तेजस्वी यादव ने लोकसभा चुनाव प्रचार में मेहनत करने से कोई कसर नहीं छोड़ी. कमर में दर्द के बावजूद उन्होंने रैलियों का रिकॉर्ड बनाया. लेकिन, बीजेपी को पूरे उत्तर भारत में जैसी चोट लगी है, वैसी बिहार में नहीं लग पाई.
आरजेडी नेता की मजबूरी है कि नतीजों के बाद यदि कोई क्रेडिट लेते हैं तो INDIA गठबंधन के नाम पर लेते हैं, और उदाहरण अयोध्या में भाजपा की हार का देते हैं. क्योंकि, बिहार में उनके पास बताने को कुछ है नहीं.
कुल मिलाकर जैसी हताशा अपना वोट शेयर कायम रखने वाली भाजपा के भीतर है, वैसी ही हताशा बिहार में तेजस्वी के अंदर देखी जा सकती है - अब ये देखना दिलचस्प होगा कि तेजस्वी अपनी लालटेन के सहारे बिहार में कौन सी नई राह ढूंढने वाले हैं?
1. बिहार की सीटें जीतने में फिसड्डी तेजस्वी यादव वोट शेयर के भरोसे कहां तक जाएंगे?
2019 के संसदीय चुनाव में आरजेडी का वोट शेयर 15.36 था और 2024 में ये बढ़ कर 22.14 फीसदी हो गया है - यानी, कुल 6.78 फीसदी की सीधे सीधे बढ़ोतरी हुई है.
लोकसभा चुनाव 2024 में तेजस्वी यादव अपने राष्ट्रीय जनता दल को सीटें तो नहीं दिला पाये, लेकिन वोट शेयर बढ़ाने में सफल रहे हैं. हालांकि, 2019 से तुलना करें तो जो भी सीटें आरजेडी के हिस्से में आई हैं, वो फायदा ही है - क्योंकि 2019 में तो आरजेडी जीरो बैलेंस पर पहुंच गई थी.
अब अगर 2020 और 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी के वोट शेयर पर नजर डालें तो ऐसा फासला नहीं, लेकिन वोट शेयर बढ़ा जरूर था. 2020 में आरजेडी का वोट शेयर 23.11 फीसदी दर्ज किया गया था, जो 2015 के मुकाबले 4.79 फीसदी ज्यादा था.
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी अगर 2020 विधानसभा और 2024 के लोकसभा का पैटर्न कायम रहा तो आरजेडी का वोट शेयर 4-6 फीसदी बढ़ भी सकता है - लेकिन वोट शेयर की बढ़ोतरी सीटें मिलने की गारंटी तो होती नहीं.
2. पड़ोस में अखिलेश यादव कम वोट शेयर के बावजूद जीत का बेहतरीन स्ट्राइक रेट दिखाते हैं
तेजस्वी यादव ने बिहार की 40 में से 23 लोकसभा सीटों पर आरजेडी उम्मीदवार उतारे थे, जबकि कांग्रेस के हिस्से में 9 सीटें आई थीं - और आरजेडी महज 4, जबकि कांग्रेस 3 सीटें जीतने में सफल रही.
स्ट्राइक रेट के हिसाब से देखें तो बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन आरजेडी से बेहतर रहा. मुस्लिम वोटों को लेकर आरजेडी और कांग्रेस में प्रतियोगिता हो सकती है, लेकिन तेजस्वी यादव के प्रदर्शन की तुलना तो उनकी तरह ही M-Y समीकरण वाली राजनीतिक करने वाली समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ज्यादा अच्छा होगा.
अखिलेश यादव यूपी में 62 सीटें अपने पास रखे थे, और कांग्रेस के हिस्से में 17 सीटें छोड़ी थी. यूपी में बीजेपी के सपनों पर पानी फेर देने वाली समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें जीत ली है, और कांग्रेस भी 6 सीटों पर फतह हासिल की है.
अखिलेश यादव के साथ तेजस्वी यादव जैसा तो नहीं, लेकिन चुनावों से पहले 'खेला' तो हुआ ही था. जैसे नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव को छोड़ कर बीजेपी के साथ जा मिले, यूपी में आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने भी वैसा ही किया था.
3. अब बिहार विधानसभा चुनाव आरजेडी का सारा प्लान नीतीश कुमार पर निर्भर
लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू का प्रदर्शन 2019 जैसा तो बिलकुल नहीं है. 2019 में जेडीयू ने 17 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 सीटें जीती थी, लेकिन इस बार 16 सीटों पर चुनाव लड़कर 12 सीटें ही जीत पाई है, जो बीजेपी के बराबर है.
