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परिसीमन के 'खतरे' का समाधान अधिक बच्चे पैदा करना नहीं, इस उपाय पर क्यों नहीं हो रही है चर्चा?

संसदीय सीटों के परिसीमन को लेकर दक्षिण के राज्यों की चिंता वाजिब है. पर इसका हल अधिक बच्चे पैदा करके जनसंख्या बढ़ाना भी नहीं है. न ही दक्षिण के राज्यों को रिलेक्सेशन देना समस्या का हल है. इससे तो एक व्यक्ति -एक वोट- एक समान मूल्य की विचारधारा ही खत्म हो जाएगी.

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तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर एमके स्टालिन
तमिलनाडु के चीफ मिनिस्टर एमके स्टालिन

देश में संसदीय सीटों के लिए प्रस्तावित परिसीमन (Delimitation) प्रक्रिया पर दक्षिण के राज्यों की चिंता स्वाभाविक है. परिसीमन के तहत लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ाई जानी है क्योंकि देश की जनसंख्या बढने के चलते एक सांसद जितने लोगों को रिप्रजेंट कर सकता है उससे कहीं अधिक लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहा है. जाहिर है ऐसे में दक्षिण के राज्य उत्तर भारत के राज्यों के मुकाबले में घाटे में रहने वाले हैं. कारण यह है कि शिक्षा और मानव विकास के चलते दक्षिण के राज्यों ने अपनी जनसंख्या कम कर ली. उत्तर भारत के राज्य अपनी लापरवाही के चलते अशिक्षा और गरीबी से अपनी जनता को निकाल नहीं सके. इसका परिणाम यह हुआ कि दक्षिण के राज्यों के मुकाबले उत्तर भारत के राज्यों की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ी. अब जनसंख्या कम करने के लिए जहां दक्षिण के राज्यों को इनाम मिलना चाहिए था, वहां उनके साथ अन्याय होने वाला है. क्योंकि जैसी कि चर्चा है कि जनसंख्या के आधार पर जब सांसदों की संख्या बढ़ाई जाएगी तो उन राज्यों को सबसे अधिक फायदा होगा उन राज्यों को होगा जहां जनसंख्या नियंत्रण की धज्जियां उड़ाई गईं हैं. ऐसे में दक्षिण के राज्यों की इस तरह की चिंता वाजिब है. 

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तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के लिए यह ‘युद्ध आपातकाल’ जैसी स्थिति है, और वह चाहते हैं कि राज्य के पुरुष और महिलाएं प्यार करें और युद्धस्तर पर बच्चे पैदा करें. कुछ इस तरह के ही मिलते जुलते विचार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के भी हैं,जो केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में भी शामिल हैं.

परिसीमन पर दक्षिण के राज्यों की चिंता क्यों वाजिब है

उत्तर भारत के राज्यों—उत्तर प्रदेश और बिहार के मुकाबले, दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने जनसंख्या नियंत्रण नीति को सफलतापूर्वक लागू किया. स्टालिन और अन्य मुख्यमंत्रियों की चिंता का कारण यही है कि परिसीमन केवल जनसंख्या पर आधारित क्यों हो? अगर ऐसा होता है तो जनसंख्या कम करना उनके लिए अभिशाप हो जाएगा.

तमिलनाडु के पास अभी 543 सदस्यीय लोकसभा में 39 सांसद हैं. स्टालिन ने कहा कि यदि कुल सीटों की संख्या 543 ही रहती है, तो कम जनसंख्या के कारण हमारी 8 लोकसभा सीटें घट सकती हैं. परिसीमन में लोकसभा सीटों की संख्या को 848 तक बढ़ाना है. इस अनुपात में तमिलनाडु को 22 नई सीटें मिल सकती हैं. लेकिन यदि परिसीमन सिर्फ जनसंख्या के आधार पर होता है, तो राज्य को केवल 10 सीटें ही मिलेंगी, जिससे उसे कुल 12 सीटों का नुकसान होगा.

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स्टालिन ने बुधवार को इस मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें उन्होंने कहा, 'डीलिमिटेशन नाम की तलवार दक्षिण के राज्यों के सिर पर लटक रही है. तमिलनाडु के लिए यह एक बड़ा खतरा है.'

गृहमंत्री का आश्वासन अगर सही है तो उत्तर भारत के लोगों के साथ अन्याय होगा

दक्षिण भारत के राज्यों की चिंता को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह आश्वासन दिया है कि किसी भी राज्य की सीटों को परिसीमन प्रक्रिया के कारण नुकसान नहीं होगा. जाहिर है कि केंद्र की एनडीए सरकार कभी नहीं चाहेगी कि दक्षिण के राज्यों के साथ अन्याय करने का ठप्पा उनकी सरकार पर लगे. बीजेपी दक्षिण के राज्यों में पांव जमाने का प्रयास कर रही है. अगर सरकार पर दक्षिण के राज्यों के साथ भेदभाव का आरोप लगता है तो इन राज्यों में बीजेपी के पांव जमने से पहले ही उखड़ जाएंगे.

सवाल उठता है कि क्या अमित शाह दक्षिण के राज्यों को रिलेक्शेशन देंगे. क्या दक्षिण के राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में अधिक सीटें दी जाएंगी? अगर दक्षिण के राज्यों को जनसंख्या के अनुपात में अधिक सीटें मिलती हैं तो निश्चित ही यह भारतीय संविधान के उस मूल भावना का विरोध होगा जिसके अनुसार एक नागरिक, एक वोट, एक समान मूल्य का सिद्धांत निर्मित हुआ है. अगर दक्षिण के राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में अधिक सीटें मिलती हैं तो इसका मतलब होगा कि दक्षिण के एक आदमी की हमारे लोकतंत्र में अधिक कीमत है बनिस्बत उत्तर भारत के एक आदमी की. जाहिर है कि इस तरह का विवाद उठेगा ही और उठना भी चाहिए.

