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उत्तराखंड के टनल में फंसे 40 मजदूरों का दुर्भाग्य, क्या बिहारी मजदूरों की जान की कीमत सस्ती है?

उत्तराखंड में एक टनल के लिए काम कर रहे 40 मजदूरों की जान खतरे में है. मजदूरों के परिवार वालों का कहना है कि उनके रेस्क्यू में लापरवाही हो रही है. सरकार सुस्त ढंग से काम कर रही है. क्या अगर ये मजदूर गुजरात-तमिलनाडु-केरल या पंजाब के होते तो भी ऐसी सुस्ती नजर आती?

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उत्तराखंड के निर्माणाधीन टनल में फंसे हैं 40 मजदूर
उत्तराखंड के निर्माणाधीन टनल में फंसे हैं 40 मजदूर

उत्तरकाशी-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिलक्यारा से डंडालगाँव तक निर्माणाधीन टनल में रविवार सुबह क़रीब पांच बजे भूस्खलन हो गया था. टनल के अंदर फंसे 40 मज़दूरों को बचाने का संघर्ष 96 घंटे बीतने के बाद भी जारी है.मौके पर मौजदू मजदूरों के परिवार वालों का कहना है कि घोर लापरवाही हो रही है. पहले मशीन आने में देरी हुई , दूसरी आधुनिक मशीन मंगाने में भी देरी की गई है. परिजनों की हैसियत ऐसी नहीं है कि उनकी आवाज हमारी सिस्टम के सामने गूंज सके. पर यह साफ दिख रहा है कि 40 मजदूरों के टनल में फंसे होने के चार दिन और रात बीत जाने के बावजूद प्रशासन अभी खाली हाथ है. सवाल यह उठता है कि झारखंड- बिहार-बंगाल और उड़ीसा की जगह दूसरे अमीर स्टेट के लोग फंसे होते तो क्या ऐसी सुस्ती दिखाई देती. जिस देश में प्रिंस नाम के एक बच्चे को बचाने के लिए पूरी मशीनरी लग गई थी उसी देश में 40 मजदूरों को लेकर कोई हो हल्ला क्यों नहीं दिख रहा है.

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ऑगर मशीनों का अब है इंतजार

हालांकि टनल जहां पर हादसा हुआ है वहां मौक़े पर राहत व बचाव के लिये एसडीआरएफ, एनडीआरफ, आईटीबीपी सहित फायर सर्विस की कई टीमें मौजूद हैं. विशेषज्ञों के दिशा निर्देशों के अनुसार कई तरह से उन्हें बचाने की कोशिश हो रही है. सबसे पहले फंसे हुए मज़दूरों तक पहुंचने के लिए मलबा हटाकर सैटरिंग प्लेट लगाए गए पर कामयाबी नहीं मिली.  मजदूरों को बाहर निकालने के लिए सही रास्ता कैसे बनाया जाए बचाव टीमों को अभी भी समझ में नहीं आ रहा है. रेस्क्यू के लिए और मशीनें बाहर से मंगाई गईं फिर भी बचाव अभियान सफल नहीं हो सका है. अब कहा जा रहा है कि दिल्ली से ऑगर मशीनें आ रही हैं जिससे मजदूरों को बचा लिया जाएगा. सवाल यह है कि ऑगर मशीनों को लाने में इतनी देर क्यों हुई . खबर लिखे जाने तक टनल में फसे श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए ऑगर मशीन के जरिये ह्यूम पाइप बिछाने का कार्य शुरू होने वाला था. कहा जा रहा है कि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो देर शाम तक टनल में फंसे सभी मजदूरों को बाहर  निकल लिया जाएगा. 

