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यूपीए के दौर में क्‍या चुनाव आयोग के भीतर घुस गया था अमेरिकी डीप स्टेट?

भारत के लोगों को अपने वोटिंग राइट्स के बारे में पता है. भारतीयों ने समय समय पर अलोकप्रिय फैसले लेने वाली सरकारों को उखाड़ फेंका है. कितना हास्यास्पद है यह सुनना कि एक ऐसा देश जिसका वोटिंग पैटर्न अमेरिका से किसी भी मामले में कम नहीं है वहां के लोगों में वोटिंग सुधारने के लिए कथित तौर पर अमेरिका से पैसा लिया गया.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी IFES के पेट्रीसिया हुतार पुरस्कार से सम्मानित हुए थे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी IFES के पेट्रीसिया हुतार पुरस्कार से सम्मानित हुए थे.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर USAID की ओर से दिए गए 2.1 करोड़ डॉलर (करीब 180 करोड़ रु) पर सवाल उठाए हैं. ट्रंप ने कहा कि भारत दुनिया के सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाले देशों में से एक है. इसलिए इनकी मदद करने की क्या जरूरत है? भारत को मदद की जरूरत तो है पर कम से कम चुनाव में वोट जरूर देना है, या किसे वोट देना है, इसके लिए तो हरगिज नहीं. भारतीयों को अपने वोटिंग राइट्स के बारे में पता है. भारतीयों ने समय समय पर अलोकप्रिय फैसले लेने वाली सरकारों को उखाड़ फेंका है. कितना हास्यास्पद है कि एक ऐसा देश जिसका वोटिंग पैटर्न इतना शानदार हो,  वहां के लोगों में वोटिंग सुधारने के नाम पर अमेरिका से कथित रूप से करोड़ों रुपए की 'मदद' की जरूरत तो कतई नहीं. बीजेपी आरोप लगा रही है कि ये कथित मदद भारत में वोटिंग टर्नआउट सुधारने के लिए नहीं, बल्कि भारत में अपनी मनमर्जी वाली सरकार चुनने में खर्च हो रहा था. अमेरिका डीप स्टेट इस तरह का काम कर रहा था ताकि डेमोक्रेट्स को अपने समर्थन वाली सरकार भारत में भी बन जाए. पर इस मदद के बाद भी भारतीय वोटर्स ने अपनी ताकत का परिचय दिया और अपनी पसंद की सरकार चुना. 

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अमेरिका में पिछली बाइडेन सरकार को लेकर हर रोज पर्दाफाश हो रहा है. अमेरिका की ओर से दी जा रही USAID को लेकर चौंकाने वाली बातें सामने आई है. अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ गवर्मेंट एफिशियेंसी (DOGE), जिसके प्रमुख इलॉन मस्‍क हैं, ने खुलासा किया है कि USAID ने भारत में Voter Turnout सुधारने के नाम पर 21 मिलियन डॉलर दिये थे. यह जिस समय की बात है, उस समय यूपीए के शासनकाल में मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त एसवाय कुरैशी थे. DOGE के खुलासे पर उन्‍होंने पैसे के लेन-देन की बात से इनकार किया है. लेकिन भारतीय जनता पार्टी का आरोप है कि यूपीए सरकार पर डीप स्टेट कितना प्रभाव था इसकी जांच होनी चाहिए. क्योंकि़ जो तथ्य सामने आ रहे हैं उससे तो यही लग रहा है कि यूपीए सरकार के समय चुनाव आयोग पूरी तरह अमेरिकी व्यवसायी और डीप स्टेट को फंडिंग करने वाले जॉर्ज सौरोस के चंगुल में था. 

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1-भारत सरकार को जांच कराना चाहिए कि 21 मिलियन डॉलर किसको मिले?

