपने भाषण में परिवार पर वार करने से बचने की अपील की. इससे पहले केंद्रीय एजेंसियों और बीजेपी नेताओं के निशाने पर शिवसेना के बाकी नेता रहे लेकिन अब ठाकरे परिवार को भी बक्शा नहीं जा रहा.
अजित पावर से हाथ मिलाने पर हुई थी किरकिरी
2014 के पहले कांग्रेस-एनसीपी सरकार के वक्त अजित पवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. जिसके चलते एनसीपी की काफी किरकीरी हुई थी लेकिन वहीं अजित पवार के साथ अचानक सरकार बनाने पर देवेंद्र फडणवीस और बीजेपी की छवि पर सवाल उठने लगे. खुद फडणवीस को कहना पड़ा कि ऐसी सरकार बनाने के लिए उन्हें खेद है. अब ठाकरे परिवार पर आरोप लगाने के बाद उन्हें पता है कि दोबारा शिवसेना के साथ रिश्ते बनाने की कोशिश हुई तो बीजेपी पर सवाल उठेंगे इसलिए आरोप यही सोच कर लग रहे है कि शिवसेना के बिना अपना वजूद बीजेपी पुख्ता कर सके.
बीजेपी ने दो बार सत्ता पाने की कोशिश की
बीजेपी ने अपने बलबूते महाराष्ट्र में सत्ता पाने की दो बार कोशिश की है. पहली बार मोदी लहर पर 2014 में जिसमें उसे कुछ सीटें कम मिलीं. दूसरी बार 2019 में शिवसेना के साथ गठबंधन होते हुए भी उसकी सीटें 2014 के मुकाबले कम हुईं. लेकिन दोनों बार बीजेपी 1990 के बाद महाराष्ट्र में ऐसी पहली पार्टी रही जिसे 288 सीटों वाली विधान सभा में 100 से ज्यादा सीटें मिलीं.
25 साल से चल रहे गठबंधन को नहीं तोड़ पाई थी
बीजेपी को अब लगता है कि महाराष्ट्र में लगभग सारी प्रमुख पार्टियां अब सरकार में शामिल हैं और अकेली वही विपक्ष में है. ऐसे में पिछले 25 साल से चल रहा गठबंधन का खेल खत्म करना है तो यही मौका है. अगर मौजूदा सरकार के खिलाफ वो माहौल बना पाते हैं तो चुनाव में जनता के सामने वही सबसे मजबूत विकल्प होगी.
2014 में बीजेपी की ये कोशिश इसलिए नाकाम रही क्योंकि विपक्ष के तौर पर उसके साथ शिवसेना थी. कांग्रेस-एनीसीपी के खिलाफ माहौल का सारा फायदा उसे शिवसेना के साथ साझा करना पड़ा. ऐसे में अब जबकि महाराष्ट्र में कांग्रेस पहले जितनी ताकतवर नहीं है, एनसीपी शरद पवार के बाद अपने भविष्य को लेकर चिंता में हैं तो बीजेपी की असली लड़ाई शिवसेना के साथ ही हो सकती है. इसीलिए अब सिर्फ शिवसेना, एनीसीपी या कांग्रेस ही नहीं, ठाकरे परिवार भी बीजेपी के निशाने पर रहेगा.