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तेजस्वी यादव की जन विश्वास यात्रा से ज्यादा नुकसान किसे होगा - नीतीश कुमार या बीजेपी को?

तेजस्वी यादव जन विश्वास यात्रा पर निकले हैं, ताकि पूरे बिहार में घूम घूम कर लोगों से अपनी बात कह सकें. और कोशिश है कि डिप्टी सीएम रहते आरजेडी के मंत्रियों के हिस्से के काम के क्रेडिट से नीतीश कुमार को बेदखल कर सकें - और जंगलराज की तोहमत से हमेशा के लिए पीछा भी छुड़ा सकें.

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तेजस्वी यादव ने तरीका तो सही ढूंढा है, बशर्ते बिहार के लोगों को अपनी बात समझा लें
तेजस्वी यादव ने तरीका तो सही ढूंढा है, बशर्ते बिहार के लोगों को अपनी बात समझा लें

तेजस्वी यादव भी अब बिहार यात्रा पर निकल चुके हैं. राष्ट्रीय जनता दल ने तेजस्वी यादव के ताजा अभियान को जन विश्वास यात्रा नाम दिया है. हाल ही में तेजस्वी यादव भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बिहार पहुंचने पर राहुल गांधी के साथ देखे गये थे. बिहार में प्रशांत किशोर पहले से ही जन सुराज यात्रा कर रहे हैं.  

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सभी यात्राओं का अपना अपना मकसद है, तेजस्वी यादव की जन विश्वास यात्रा का भी. प्रशांत किशोर बिहार में जन सुराज लाना चाहते हैं. राहुल गांधी देश भर के लोगों को पांच-न्याय दिलाना चाहते हैं.

तेजस्वी यादव कई तरह के दबाव से भी गुजर रहे हैं. सिर पर लोक सभा चुनाव 2024 आ खड़ा हुआ है. कभी भी चुनाव की तारीखों की घोषणा हो सकती है. आचार संहिता लागू हो सकती है, फिर तो सारा ही खर्च चुनाव खर्च में ही जोड़ दिया जाएगा. 

2019 के आम चुनाव में तेजस्वी यादव की पार्टी आरेडी को एक भी सीट नहीं मिली थी. बिहार की 40 लोक सभा सीटों में से 39 एनडीए और एक कांग्रेस के हिस्से में चली गई थी. तेजस्वी यादव पर 2020 के विधानसभा चुनावों जैसे प्रदर्शन का भी दबाव है - और लगे हाथ 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की भी तैयारी करनी है. 

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अव्वल तो हर चुनाव में तेजस्वी यादव को जंगलराज के हमले झेलने पड़ते हैं. चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बीजेपी नेता नरेंद्र मोदी और अमित शाह 15 साल के लालू-राबड़ी शासन को जंगलराज का नाम देकर घेरते रहे हैं. 2020 में तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेजस्वी यादव को जंगलराज का युवराज तक बता डाला था - निश्चित तौर पर तेजस्वी यादव की कोशिश जंगलराज के तोहमत से हमेशा के लिए निजात पाने की होगी, लेकिन काम तो और भी हैं.

बिहार में नीतीश कुमार के फिर से एनडीए में चले जाने के बाद से नौकरियों और जातिगत गणना के श्रेय लेने को लेकर खूब जोर आजमाइश चल रही है. बीजेपी और जेडीयू का दावा है कि सब कुछ नीतीश कुमार का किया हुआ है, जबकि तेजस्वी यादव अपने हिस्से के काम पर दावा पेश कर रहे हैं - और जन विश्वास यात्रा के दौरान घूम घूम कर तेजस्वी यादव लोगों को यही सब समझाने की कोशिश करेंगे.

काम के क्रेडिट पर काबिज होने के लिए जोर-आजमाइश

नीतीश कुमार के साथ छोड़ने के बाद तेजस्वी यादव ने तो सिर्फ 'खेला' होने की ही बात कही थी, काम के क्रेडिट की लड़ाई तो राहुल गांधी ने शुरू करा दी. तेजस्वी यादव तमाम कोशिशों के बावजूद खेला तो नहीं कर पाये, लेकिन राहुल गांधी आग लगा कर लोगों को न्याय दिलाने आगे बढ़ गये. 