दरअसल ट्रंप के 21 मिलियन डॉलर की मदद पर सवाल उठाने के पहले एलन मस्क की अगुवाई वाले अमेरिकी विभाग डॉज ने पिछले हफ्ते कुछ नाम उजागर किए थे जिन्हें उनकी नजर में बेवजह मदद दी जा रही थी. इनमें से एक 'भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर' भी शामिल था. जाहिर है कि इस खुलासे के बाद बीजेपी और कांग्रेस के बीच आरोप प्रत्यारोप शुरू होने ही थे.बीजेपी इस मामले की जांच की मांग कर रही है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी पर बीजेपी आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने बहुत गंभीर आरोप लगाया था. कुरैशी ने उन आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि चुनाव आयोग का USAID के साथ एक समझौता था, लेकिन इसमें कोई वित्तीय सहायता शामिल नहीं थी. पर अब जब ट्रंप ने खुद मस्क की रिपोर्ट पर मुहर लगा दी है तो जाहिर है कि कुरैशी को अब और सफाई देनी होगी.

अमित मालवीय ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा था कि 'एक बार फिर भारत की चुनाव प्रक्रिया पर जॉर्ज सोरोस के मंडराते साए की पुष्टि हो गई है, जो कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के जाने-माने सहयोगी हैं.

2012 में एसवाई क़ुरैशी के नेतृत्व में, चुनाव आयोग ने द इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES) के साथ एक MOU पर हस्ताक्षर किए - जो जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा एक संगठन है, जो मुख्य रूप से USAID द्वारा वित्त पोषित है.

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विडंबना यह है कि जो लोग भारत के चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठा रहे हैं, जहां पहले प्रधानमंत्री अकेले निर्णय लेते थे और उन्हें भारत के पूरे चुनाव आयोग को विदेशी ऑपरेटरों को सौंपने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी.'

अब सवाल यह उठता है कि जांच होनी क्यों जरूरी है? दुनिया भर के देशों में चुनी जानी वाली सरकारों पर आरोप लगता है कि किसी दूसरे देश ने इस सरकार को चुनाव में अपने फायदे के लिए चुनाव जितवाने में मदद की है. यहां तक कि दुनिया के सबसे ताकतवर और संपन्न देश अमेरिका में भी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लगता है. अमेरिका में इसकी जांच भी चल रही है कि रूस ने किस तरह 2021 के चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की थी. कनाडा में ट्रडो सरकार को बनवाने में चीनी सरकार ने हेल्प की थी. इसकी भी जांच कनाडा में चल रही है. भारत में भी इसकी जांच होनी चाहिए कि यूएएड का पैसा किस पार्टी के लिए खर्च हो रहा था. भारत में किन लोगों और किन संस्थाओं को यह रकम मिल रही थी इसका पता लगाने के लिए भारत को अमेरिकी सरकार से भी बात करनी चाहिए. यह सीधे सीध मदद के नाम पर दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप भी है.  

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2-पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त कुरैशी की सफाई कितनी मजबूत?

यूपीए सरकार के समय मुख्‍य चुनाव आयुक्त रहे कुरैशी कहते हैं कि 2012 में मेरे चुनाव आयुक्त रहते अमेरिकी एजेंसी की तरफ से भारत में मतदाता भागीदारी बढ़ाने के लिए करोड़ों डॉलर की फंडिंग वाली मीडिया रिपोर्ट में रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है. कुरैशी ने बताया कि जब वे 2012 में मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तब IFES के साथ एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (MoU) साइन हुआ था. चुनाव आयोग ने ऐसा ही समझौता कई अन्य एजेंसियों और इलेक्शन मैनेजमेंट बॉडीज के साथ किया था.

यह समझौता इसलिए किया था गया था ताकि चुनाव आयोग के ट्रेनिंग और रिसोर्स सेंटर यानी इंडिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन मैनेजमेंट (IIIDEM) में इच्छुक देशों को ट्रेनिंग दी जा सके. कुरैशी का कहना है कि MoU में साफ तौर से कहा गया था कि किसी भी पक्ष पर किसी भी तरह की वित्तीय और कानूनी जिम्मेदारी नहीं होगा. उनका कहना है कि MoU को लेकर किसी भी तरह धनराशि का जिक्र पूरी तरह से झूठ है. पर कुरैशी शायद यह भूल रहे हैं कि वित्तीय और कानूनी जिम्मेदारी न होने का मतलब है कि कोई भी पक्ष पैसे खर्च करने के लिए बाध्य नहीं है. इसका मतलब यह नहीं है कि कोई मदद दे रहा है तो लिया नहीं जाएगा. एक ट्वीटर हैंडल द हॉक आई दावा करता है कि क़ुरैशी को 2014 में IFES के पेट्रीसिया हुतार पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसका मतलब बहुत कुछ निकाला जा सकता है.