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किस स्टेट के कितने लोग फंसे हैं

 12 नवम्बर की सुबह क़रीब पांच बजे हुए हादसे में करीब 40 लोग फंसने की खबर आई थी.सुरंग का निर्माण करा रही एनएचआईडीसीएल के अनुसार टनल में फंसे हुए व्यक्तियों में दो उत्तराखंड, एक हिमाचल प्रदेश, चार बिहार, तीन पश्चिम बंगाल, आठ उत्तर प्रदेश, पांच उड़ीसा, दो असम और 15 झारखण्ड के हैं. स्थानीय लोगों की संख्या ज्यादा नहीं होने के चलते ही शायद लोगों के आक्रोशित होने का डर नहीं है और सरकार कुछ ज्यादा ही आराम से काम कर रही है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार कोटद्वार के रहने वाले आकाश सुरंग में फंसे अपने पिता के लिए सिलक्यारा टनल के बाहर पहुंथे थे. प्रशासन ने उन्हें टनल के अंदर जाने और मलबे के दूसरी तरफ़ फंसे अपने पिता से बात करने की अनुमति दी थी.आकाश ने बताया कि "मैं टनल में गया था और मेरी बात मेरे पिता से ऑक्सीजन पाइप के ज़रिए हुई.

 लेकिन आकाश के चाचा प्रेम सिंह ने बताया कि "हम पिछली रात (सोमवार) को यहां पहुंचे हैं. मुझे यहां हो रहा काम संतोषजनक नहीं लग रहा है. यहां बचाव कार्य सुस्त तरीक़े से चल रहा है." उन्होंने सरकारी की लापरवाही का एक नमूना देते हुए बताया कि "यहां जब पिछली रात पहुंचे थे तो हमसे कहा गया था कि रेस्क्यू के लिए मशीन रात को ही 11 बजे आ जाएंगी. जब हमने सुबह पता किया तो मशीन सुबह पांच बजे आयी. 

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बिहार-झारखंड के मजदूरों का साथ नहीं देती उनकी सरकारें

क्या हम सोच सकते हैं कि अगर गुजरात -पंजाब या महाराष्ट्र के लोग फंसे होते तो क्या इतनी सुस्त कार्यवाही चल रही होती? क्या इन स्टेट के लोगों के साथ उनकी सरकारें इसी तरह रिएक्ट करतीं जिस तरह बिहार और झारखंड की सरकारें कर रही हैं. याद होगा उत्तराखंड की त्रासदी के समय गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी खुद देहरादून पहुंच गए थे. कश्मीर में जब गुजराती पर्यटक फंस गए थे गुलामनबी आजाद से किस तरह मदद मांगी थी. जिसकी चर्चा खुद गुलाम नबी आजाद और नरेंद्र मोदी कर चुके हैं. दुनिया भर में कहीं भी पंजाबियों के साथ अत्याचार होता है पंजाब सरकार एक्टिव हो जाती है. महाराष्ट्र सरकार, केरला सरकार आदि भी अपने स्टेट के लोगों के परेशानी में पड़ने पर तुरंत एक्टिव हो जाती रहीं हैं. आखिर इस तरह का एक्शन बिहार, झारखंड या बंगाल की सरकारों द्वारा क्यों नहीं होता है?

यही कारण है कि यूपी-बिहार-झारखंड या उड़ीसा के मजदूरों के साथ कुछ अनहोनी होती है तो केंद्र के भी कान खड़े नहीं होते. कश्मीर में हिंदी भाषी मजदूरों ( अधिकतर यूपी और बिहार के) की आए दिन हत्या हो जाती है. कहीं कोई चर्चा नहीं होती है. 2 कश्मीरी पंडित मार दिए जाते हैं पूरी सरकार हिल जाती है.

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माइग्रेटेड लेबर का भारत में डाटा

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने वाले मजदूरों की संख्या 45.36 करोड़ है. जो देश की कुल जनसंख्या का 37% है. इसी गणना के मुताबिक  भारत में काम करने वालों संख्या 48.2 करोड़ था. देश में कुल काम करने वालों की संख्या 2016 तक अनुमान के मुताबिक 50 करोड़ से भी ज्यादा होने का अनुमान है. 

2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार देश के भीतर मजदूरों की पहली पसंद गुरुग्राम, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों थे. इसके अलावा यूपी के गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश),  इंदौर और भोपाल (मध्य प्रदेश), बेंगलुरु (कर्नाटक); और तिरुवल्लूर, चेन्नई, कांचीपुरम, इरोड और कोयंबटूर (तमिलनाडु) जैसे जिलों में माइग्रेटेड लेबर ज्यादा थी मजदूर आते हैं. 

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