यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय आजकल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को टार्गेट करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. मंगलवार को राय साइकिल रैली में मृत सपा कार्यकर्ता रविभूषण यादव के घर उनके परिजनों से मिलने पहुंचे.उन्होंने अखिलेश यादव की संवेदनहीनता को निशाना बनाते हुए कहा कि कोई कार्यकर्ता अगर मर जाता है तो रैली को टाला जा सकता था. यह कोई पहला मौका नहीं है , इससे पहले भी आजम खान की गिरफ्तारी के बाद उनसे जेल में मिलने पहुंचे अजय राय ने अखिलेश को टार्गेट किया था. ऐसे समय में जब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच कलह चरम पर पहुंच चुका है इस तरह की बातें यह स्पष्ट करती हैं कि यह सब अनायास नहीं हो रहा है. इसके पीछे या तो कांग्रेस की या अजय राय की सोची समझी रणनीति काम कर रही है. पर अजय राय की यह रणनीति उन्हें तात्कालिक रूप से थोड़ी मीडिया कवरेज भले दे सकती है पर कांग्रेस के लिए वो निश्चित ही गड्ढे खोद रहे हैं.
अजय राय के हाल फिलहाल में बिगड़े बोल
राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जहरीले बोल चलते रहते हैं. पर यहां पर तो दोनों विपक्ष के नेता हैं और इनसे उम्मीद थी कि ये लोग इंडिया गठबंधन को मजबूत करने के लिए कदम से कदम ताल मिलाकर चलेंगे. पर इस बीच अजय राय ने जिस तरह से अखिलेश के खिलाफ आक्रामक शब्दों का इस्तेमाल किया है वो उनसे कोई उम्मीद नहीं कर रहा था. हालांकि अखिलेश ने भी अजय राय को छोड़ा नहीं और बहुत कुछ कहा है. दरअसल सारा झगड़ा मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और सपा के बीच टिकट शेयरिंग को लेकर हुआ. कांग्रेस ने जब एमपी में समाजवादी पार्टी को कोई सीट देने से इनकार कर दिया अखिलेश यादव ने कहा था कि अगर मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस उन्हें सीटें देने को तैयार नहीं तो यूपी में सपा भी बड़े भाई की भूमिका नहीं निभाएगी. मतलब कि सपा भी यूपी में कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी.
इस बीच अजय राय ने भी कह दिया कि उनकी पार्टी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है और मध्य प्रदेश में सपा की कोई हैसियत नहीं है. अजय राय के इस बयान के बाद अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा कि प्रदेश अध्यक्ष की कोई हैसियत नहीं होती.उनकी हैसियत क्या है? इंडिया गठबंधन के बारे में वे कितना जानते हैं, क्या बैठकों में वे थे. अखिलेश ने कहा कि कांग्रेस के ये नेता बीजेपी से मिले हुए हैं. मैं कांग्रेस से कहूंगा कि अपने इन चिरकुट नेताओं से हमारे लिए बयान न दिलवाए. अखिलेश ने कांग्रेस को धोखेबाज बताते हुए कहा कि अगर उन्हें पता होता इंडिया गठबंधन विधानसभा स्तर पर नहीं है तो वह कांग्रेस से बात ही नहीं करते.
इस बीच अजय राय अखिलेश के पिता तक पहुंच गए और कहा कि जो अपने बाप का नहीं हुआ वो जनता का क्या होगा. इसके बाद अजय राय हर वो काम करने लगे जो समाजवादी पार्टी को चुभे.
क्या कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के समानांतर खड़ा करने की कोशिश है इस झगड़े की जड़
कर्नाटक और हिमाचल में मिली विजय से कांग्रेस अति उत्साह में है. दूसरे मध्य प्रदेश और राजस्थान में आए कुछ सर्वे ने भी कांग्रेस का मॉरल बूस्ट अप किया है. कांग्रेस यह भी जानती है कि बिना यूपी फतह के राहुल गांधी को पीएम बनाने का सपना साकार नहीं होने वाला है.कांग्रेस जब तक यूपी विजय करती रही केंद्र पर उसका ही अधिकार रहा. यूपी के हाथ से निकलने के बाद कांग्रेस को गठबंधन सरकार के भरोसे जरूर दो बार केंद्र में सत्ता संभालने का मौका मिला. यही कारण है कि कांग्रेस यूपी में कुछ ज्यादा ही एक्टिव हो गई है. कांग्रेस को यह पता है कि समाजवादी पार्टी के मजबूत रहते उसके पुराने दिन नहीं लौट सकते .
शायद यही कारण है कांग्रेस सोची समझी रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी को कमजोर करने की हर कोशिश कर रही है. कांग्रेस का सबसे पहले वॉर समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट के आधार को खत्म करना है. इसकी शुरूआत पिछले दिनों वेस्ट यूपी के 3 कद्दावर मुस्लिम नेताओं को पार्टी में शामिल कराना रहा.इसी योजना के तहत अजय राय आजम खान से जेल में मिलने भी पहुंचे.जाति सर्वे की बात, महिला आरक्षण में ओबीसी के लिए भी आरक्षण आदि पर कांग्रेस का जोर अखिलेश को यूपी में डाउन करने के लिए ही हो रहा है.
