महाराष्ट्र नव निर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे के एनडीए के साथ आने की चर्चाएं तेज हैं. कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं कि महाराष्ट्र में एनडीए को क्या जरूरत समझ में आ रही है कि तीन बड़ी पार्टियों (बीजेपी-एकनाथ शिंदे और अजित पवार गुट) के होने के बावजूद MNS को साथ लेना पड़ा रहा है? तब जब राज्य में MNS का सिर्फ एक ही विधायक है और संगठन भी उतना ताकतवर नहीं है. राजनीतिक जानकार इसके पांच बड़े कारण गिना रहे हैं.
पहला- पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि कहीं ना कहीं बीजेपी इस बात को लेकर क्लीयर नहीं है कि लोकसभा चुनाव में मुंबई और आसपास के इलाकों में उद्धव गुट और कांग्रेस उनका गठबंधन कितना नुकसान पहुंचा सकता है? पिछली बार यहां की सभी सीटों पर एनडीए ने जीत हासिल की थीं. ऐसे में बीजेपी इस बार भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. ये नंबर पार्टी के लिए बहुत मायने रखते हैं. खासकर इसलिए, उद्धव ठाकरे अगर मुंबई में कोई सीट जीत जाते हैं तो ये उनकी पार्टी के लिए बड़ा बूस्ट होगा. उसे काउंटर करने के लिए अभी भी मजबूत लोगों को अपने पाले में लाने की जरूरत है.
'मुंबई और आसपास की सीटें जीतने का प्लान'
दूसरा- मूड ऑफ द नेशन के सर्वे में भी महा विकास अघाड़ी (इंडिया ब्लॉक) और एनडीए के बीच में करीब 4 प्रतिशत वोट का अंतर दिखाई दिया था. इसका मतलब साफ है कि अभी भी करीब 15 प्रतिशत फ्लोटिंग वोट दिखाई दे रहा था. ऐसे में फ्लोटिंग वोट को समय रहते अपने पाले में लाने की कोशिश करनी चाहिए. उसे देखते हुए बीजेपी की ओर से राज ठाकरे से संपर्क किया गया. खासकर दक्षिण मुंबई की सीट पर बात चल रही है. उसका असर मुंबई और आसपास के इलाकों में देखने को मिल सकता है.
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'कोर मराठी वोटर्स अपने पक्ष में लाने की कवायद'
तीसरा- चूंकि बीजेपी को लगता है कि शिवसेना का कोर मराठी वोटर अभी भी उद्धव ठाकरे के समर्थन में है और एकनाथ शिंदे के साथ बीजेपी को ट्रांसफर होने की संभावनाएं कम हैं. ऐसे में अगर राज ठाकरे जैसा चेहरा एनडीए के साथ होगा तो कम से कम उन वोटों को साथ में लाने की कोशिशें सफल हो सकती हैं.
'MNS के लिए भी अलायंस में आना मजबूरी'
चौथा- दूसरी तरफ राज ठाकरे के लिए भी एनडीए अलायंस में आना एक तरह से मजबूरी है. उनकी पार्टी का ग्राफ धीरे-धीरे नीचे ही जा रहा है. पिछले चुनाव नतीजे में सामने आया कि MNS के एक से दो प्रतिशत वोट बचे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में MNS ने बीजेपी और पीएम मोदी का समर्थन किया था. हालांकि, 2019 में यूटर्न मारा और पीएम मोदी का विरोध किया था. राज ठाकरे की पार्टी 2019 का चुनाव भी नहीं लड़ी थी.
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'हिंदुत्व की खाली पिच पर राज ठाकर को मौका'
पांचवा- राज ठाकरे को लगता है कि उद्धव ठाकरे के कांग्रेस के साथ जाने से हिंदुत्व की पिच खाली है और बीजेपी के समर्थन से संगठन को भी मजबूत किए जाने का एक अच्छा मौका हो सकता है. राज ठाकरे पर अपनी पार्टी कैडर का भी दबाव है. ऐसे में एनडीए में आकर राज ठाकरे ना सिर्फ पार्टी को बचा सकेंगे, बल्कि अपना वोट प्रतिशत और लोकसभा में भी उपस्थिति दर्ज करवा सकते हैं.
'सिर्फ बीजेपी हाईकमान के संपर्क में राज ठाकरे'
रोचक यह है कि राज ठाकरे की यह बातचीत सिर्फ बीजेपी हाईकमान के साथ हो रही है. इसमें शिंदे गुट या अजित गुट को शामिल नहीं किया गया है. इसका मतलब साफ है कि जो भी गठबंधन की बातचीत होगी, वो बीजेपी के साथ होगी. इसमें विधानसभा के लिए सीटों पर बातचीत हो सकती है. फिलहाल, महाराष्ट्र में एक नए राजनीतिक समीकरण उभरने की तैयारी को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
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