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स्टालिन का अधिक बच्चे पैदा करने का सुझाव महज स्टंटबाजी

इसी चिंता के चलते स्टालिन ने 3 मार्च को अपने राज्य के तमाम शादीशुदा जोड़ों से जल्दी से जल्दी बच्चे पैदा करने की अपील की है. स्टालिन का मानना है कि अधिक जनसंख्या से लोकसभा में तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है. स्टालिन कहते हैं कि पहले हम कहते थे, आराम से सोचो और फिर बच्चा पैदा करो. लेकिन अब स्थिति बदल गई है… इसलिए मैं नहीं कहूंगा कि सोचो, बल्कि तुरंत बच्चा पैदा करो. 

तमिलनाडु की मौजूदा जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का 5.42% है, लेकिन इसकी लोकसभा सीटें 7.18% हैं. इसका मतलब यह है कि तमिलनाडु की लोकसभा सीटें उसकी जनसंख्या हिस्सेदारी से अधिक है. अगर 2026 में होने वाले परिसीमन में सिर्फ जनसंख्या ही पैमाना होता है, तो तमिलनाडु को 7.18% हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए अपनी आबादी को 10.19 करोड़ तक पहुंचाना होगा. स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, 2026 तक तमिलनाडु की जनसंख्या 7.7 करोड़ होगी. इसका सीधा मतलब है कि तमिलनाडु को 2.49 करोड़ लोग और चाहिए होंगे. और तमिलनाडु की प्रजनन दर सिर्फ 1.52 है. यानी यहां की महिलाएं औसतन 2.1 से भी कम बच्चे पैदा कर रही हैं. जबकि तमिलनाडु में अगले दो साल करीब सवा करोड़ बच्‍चे प्रति वर्ष पैदा हों, तभी स्‍टालिन का सपना पूरा होगा. 

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अगर तमिलनाडु को 2026 तक अपनी लोकसभा सीटें बरकरार रखनी हैं 15-45 वर्ष की हर महिला को तुरंत अपनी मौजूदा औसत से दोगुने से भी अधिक रफ्तार से ज्यादा बच्चे पैदा करने होंगे. मानव गर्भावस्था की अवधि 9 महीने होती है, और जनसंख्या वृद्धि एक धीमी प्रक्रिया है. सीधा मतलब है कि स्टालिन का सुझाव बयानबाजी न होकर एक तरह की स्टंटबाजी है.

अमेरिकी सीनेट जैसी व्यवस्था इंडिया में क्यों नहीं?

सीधी बात है कि स्टालिन हों या चंद्रबाबू नायडू जनसंख्या के विकल्प के बजाय यह तर्क दें कि परिसीमन का आधार अगर जनसंख्या है तो कुछ और तरह के अधिकार दिए जाएं. जिस तरह के अधिकार दुनिया के सबसे बेहतरीन फेडरल सिस्टम माने जाने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में है. केंद्र सरकार भी यह मानेगी कि जिन राज्यों ने समय पर जनसंख्या नियंत्रण किया, उन्हें सजा नहीं दी जानी चाहिए.

अमेरिका 50 राज्यों का एक संघ है. इनमें बहुत बड़े राज्य भी हैं और बहुत छोटे राज्य भी हैं. भारत में भी ऐसा ही है. उत्तर प्रदेश जैसा विशाल आबादी और क्षेत्रफल वाल प्रदेश भी है और गोवा, सिक्किम, त्रिपुरा जैसे राज्य भी हैं. अमेरिका की संघीय व्यवस्था में सीनेट भारत की राज्य सभा की तरह राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है. पर भारत की राज्य सभा में छोटे राज्यों और बड़े राज्यों का उनकी जनसंख्या के अनुपात में ही प्रतिनिधित्व है. जबकि अमेरिका सीनेट में चाहे बड़े राज्य हों या छोटे राज्य हों, सभी को बराबर प्रतिनिधित्व मिला हुआ है. अमेरिका के हर राज्य से 2 सीनेटर वहां की संसद में पहुंचते हैं. मतलब सभी राज्य चाहे वो जनसंख्या और क्षेत्रफल में छोटे हों या बड़े रिप्रजेंटेशन सबका बराबर होगा. मतलब कि किसी भी विधेयक को पास कराने, संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों और देश के हित में लिए सभी बड़े फैसलों में उनकी भूमिका बराबर होती है. 

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रही बात प्रतिनिधि सभा की जो भारत की लोकसभा की तरह होता है. वहां से प्रतिनिधि अपनी जनसंख्या के अनुपात में ही संसद (कांग्रेस) में पहुंचते हैं. भारत में भी लोकसभा में प्रतिनिधि उस राज्य की जनसंख्या के अनुपात में पहुंचे और राज्यसभा में सभी राज्यों को बराबर प्रतिनिधित्व मिले. अगर ऐसी व्यवस्था हो जाए तो दक्षिण के राज्यों, जिन राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण में बेहतरीन काम किया, उन्हें भी देश की सत्ता में उतनी ही महत्ता हासिल होगी जितनी उत्तर भारत के राज्यों को. दक्षिण के राज्यों को इस संबंध में विचार करना चाहिए.

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