यूपी में समाजवादी पार्टी को चैलेंज करना आसान नहीं
उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में कांग्रेस पार्टी का वोट शेयर 2.33 फ़ीसद रहा तो राज्य के कुल 403 विधायकों में उसके केवल दो ही हैं. यही हाल लोकसभा में भी है. 80 सांसदों में कांग्रेस की हिस्सेदारी भी केवल एक सांसद पर सिमट गई है. पर कांग्रेस की मुस्लिम , दलित और पिछड़े वोटों के लिए अतिसक्रियता ने अखिलेश यादव को भी सजग कर दिया है. अखिलेश यादव ने समाजवादी पीडीए यात्रा निकाली है.अखिलेश को बहुत दिनों से साइकिल की सवारी करते नहीं देखा गया था. हालांकि अखिलेश यादवन ने इसे NDA के खिलाफ PDA का नारा बताते हैं. पर पिछड़े, दलित और मुस्लिम वोटों की लड़ाई उसकी कांग्रेस के साथ ही है. यह दिखाता है कि अखिलेश अपनी सियासी ज़मीन का एक इंच भी कांग्रेस को देने वाले नहीं है.
राय बरेली और अमेठी से भी पड़ेगा हाथ धोना
समाजवादी पार्टी से अजय राय का पंगा कांग्रेस के लिए दु:स्वप्न की तरह हो सकता है.कांग्रेस के लिए रायबरेली और अमेठी की सीट बहुत महत्वपूर्ण रही है. रायबरेली से सोनिया गांधी सांसद बनती रही हैं. उनके पहले इस सीट से इंदिरा गांधी चुनाव लड़ती रही हैं. अमेठी से राहुल गांधी चुनाव लड़ते रहे हैं. हालांकि 2019 के चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.कांग्रेस व समाजवादी पार्टी में भले ही एक साथ चुनाव न लड़ रहे हों यूपी में पर इन दोनों सीटों से समाजवादी पार्टी अपने प्रत्याशी नहीं उतारती रही है.मुलायम परिवार व गांधी परिवार के खिलाफ उम्मीदवार न उतारने का अघोषित समझौता लगभग दो दशक से चला आ रहा है.पीएम बनने के मुद्दे पर सोनिया और मुलायम के बीच तल्खी बढ़ने पर जरूर 2004 में रायबरेली से सपा लड़ी थी. सोनिया गांधी चुनाव जीतीं और सपा दूसरे नंबर पर रही थी और उसे 1.28 लाख वोट मिले थे. 2006 में हुए उपचुनाव में भी सपा ने रायबरेली से उम्मीदवार उतारा था. अमेठी लोकसभा क्षेत्र में सपा के दो और रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में 4 विधायक हैं. इसलिए, लोकसभा में उसकी गैर-मौजूदगी कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहती है. अब जिस तरह अजय राय समाजवादी पार्टी पर हमले कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि अब अखिलेश यहां से प्रत्याशी खड़े करेंगे.
अजय राय की राजनीतिक हैसियत
सांसदों के लिहाज़ से देश के इस सबसे बड़े राज्य में कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले 'दबंग' छवि वाले अजय राय को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है.हालांकि ये सही है कि अजय राय की जाति या उनके व्यक्तित्व का कोई भी पहलू ऐसा नहीं है जो उन्हें इस काबिल बनाता हो जिसके चलते उनपर ये विश्वास किया जा सके कि वो कांग्रेस को यूपी में फिर से खड़ा करने में सक्षम साबित होंगे. पर इसमें कोई 2 राय नहीं है कि गाजीपुर के इस राय ने जब से कांग्रेस अध्यक्ष की गद्दी संभाली है यूपी कांग्रेस को पर्याप्त मीडिया कवरेज मिल रही है. हर दिन अजय राय किसी न किसी बहाने सुर्खियों में छाए रहते हैं. कांग्रेस के पक्ष में बज क्रिएट करने में उन्होंने सफलता पाई है.अजय राय के अध्यक्ष बनने के बाद हर जिले और हर विधानसभा में ऐसे लोग दिखने लगे हैं जो कांग्रेस का चुनाव लड़ने की रणभेरी बजाने लगे हैं.
अजय राय ग़ाज़ीपुर के भूमिहार परिवार से हैं. पूर्वांचल के बनारस, मऊ, ग़ाज़ीपुर और बलिया की राजनीति पर भूमिहार परिवारों का प्रभाव रहा है.भूमिहार यहां इतनी संख्या में नहीं हैं कि जीत या हार का कारण बनें पर डॉमिनेंट होने के चलते उनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. अजय राय ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और भारतीय जनता युवा मोर्चा से की.वो 5 बार विधायक रहे और एक बार राज्य मंत्री भी रहे. 2014 में कांग्रेस के टिकट पर नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ लोकसभा चुनाव लड़ा. केवल 75,000 वोट मिले और तीसरे स्थान पर रहे . पर 2019 में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ वाराणसी सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी बने और 1 लाख 52 हज़ार वोट हासिल करने में सफल रहे .
अजय राय रासुका में जेल जा चुके हैं. उनपर उत्तर प्रदेश के विभिन्न थानों में करीब 16 मुक़दमे दर्ज हैं. इनमें गैंगस्टर एक्ट के तहत एक मामला तो हत्या के प्रयास जैसी गंभीर धाराओं में भी दो मुक़दमे दर्ज हैं. उन पर बनारस के पूर्व डिप्टी मेयर अनिल सिंह पर एके-47 से जानलेवा हमला करने का भी आरोप था हालांकि बाद में वे बरी हो गए. अजय राय अभी तक किसी भी मामले में दोषी नहीं पाए गए हैं.