नरेंद्र मोदी, भाजपा और NDA को लोकसभा चुनाव में चुनौती देने के लिए बना INDIA गठबंधन अब दरकता हुआ दिख रहा है. ममता बनर्जी ने एलान कर दिया है कि पश्चिम बंगाल में वे अकेले चुनाव लड़ेंगी. बंगाल में सीट शेयरिंग को लेकर जो बातें कांग्रेस की तरफ से हो रही थीं, उससे ममता पहले ही नाराज थीं. लेकिन, अपने बयान में उन्होंने इतना ही कहा कि इंडिया गठबंधन के सदस्य होने के नाते कांग्रेस ने बंगाल से निकलने वाली अपनी यात्रा का कार्यक्रम उनसे साझा नहीं किया. यदि इतना ही समन्वय नहीं है तो बंगाल में वे अकेले ही चुनाव लड़ेंगी.
ममता बनर्जी ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान उस समय किया है, जब कल यानी गुरुवार को राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर असम से बंगाल में एंट्री लेने वाले हैं. 'भारत जोड़ो' तो अपनी जगह रहा, बंगाल में INDIA अलायंस ही टूट गया. कांग्रेस की ओर से जयराम रमेश ने पत्रकारों के सामने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की. उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के बिना INDIA गठबंधन की कल्पना करना मुश्किल है. ऐसे में ममता बनर्जी के कदम से इंडिया गठबंधन पर कुछ असर पड़ना तय है:
1. नीतीश कुमार जैसे बाकी नाराज नेता 'आजाद' हुए
बंगाल ही नहीं, यूपी, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र में भी क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग को लेकर कंफर्टेबल नहीं हैं. इन पार्टियों के आपस में एक दूसरे के खिलाफ बयान भी आते रहे हैं. ऐसे में ममता के ट्रेंड को फॉलो करते हुए यूपी में अखिलेश यादव, पंजाब में केजरीवाल, बिहार में नीतीश कुमार भी अपनी राह ले सकते हैं. नीतीश का दर्द भी काफी कुछ ममता बनर्जी जैसा ही है. दबाव बढ़ने पर महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे भी एनसीपी के साथ मिलकर कांग्रेस को किनारे कर सकते हैं.
2. INDIA गठबंधन बरकरार रहेगा, बस का उसका स्वरूप बदल जाएगा
INDIA गठबंधन के नेताओं के बीच सारी तल्खी सीट शेयरिंग को लेकर ही है. अपने लक्ष्य को लेकर नहीं. ये सभी पार्टियां सिर्फ इसी मकसद से एक मंच पर आई हैं कि उन्हें मोदी को सत्ता से हटाना है. यदि इनके बीच सीट शेयरिंग नहीं भी होती है तो लोकसभा चुनाव के दौरान इनके मुद्दे एक जैसे ही होंगे. यह विपक्ष एक चुनाव पूर्व बनी साझेदारी के तहत जितनी सीटें जीतेगा, उसे INDIA गठबंधन की सीटों के रूप में मान्यता मिलेगी. 2004 में भी भाजपा के खिलाफ लड़े उन दलों ने भी UPA सरकार में भागीदारी की थी, जो चुनाव पूर्व गठबंधन में शामिल नहीं थे.
3. राज्य की सबसे प्रभावशाली पार्टी ही तय करेगी वहां के विपक्ष का स्वरूप
मोदी को चुनौती देने के मामले अब तय है कि INDIA गठबंधन में राज्य की सबसे ताकतवर पार्टी/पार्टियां ही तय करेंगी कि वहां चुनाव सीट शेयरिंग के साथ लड़ा जाएगा या नहीं. और ऐसा होना स्वाभाविक भी है. जिस तरह बंगाल में टीएमसी सीट शेयरिंग के नाम पर कांग्रेस का दबाव बर्दाश्त नहीं कर रही है, वैसे ही मध्यप्रदेश या राजस्थान में कांग्रेस टीएमसी का ऐसा कोई आग्रह स्वीकार कर पाएगी? जवाब है, बिल्कुल नहीं. यदि ये सब इतना स्पष्ट है तो यह मान लिया जाना चाहिए कि इस चुनाव में स्थानीय पार्टियां ही राज्य में विपक्ष का स्वरूप तय करेंगी. चुनाव मोदी और भाजपा के विरोध को लेकर ही लड़ा जाएगा.
4. फिर भी कांग्रेस ही सबसे बड़ी चैलेंजर होगी
INDIA गठबंधन के भीतर जिन राज्यों में कांग्रेस को सीट शेयरिंग के नाम पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है, यदि वहां कांग्रेस चुनाव न भी लड़े तो भी देश में सबसे बड़ा चुनावी कैनवास इसी पार्टी का होगा. उत्तर और दक्षिण भारत में अकेली कांग्रेस ही है, जो भाजपा को चुनौती दे रही है. दक्षिण भारत के कई इलाकों का तो अब भी केंद्र में कांग्रेस ही प्रतिनिधित्व करती है. यही कारण है कि तमिलनाडु में डीएमके जैसी शक्तिशाली पार्टी कांग्रेस के साथ ससम्मान सीट शेयरिंग करती है.
5. साबित हुआ कि INDIA गठबंधन एक राजनीतिक जुगाड़ था, जनता की मांग नहीं
INDIA गठबंधन के नेता इसलिए भी एक दूसरे के खिलाफ बड़े आराम से बयानबाजी कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें किसी तरह के जनाक्रोश का डर नहीं है. आमतौर पर विपक्षी गठबंधन तब एक अनुशासन में काम करता है, जब जनता सत्ता परिवर्तन की मांग करती है. INDIA गठबंधन जनता की मांग पर बना स्वाभाविक गठबंधन बिल्कुल नहीं है, जैसे- 1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ बना जनता आंदोलन था, या 1989 में राजीव गांधी के खिलाफ वीपी सिंह के नेतृत्व में बना राजनीतिक मोर्चा. INDIA गठबंधन को विपक्षी पार्टियों ने कुछ खास मकसद से बनाया है. क्षेत्रीय पार्टियां को अपने अपने प्रभाव वाले क्षेत्र पर पकड़ बनाए रखना है और कांग्रेस को अपना राष्ट्रीय स्वरूप को बचाए रखना है. गठबंधन के इन दोनों ही धड़ों का दुश्मन एक है- मोदी/भाजपा.
INDIA गठबंधन के लिए उम्मीद अब भी बाकी है…
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बंगाल आगमन से एक दिन पहले जिस तरह ममता बनर्जी ने अपनी नाराजगी बयान की है, उसे रणनीतिक भी माना जा सकता है. यदि यही सब चुनाव नामांकन दाखिल करने से पहले हुए होता, तो शायद मायने कुछ और होते. अभी सीट शेयरिंग को लेकर भी इंडिया गठबंधन में काफी गुंजाइश है. माना जा सकता है कि बंगाल में ममता अपने रुख से कांग्रेस को सिर्फ दो सीट लेने पर ही राजी करवा लें. क्योंकि, कांग्रेस को सिर्फ बंगाल ही नहीं, पूरे देश में लड़ाई लड़नी है. यदि कांग्रेस बंगाल में पीछे हटती है, तो भी यह उसकी रणनीतिक जीत ही होगी. भाजपा कई राज्यों में अपने सहयोगियों को बराबरी की सीट देती आई है. बिहार और महाराष्ट्र इसके बड़े उदाहरण हैं. इसलिए ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच हुए ताजा तनाव को INDIA गठबंधन का अंत कहना जल्दबाजी होगी.