बिहार में बीजेपी के बराबर सीटें जीतने के साथ ही नीतीश कुमार इसलिए किंगमेकर बन गये हैं, क्योंकि बीजेपी देश भर में 400 पार की कौन कहे, अकेले दम पर बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटें भी नहीं जीत पाई है.
2019 की तुलना में देखें तो नीतीश कुमार का वोट शेयर गिरा है. 2019 में 21.81 फीसदी वोट शेयर हासिल करने वाली जेडीयू इस बार 18.52 फीसदी ही वोट शेयर हासिल कर पाई है - अगर ऐसी ही गिरावट 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलता है, तो वो तेजस्वी यादव के लिए फायदे की बात हो सकती है.
लेकिन ये भी कोई भरोसेमंद पैमाना नहीं होता. 2020 के विधानसभा चुनाव में 1 फीसदी से भी कम वोटों के अंतर से पिछड़ जाने के कारण हिमाचल प्रदेश में सत्ता गंवा चुकी, बीजेपी 2024 में लोकसभा की सभी चार सीटें फिर से जीत ली है.
4. बिहार में सोलो परफॉर्मेंस के लिए तेजस्वी कितने तैयार?
लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में बेशक बड़ा फर्क होता है, लिहाजा दोनों की आपस में तुलना नहीं हो सकती - और तेजस्वी यादव के सामने अगला टारगेट 2025 का विधानसभा चुनाव है, इसलिए 2020 में आरजेडी के प्रदर्शन की पैमाइश पहले जरूरी है.
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी बहुमत से भले ही चूक गई हो, लेकिन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में पार्टी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था - और सीटों के मामले में नंबर 1 राजनीतिक पार्टी बन कर उभरी थी. आरजेडी को 75 विधानसभा सीटें मिली थीं. फासला तो एक ही सीट का था, लेकिन बीजेपी दूसरे नंबर पर रह गई थी, जबकि जेडीयू तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी.
लोकसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव ने फटाफट ही सही लेकिन बिहार का दौरा भी किया था, और चुनाव कैंपेन के दौरान भी कमर में बेल्ट बांधे और व्हील चेयर पर देखे गये. बिहार में नौकरियां देने और जातीय जनगणना कराने का क्रेडिट लेने की भी पूरी कोशिश की, लेकिन उन सबका कोई चुनावी फायदा तो नहीं ही नजर आया.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर कोई नया प्लान हो तो अलग बात है, लेकिन वोट शेयर बढ़ने के बाद भी अगर विधानसभा सीटों का नंबर सबसे ज्यादा नहीं आता तो सत्ता पर काबिज होना संभव नहीं होगा.
5. राजद के लिए महज कांग्रेस का साथ नाकाफी है
लोकसभा चुनाव 2024 में लालू परिवार के कई रिजर्वेशन आरजेडी के प्रदर्शन में आड़े आये दिखते हैं. तेजस्वी यादव ने कई वीडियो रिलीज किये जिसमें वो तेजस्वी यादव के साथ कभी मछली तो कभी कुछ और खाते देखे गये - लेकिन मुकेश सहनी न तो अपने हिस्से की तीन सीटें जीत पाये, न ही अपने प्रभाव वाले इलाके में इंडिया गठबंधन के लिए मददगार साबित हुए.
ऐसे दो मामले सामने आये जिसमें ये रिजर्वेशन साफ साफ नजर आ रहा था - सबने देखा कि किस तरह पप्पू यादव और कन्हैया कुमार के रास्ते में लालू परिवार दीवार बन कर खड़ा हो गया.
कांग्रेस कन्हैया कुमार को बेगूसराय से चुनाव लड़ाना चाहती थी, वो खुद भी वहीं से तैयारी कर रहे थे - लेकिन लालू यादव और तेजस्वी यादव की जिद के कारण कांग्रेस को दिल्ली से उम्मीदवार बनाना पड़ा. ये जरूरी तो नहीं कि कन्हैया कुमार बेगूसराय से इस बार चुनाव जीत ही गये होते, लेकिन 2019 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे. 2019 में कन्हैया कुमार बेगूसराय सीट पर बीजेपी के गिरिराज सिंह से चुनाव हार गये थे.
लेकिन पूर्णिया में पप्पू यादव की जीत ने नई मिसाल कायम की है. तेजस्वी यादव ने पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन पप्पू यादव का बाल भी बांका नहीं कर पाये. आरजेडी उम्मीदवार बीमा भारती तीसरे स्थान पर रह गईं.
अगर तेजस्वी यादव को वास्तव में बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठना है, तो बड़ा दिल दिखाना होगा. वरना, नीतीश कुमार का साथ मिलने के अलावा कोई और चारा नहीं बनता - लेकिन मुश्किल ये है कि नीतीश कुमार जिस तरह दिल्ली में बीजेपी के साथ खड़े हैं, लगता नहीं कि वो इतनी जल्दी पलटी मारने वाले हैं.