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भाजपा नेता नलिन कोहली कहते हैं कि कांग्रेस ने देश की चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसे संगठनों के साथ काम किया था.उनका मानना है कि ये चुनाव प्रक्रिया में बदलाव या हस्तक्षेप हो सकता है. निश्चित रूप से यदि किसी ने इसके तहत धन प्राप्त किया है तो उसे स्पष्ट किया जाना चाहिए. यदि ऐसा कुछ रोका जा रहा है तो यह लोकतंत्र की स्वतंत्रता के व्यापक हित में है.'

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और भाजपा सांसद महेश जेठमलानी ने कहते हैं कि देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने की शक्ति रखने वाली भारतीय एजेंसियों को भारत में यूएसएआईडी (USAID's ) के खातों को जब्त करना चाहिए.

जेठमलानी की पोस्ट में लिखा गया, 'भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने की शक्ति रखने वाली हमारी एजेंसियों पर यह दायित्व है कि वे भारत में यूएसएआईडी के खातों को जब्त करें और वोटर टर्नआउट प्रोजेक्‍ट के लिए निर्धारित 21 मिलियन डॉलर के लेन-देन का पता लगाएं.

साथ ही डेमोक्रेटिक डीप स्टेट के हिमायतियों का पता लगाएं. इसके बाद उन पर भारत को नष्ट करने के लिए कानून के तहत पूरी ताकत से कार्रवाई की जानी चाहिए जिसे आम बोलचाल में देशद्रोह कहा जाता है.' 

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3-एनडीए सरकार पर भी सवाल उठेंगे

सवाल यह है कि क्या यूपीए सरकार के जाने के बाद भी अमेरिका से इस तरह की फंडिंग आ रही थी. अगर इस तरह की रकम भारत के चुनावों में दखल देने के लिए अमेरिका खर्च कर रहा था तो पिछले 11 साल से भारत सरकार क्या कर रही थी. अमेरिका में भी ट्रंप सरकार 2021 तक काम कर रही थी. यानि कि ट्रंप के पिछले कार्यकाल में इस तरह की मदद आ रही थी. अभी तक यह कन्फर्म नहीं हुआ है कि यूएस एड का यह फंड कब से मिल रहा है? सरकार इसकी व्यापक जांच करवा कर खुद को पाक साफ घोषित कर सकती है.

4-बांग्लादेश में शेख हसीना को हटाने में काम आया USAID का 29 मिलियन डॉलर 

भारत को अमेरिकी एड को सहायता की जगह दखल करने के नजरिए से देखने की जरूरत है. यह मुद्दा पार्टी हित से ऊपर देश हित का है. अगर कांग्रेस सरकार को अमेरिकी डीप स्टेट ने इस तरह की आर्थिक मदद की है तो वह आगे भी इस तरह की हरकतें करेंगे. डीप स्टेट अमेरिका के इको सिस्टम में इनबिल्ट है.वहां सरकारें आती जाती रहतीं हैं. सिस्टम काम करता रहता है. ट्रंप और एलॉन मस्क थोड़ी बहुत कोशिश करेंगे जिससे अमेरिका कुछ रुपये बचा ले. पर इससे अधिक कुछ नहीं होने वाला है.

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अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने दावा किया कि यूएसएआईडी मानव इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला था. एक्स पर एक पोस्ट में सान्याल ने लिखा, 'यह जानना अच्छा लगेगा कि भारत में मतदान प्रतिशत सुधारने के लिए खर्च किए गए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर और बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य को मजबूत करने के लिए 29 मिलियन अमेरिकी डॉलर किसने प्राप्त किए. यूएसएआईडी मानव इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला है.' बांग्लादेश संकट अमेरिकी डीप स्टेट की ही देन है. ट्रंप इस संबंध में खुलकर नहीं बोलते हैं.वो पीएम मोदी के साथ पीसी के समय बांग्लादेश के मुद्दे पर कोई ऐसी ठोस बात नहीं की जिससे लगे कि वह तुरंत कुछ एक्शन लेने वाले हैं.
 

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