उद्धव ठाकरे ने आम चुनाव में अपनी ताकत दिखा दी है, और सत्ता की राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण यही होता है. एग्जिट पोल ने एक बात तो साफ कर दी है, उद्धव ठाकरे को खत्म करने की एकनाथ शिंदे और बीजेपी दोनों की मंशा पूरी नहीं हो पाई है - जैसे कांग्रेस मुक्त भारत नहीं हो सका, उद्धव ठाकरे मुक्त महाराष्ट्र भी नहीं हो सका है.
India Today Axis My India के एग्जिट पोल रिजल्ट में उद्धव ठाकरे और 9 से 11 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है - शिवसेना में एकनाथ शिंदे की बगावत से मुख्यमंत्री की कुर्सी और शिवसेना से हाथ धो बैठे उद्धव ठाकरे लिए महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक हालात में ये वापसी बहुत मायने रखती है.
अपने हिस्से की शिवसेना के बूते उद्धव ठाकरे ने लोकसभा चुनाव 2024 में जैसे उम्दा प्रदर्शन किया है, साबित तो यही हो रहा है कि महाराष्ट्र की राजनीति में मातोश्री की हनक, और ठाकरे परिवार की हैसियत यूं ही नहीं मिटाई जा सकती.
सलूक तो उद्धव ठाकरे जैसा ही शरद पवार के साथ भी हुआ है, लेकिन जिन एकनाथ शिंदे और अजित पवार के बूते बीजेपी महाराष्ट्र की राजनीति पर हावी होना चाहती थी, लोगों ने अपने हिसाब से ऐसी कोशिशें नाकाम कर दी है - भले ही बीजेपी की पूरे देश में धूम मची हो, लेकिन महाराष्ट्र में उसे बिहार की तरह ही काफी नुकसान हो रहा है.
टूट कर भी नहीं बिखरे हैं उद्धव ठाकरे
लोकसभा सीटें, और वोट शेयर दोनो के हिसाब से देखें तो महाराष्ट्र में भी एनडीए, इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ रहा है, लेकिन फासला इतना कम है कि लगता नहीं कि दोनों में कोई खास फर्क बचा है.
एग्जिट पोल के मुताबिक, महाराष्ट्र में एनडीए को 28 से 32 सीटें मिलने का अनुमान है, और वोट शेयर 46 फीसदी हो सकता है. इंडिया ब्लॉक के हिस्से में 16 से 20 सीटें आने की संभावना जताई गई है, जिसका वोट शेयर 43 फीसदी तक हो सकता है.
लेकिन बात अगर बीजेपी की करें तो 2019 में 23 सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी इस बार 22 सीट ही जीत पाने में सफल हो सकती है. एग्जिट पोल के अनुसार, बीजेपी का वोट शेयर 2019 के 27.8 फीसदी से थोड़ा बढ़ कर 29 फीसदी हो गया है, लेकिन सीटों के मामले में नुकसान उठाना पड़ रहा है.
पांच साल में महाराष्ट्र की राजनीति में सारे ही समीकरण बदल चुके हैं. तब बीजेपी-शिवसेना गठबंधन हुआ करता था, जिसका मुकाबला शरद पवार की एनसपी और कांग्रेस से हुआ करता था. 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा के बाद जब बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन टूट गया तो उद्धव ठाकरे ने एनसीपी और कांग्रेस का साथ मिलकर महाविकास आघाड़ी बना लिया, और बीजेपी अकेले रह गई.
मन मसोस कर रह गई बीजेपी घात लगाकर बैठी रही, और जैसे ही मौका मिला एक झटके में एकनाथ शिंदे की मदद से शिवसेना को तोड़ दिया, और बाद में बिलकुल वैसे ही एनसीपी को. जैसे ही अजित पवार ने संकेत दिये, बीजेपी ने आगे बढ़कर हाथ थाम लिया - ज्यादा देर भी नहीं लगी, एकनाथ शिंदे और अजित पवार को चुनाव आयोग ने भी अपनी अपनी पार्टियों का असली नेता घोषित कर दिया. एकनाथ शिंदे शिवसेना और अजित पवार एनसीपी पर काबिज हो गये.
