महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के दिन निकट हैं. एग्जिट पोल की माने तो हरियाणा और जम्मू कश्मीर में स्थानीय विषयों को दरकिनार करके राष्ट्रीय स्वाभिमान के नाम पर चुनाव लड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी पस्त दिख रही है. फिर भी बीजेपी अपनी गलतियों से कुछ सीखती हुई नजर नहीं आ रही है. महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग में शिवाजी की मूर्ति गिरने के विवाद के बीच उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर अपनी किताब द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में मराठा स्वाभिमान के प्रतीक छत्रपति शिवाजी का अपमान करने का आरोप लगाकर उसे मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जाहिर है कि फडणवीस के इस आरोप के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच जुबानी जंग छिड़ चुकी है. पर यह कोई अकेला मामला नहीं है. बीजेपी इसके पहले भी मुगल शासकों के नाम पर बने शहरों के नाम मराठा क्षत्रपों के नाम पर रख चुकी है, और कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि अगर वो सत्ता में आई तो इन शहरों का नाम बदलने की कोशिश होगी. वीर सावरकर के नाम पर भी बीजेपी और कांग्रेस में अकसर भिड़ंत होती रही है. सवाल यह है कि क्या बीजेपी की यह रणनीति महाराष्ट्र के अगले विधानसभा चुनावों में क्या कारगर साबित हो सकेगी ?
1- नेहरू ने शिवाजी का अपमान किया था, कितना अहम सवाल है यह?
यह दूसरा मौका है जब फडणवीस ने इस मुद्दे को उठाया है. राजकोट किले में 35 फुट ऊंची मूर्ति के गिरने पर भाजपा की आलोचना का जवाब देने के लिए फडणवीस एक बार और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पर इस तरह का आरोप लगा चुके हैं . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल इस मूर्ति का उद्घाटन किया था. शनिवार को, जब विपक्षी महा विकास अघाड़ी ने शिवाजी की मूर्ति गिरने को लेकर भाजपा पर हमला किया तब फडणवीस ने कहा कि मूर्ति गिरने को लेकर यह विरोध पूरी तरह से राजनीतिक है. MVA और कांग्रेस ने कभी भी छत्रपति शिवाजी महाराज का सम्मान नहीं किया. नेहरू ने द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान किया था. क्या कांग्रेस और MVA इसके लिए माफी मांगेंगे? उन्होंने कांग्रेस पर शिवाजी को लेकर गलत तथ्यों को फैलाने का भी आरोप लगाया, जिसमें कहा गया कि शिवाजी ने सूरत को लूटा था.
दरअसल मराठा स्वाभिमान को उभारने का मौका विपक्ष भी बीजेपी को दे रहा है. अभी मुश्किल से एक हफ्ते पहले की बात है एक विधायक ने कह दिया कि सावरकर गोमांस खाते थे. सावरकर यद्यपि ब्राह्मण थे पर मराठा स्वाभिमान उनसे भी कहीं न कहीं जुड़ा रहता है. क्योंकि सावरकर ने हिंदुओं के एकीकरण के लिए वर्तमान जाति व्यवस्था का तिरस्कार किया था. इसी तरह गाहे बगाहे हर महीने मुगलों के नाम वाले जिन शहरों के नाम बदले गए उनके शहरों के पुराने नामों के फिर रखने की मांग आ जाती है. मुगलों के नाम हटाकर जो नाम रखे गए वो अधिकतर छत्रपति शिवाजी के घर वालों के नाम पर रखे गएं हैं. जब विपक्ष इस संबंध में कुछ बोलता है तो बीजेपी इस मामले को तुरंत लपक लिया करती है.