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न्याय यात्रा के तहत बिहार पहुंचे राहुल गांधी का दावा था कि बिहार में जातिगत गणना का काम तो महागठबंधन के दबाव में हुआ. ये भी दावा रहा कि वो खुद नीतीश कुमार पर जातिगत गणना के लिए दबाव डाले थे, और क्योंकि नीतीश कुमार ऐसा नहीं चाहते थे इसलिए वो बीजेपी के साथ चले गये. 

तेजस्वी यादव ने भी डिप्टी सीएम रहते अपने 17 महीने के कार्यकाल के दौरान महागठबंधन सरकार में हुए काम के क्रेडिट पर दावा ठोक दिया. जब नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के दावे को न्यूट्रलाइज करने की कोशिश की तो वो हिसाब किताब पर उतर आये. विस्तार से बताने लगे कि जो काम हुए वे विभाग किसके पास थे, और याद दिलाते कि वे आरजेडी के मंत्रियों के विभाग थे जहां काम हुए. 

अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट में इस मुद्दे पर एक जेडीयू नेता की बड़ी अजीब दलील सुनाई देती है, तथ्य तो ये है कि नीतीश कुमार ने बेरोजगार युवाओं को नियुक्ति पत्र बांटे थे. तथ्य तो सही हैं, लेकिन इससे आरजेडी को उसके हक से कैसे बेदखल किया जा सकता है. 

जाहिर है, मुख्यमंत्री होने के नाते ज्यादातर उद्घाटन नीतीश कुमार ही करते रहे. कई जगह वो तेजस्वी यादव के साथ मिल कर भी उद्घाटन करते थे. अगर जातिगत गणना के श्रेय से नीतीश कुमार को बेदखल करने की कोशिश हो तो सवाल उस पर भी उठता है. ये जातिगत गणना का ही मुद्दा रहा जिसकी बदौलत नीतीश कुमार और लालू यादव फिर से साथ आये थे, लेकिन राहुल गांधी का दावा भी वैसे ही हजम होना मुश्किल है जैसे उस जेडीयू नेता की दलील. 

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लेकिन काम के क्रेडिट की ये लड़ाई आगे बढ़ चुकी है. नीतीश कुमार ने 6 विभागों के कामकाज की समीक्षा के आदेश दे चुके हैं. सरकारी आदेश में लिखा गया है, '01.04.2023 से स्वास्थ्य विभाग, पथ निर्माण विभाग, नगर विकास एवं आवास विभाग, ग्रामीण कार्य विभाग, खान एवं भूतत्व विभाग एवं लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग में पूर्व मंत्री जी के स्तर पर किये गये कार्यों एवं लिए गए निर्णयों की समीक्षा की जाए.'

और ये भी जोड़ा गया है कि 'यदि आवाश्यक हो तो सक्षम प्राधिकार से अनुमोदन के उपरान्त उनमें संशोधन किया जाए.'

नीतीश कुमार की सरकार में कृषि मंत्री रह चुके आरजेडी नेता सुधाकर सिंह का सवाल है, जो विभाग आरजेडी के मंत्रियों के पास था, उनकी जांच क्यों? मुख्यमंत्री को सभी विभागों की जांच करवानी चाहिए.

बात तो सही है. लेकिन ये तो मुख्यमंत्री को ही अधिकार है कि किस जगह उनको शक है, और कहां वो जांच कराना चाहते हैं. लेकिन आरजेडी नेता का सवाल भी वाजिब है. ये सवाल भी कुछ वैसा ही है जैसे विपक्षी दलों के नेता पूछते हैं कि ED और CBI जैसी जांच एजेंसियों के निशाने पर विपक्ष के ही ज्यादातर नेता क्यों होते हैं, बीजेपी के क्यों नहीं. ऐसे सवालों का जवाब तो कोई देने से रहा, आप जो समझ सकते हैं समझ जाइए.