महाराष्ट्र में बेहद कमजोर एमवीए के मुकाबले बेहद मजबूत महायुति का उदय हुआ. बीजेपी के नेतृत्व में महायुति के नेता चुनाव में उतरे, लेकिन जिस हिसाब से उद्धव ठाकरे और शरद पवार को लोगों का साथ मिलता नजर आ रहा है, बागियों को तो नहीं मिला है - और ये हाल तब है जब एकनाथ शिंदे और अजित पवार के पीछे देश की सबसे ताकतवर पार्टी बीजेपी खड़ी है, जबकि उद्धव ठाकरे और शरद पवार अपनी खोई हुई जमीन तलाश रहे हैं.
एग्जिट पोल में उद्धव ठाकरे का प्रदर्शन
सीटों के नंबर को छोड़ दें तो वोट शेयर के हिसाब से उद्धव ठाकरे को बहुत मामूली नुकसान लगता है. 2019 के संसदीय चुनाव में उद्धव ठाकरे का वोट शेयर 23.5 दर्ज किया गया था, जबकि एग्जिट पोल में ये आंकड़ा 20 फीसदी है. महज 3.5 फीसदी का नुकसान, जो चुनाव से पहले हुए नुकसान के मुकाबले कोई मायने नहीं रखता.
एग्जिट पोल के मुताबिक, उद्धव ठाकरे के हिस्से वाली शिवसेना को 9 से 11 लोकसभा की सीटें मिलने जा रही हैं, जबकि बीजेपी के बूते मैदान में उतरे एकनाथ शिंदे के खाते में 8 से 10 सीटें ही आने का अनुमान है.
शरद पवार का मामला भी मिलता जुलता ही लगता है. बीजेपी के साथ चले गये अजित पवार का वोट शेयर 4 फीसदी दर्ज किया गया है, जबकि शरद पवार उनके डबल से भी ज्यादा 9 फीसदी वोट पा रहे हैं - और सीटों के मामले में भी यही हाल है. शरद पवार वाली एनसीपी को 3 से 5 सीटें मिलने की संभावना है, जबकि अजित पवार के खाते में 1-2 सीटें ही आ रही हैं.
उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ खड़ी कांग्रेस की वोटों की हिस्सेदारी 14 फीसदी है, और उसे 3 से 4 सीटें मिल सकती हैं - बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन एग्जिट पोल के नतीजों ने महाविकास आघाड़ी का हौसला तो बढ़ा ही दिया होगा.
एग्जिट पोल ने बढ़ाई उद्धव ठाकरे उम्मीद
एग्जिट पोल के नतीजे उद्धव ठाकरे के साथ शिवसेना में बने हुए नेताओं के लिए भी संदेश है. यानी जो नेता उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ कर एकनाथ शिंदे के साथ निुहीं गये, उन्होंने कोई गलती नहीं की - और उनके धैर्य का इनाम आगे भी मिल सकता है.
कुछ ही महीने बाद महाराष्ट्र में विधानसभा के भी चुनाव होने वाले हैं, और अगर उद्धव ठाकरे इसी जोश के साथ महाराष्ट्र की सड़कों पर उतर जायें तो नतीजे चौंकाने वाले भी हो सकते हैं. अगर वास्तव में उद्धव ठाकरे अपने राजनीतिक दुश्मनों से चुन चुन कर बदला लेना चाहते हैं, तो विधानसभा चुनाव और बीएमसी चुनाव बेहतरीन मौके हैं.
महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी न सही, लेकिन अगर उद्धव ठाकरे महाविकास आघाड़ी को मजबूत विपक्ष के रूप में भी खड़ा कर पाये तो कोई मामूली उपलब्धि नहीं मानी जाएगी. महाराष्ट्र के लोग असली शिवसेना किसे मानते हैं, एग्जिट पोल में संकेत दे दिया है - और फैसला अगले चुनाव के लिए रिजर्व रख लिया है.