बीजेपी मराठा स्वाभिमान तो जगा रही है पर उसे पता नहीं है कि यह उसके लिए उल्टा पड़ सकता है. अगर मराठों का स्वाभिमान जाग गया तो वे कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे कि महाराष्ट्र की सत्ता किसी और जाति वाले के पास जाए. बीजेपी में मुख्यमंत्री तो छोड़िए एक स्टेट लेवल का मराठा नेता तक नहीं है. जिस तरह बीजेपी ने हरियाणा में जाटों को खुश करने के लिए कांग्रेस आयातित किरण चौधरी को राज्य सभा भेजा था ठीक उसी तरह मराठों को खुश करने के लिए कांग्रेस से आयातित अशोक चह्वाण को राज्यसभा भेजा गया. महाराष्ट्र से केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी किसी कद्दावर नेता को जगह नहीं दी गई है.
2- महाराष्ट्र में मराठों की नाराजगी हरियाणा के जाटों के रास्ते जा रही है
हरियाणा में बहुत दिनों से जाटों की नाराजगी भारतीय जनता पार्टी से थी. पर इसके लिए बीजेपी ने कोई प्रयास नहीं किया बल्कि उल्टे जाटों के खिलाफ एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण का प्रयास करती रही. बिल्कुल यही हालत है महाराष्ट्र में है. हरियाणा में जाटों का वोट 25 से 28 प्रतिशत तक बताया जाता रहा है. इसके अलावा में हरियाणा में जाट एक डॉमिनेंट कास्ट है. जिसका राजनीतिक गतिविधियों पर भी प्रभाव रहता है. ठीक उसी तरह महाराष्ट्र में मराठों की जनसंख्या करीब 34 प्रतिशत है. मराठे भी मार्शल कौम हैं और राजनीतिक रूप से वे बेहद जागरूक हैं.
हरियाणा में बीजेपी ने पिछले 10 सालों से एक भी सीएम जाट समुदाय से नहीं दिया. यहां तक कि चुनावों के समय प्रदेश अध्यक्ष भी गैरजाट ब्राह्मण को बना दिया. केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी हरियाणा के किसी जाट नेता को शामिल नहीं किया गया. महाराष्ट्र में भी बीजेपी करीब-करीब हरियाणा की चाल ही चल रही है. हरियाणा में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान जमकर हिंसा हुई थी. महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन कई बार अपने चरम पर जा चुका है. दरअसल बीजेपी की मंशा महाराष्ट्र में एंटी मराठा ध्रुवीकरण कराने की कोशिश की रही है.पर जिस तरह हरियाणा में एंटी जाट वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश फेल हुई है उसी तरह एंटी मराठा ध्रुवीकरण भी फेल हो सकता है.
3- राजस्थान और एमपी में आजमाए नुस्खे कितना काम आएंगे
शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य का दौरा किया. पखवाड़े के भीतर उनकी दूसरी यात्रा रही जिसमें वे राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण क्षेत्रों विदर्भ और मुंबई-ठाणे में रुके.मोदी ने हजारों करोड़ के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन किया . उनकी यात्रा में वाशिम में जगदंबा माता मंदिर, पोहरादेवी, जो बंजारा समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है का दौरा, दो स्थानीय संतों की समाधियों पर रुकना और ‘बंजारा विरासत संग्रहालय’ का उद्घाटन आदि शामिल किया गया था.
पीएम की यात्रा इस तरह डिजाइन की गई थी कि छोटे-छोटे समुदायों के इतिहास पुरुषों, देवताओं आदि को महत्व दिया जा सके.बंजारा एक घुमंतू जनजाति है, जिनकी संख्या एक करोड़ से अधिक है. इंडियान एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार भाजपा ने मध्य प्रदेश की एक टीम को भी विदर्भ में तैनात किया है, जिसने राज्य चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ काम किया था. इस टीम ने विदर्भ के 11 जिलों में स्थानीय नेताओं के साथ बातचीत की और केंद्रीय चुनाव प्रबंधन टीम को क्षेत्रीय स्तर पर लोगों तक पहुंचने की योजना पर इनपुट दिए हैं.मध्यप्रदेश की लाडली बहना की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी महिलाओं को हर महीने आर्थिक मदद की योजना शुरू की गई है. पर ये सब प्रयास इतनी देर से शुरू हुए हैं कि इनका जनता तक असर पहुंचने में काफी समय लगने वाला है.