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ये सारी ही बातें तेजस्वी यादव की जन विश्वास यात्रा में उठाई जाने वाली हैं. और दोनों पक्षों की बातें सुनकर बिहार की जनता को आने वाले चुनावों में दूध का दूध और पानी का पानी करने की जिम्मेदारी है. 

कोशिश तो जंगलराज के झमेले से भी निजात पाने की होगी

तेजस्वी यादव की जन विश्वास यात्रा कुल 10 दिन चलेगी. बीच में एक दिन का गैप रखा गया है, 28 फरवरी को. आखिरी दिन, एक मार्च को बांका, जमुई और लखीसराय की जनसभा के साथ ये यात्रा खत्म होगी. 

अपनी यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव बिहार के सभी 38 जिलों में जा रहे हैं, और हर रोज 3-4 रैलियां प्लान की गई हैं. दस दिन में 30 रैली. काफी भागमभाग होगी. ये यात्रा एक विशेष बस से हो रही है - देखा जाये तो लोक सभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव की भी तैयारी कर रहे हैं. 

अब तक तेजस्वी यादव के पास कुछ भी बताने के लिए नहीं होता था. प्रशांत किशोर का भी यही सवाल होता था कि तेजस्वी यादव की उपलब्धि क्या है, सिवा लालू यादव के बेटे होने के? और जैसे राहुल गांधी के खिलाफ उनके राजनीतिक विरोधी 'पप्पू' बोल कर घेरते रहते हैं, तेजस्वी यादव के खिलाफ भी एक ही राजनीतिक हथियार होता है, '9वीं फेल' - और चुनावों में तो 'जंगलराज का युवराज' ही बोल दिया जाता है. 

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2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी तेजस्वी यादव अकेले ही मैदान में डटे हुए थे, लेकिन पूरी मशक्त के बावजूद वो लालू-राबड़ी के बेटे की छवि से उबर नहीं सके. हालांकि, बिहार विधानसभा में आरजेडी को नंबर 1 पार्टी तो बना ही दिया है. 

नीतीश कुमार के ताजातरीन विश्वास प्रस्ताव पर भी तेजस्वी यादव का भाषण पहले के मुकाबले काफी मैच्योर दिखा. ये भी देखने में आ रहा है कि तेजस्वी यादव निजी हमलों से बच रहे हैं. हो सकता है, इसके पीछे वाणी में संजीदगी लाने की कोशिश हो, लेकिन लालू यादव की तरफ से नीतीश कुमार को लेकर वैसा ही बयान दिया जाना जैसा अमित शाह ने प्रस्ताव पर विचार की बात की थी, भी हो सकता है. लालू यादव का कहना है कि नीतीश कुमार के लिए उनका दरवाजा हमेशा खुला है - क्या ये नरमी चुनावों के दौरान विकास के नाम पर बच्चे पैदा करने की मिसाल देने जैसी घटिया चीजों के लिए एहतियाती उपाय साबित हो सकती है? 

बिहार के चुनावी माहौल को देखते हुए तेजस्वी यादव को नौकरियों और जातिगत गणना का मुद्दा बड़े काम का लग रहा होगा. ये भी है कि दोनों ही चीजों से वो सीधे सीधे जुड़े हुए थे - और गठबंधन की सरकार में मजबूत पार्टनर होने के नाते अपने हिस्से पर हक जताने का अधिकार तो उनके पास है ही. 

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बिहार की जनता के बीच जाकर तेजस्वी यादव अपने 17 महीने के कार्यकाल के दौरान हुए सरकारी काम का ब्योरा अपनी निजी उपलब्धि के तौर पर पेश करना चाहते हैं. अब ये बिहार के लोगों पर निर्भर करता है कि तेजस्वी यादव की बातों को कितनी अहमियत देते हैं?

सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि क्या लोग बदले में तेजस्वी यादव को जंगलराज के साये से मुक्ति भी दिला देंगे? तेजस्वी यादव को मिलने वाली यही वो संभावित थाती होगी जिसका उनको फायदा और नीतीश कुमार के साथ साथ बीजेपी को भी हो सकता है.

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