उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किसानों के ताजा आंदोलन को काफी गंभीरता से लिया है. वैसे भी किसानों का मुद्दा केंद्र सरकार के लिए सबसे बड़ी मुसीबतों में से एक है - और खास बात ये है कि जगदीप धनखड़ ने ये चिंता केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में जताई है.
मुंबई में केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के शताब्दी समारोह में जगदीप धनखड़ ने कहा, आत्म निरीक्षण की जरूरत है, क्योंकि किसान संकट और पीड़ा में हैं... अगर ऐसे संस्थान सक्रिय होते... और जरूरतें पूरी करते तो ये स्थिति नहीं आती... ऐसे संस्थान देश के हर कोने में स्थित हैं, लेकिन किसानों की स्थिति अब भी वैसी ही है.
और ये चिंता जताने के साथ ही जगदीप धनखड़ ने शिवराज सिंह चौहान को कठघरे में खड़ा कर दिया. जगदीप धनखड़ ने शिवराज सिंह चौहान से मौके पर ही पूछ लिया कि कि किसानों से वादा किया तो कितना निभाया गया है?
किसानों के साल भर से ज्यादा चले आंदोलन के बाद चुनावों को देखते हुए केंद्र की बीजेपी सरकार ने तीनों कृषि कानून वापस ले लिये थे. तब तो किसानों ने आंदोलन वापस ले लिया था, लेकिन उसके बाद मांगे न मानी जाने पर किसान आंदोलन करते रहे हैं - और इस बार भी दिल्ली की सीमा पर पहुंच गये हैं.
सवाल है कि ऐसे माहौल में शिवराज सिंह चौहान को अचानक निशाना क्यों बनाया जा रहा है? किसान आंदोलन के दौरान फेल तो नरेंद्र सिंह तोमर भी हुए थे, तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को माफी वाले अंदाज में 'तपस्या में कमी' की बात करनी पड़ी थी.
सिर्फ शिवराज सिंह चौहान से ही सवाल क्यों?
केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान के शताब्दी समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान दोनों मंच पर मौजूद थे. किसानों की चिंता जताते हुए और शिवराज सिंह चौहान की तरफ इशारा करते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा, 'कृषि मंत्री जी... आपका एक-एक पल भारी है... मेरा आपसे आग्रह है और भारत के संविधान के तहत दूसरे पद पर विराजमान व्यक्ति आपसे अनुरोध कर रहा है... कृपया मुझे बताइए कि किसान से क्या वादा किया गया था? और जो वादा किया गया था, वो क्यों नहीं निभाया गया?'
उपराष्ट्रपति का सवाल था, वादा निभाने के लिए हम क्या कर रहे हैं? बीते साल भी आंदोलन था, इस साल भी आंदोलन है... कालचक्र घूम रहा है... हम कुछ नहीं कर रहे हैं.
ये बड़ा ही अजीब वाकया था. शिवराज सिंह चौहान भी इस तरह सरेआम कठघरे में खड़ा कर दिये जाने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं होंगे - और यही वजह रही कि शिवराज सिंह ने सवालों का जवाब नहीं दिया, सिर्फ ये बोल कर टाल दिया कि भारत अपने किसानों के बिना समृद्ध देश नहीं बन सकता.
स्वाभाविक तौर पर एक सवाल यहां ये भी उठता है कि क्या किसानों से जुड़ी केंद्र सरकार की नीतियों के लिए क्या सिर्फ शिवराज सिंह चौहान ही जिम्मेदार ठहराये जा सकते हैं?
जिस वक्त मुंबई में ये सब चल रहा था, उसी वक्त राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा में संयुक्त किसान मोर्चा की कॉल पर किसान धरना दे रहे थे. और, नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल से पुलिस ने 160 से ज्यादा किसानों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, और प्रेरणा स्थल भी खाली करा दिया गया.
क्या शिवराज सिंह चौहान को निशाना बनाया जा रहा है?
ये तो साफ है कि शिवराज सिंह चौहान को टार्गेट किया जाने लगा है. शिवराज सिंह चौहान को भोपाल से दिल्ली शिफ्ट किये जाने का मकसद भी राजनीति ही था, और नये सिरे से उनको निशाना बनाये जाने में भी वैसी ही राजनीति समझ में आ रही है.
1. किसानों का मुद्दा ऐसा है जो शुरू से ही बीजेपी की कमजोर कड़ी साबित हो रहा है. भले ही केंद्र सरकार ने तीनो कृषि कानून वापस ले लिया हो, लेकिन किसान अब भी सरकारी रवैये से खुश नहीं हैं. यूपी चुनावों को देखते हुए सरकार ने कानून वापस जरूर ले लिये थे, लेकिन उसके बाद भी किसानों का आंदोलन थमा नहीं - और ऐसे माहौल में शिवराज सिंह चौहान को अचानक कठघरे में खड़ा कर दिया जाना भी काफी अजीब लगता है.
2. शिवराज सिंह चौहान तो किसानों को लेकर 2014 से चली आ रही केंद्र सरकार की नीतियों को ही आगे बढ़ा रहे हैं. देखा जाये तो किसान आंदोलन को ठीक से हैंडल न कर पाने में फेल तो तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हुए थे. किसानों के साथ कई दौर की बातचीत के बावजूद नरेंद्र सिंह तोमर कोई समाधान नहीं निकाल पाये, और यूपी-पंजाब चुनाव नजदीक आ जाने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'तपस्या में कमी' की बात करते हुए तीनो कृषि कानून वापस लेने पड़े थे.
3. ये बात भी किसी से छुपी नहीं है कि शिवराज सिंह चौहान को मौजूदा बीजेपी नेतृत्व के विरोधी खेमे का नेता माना जाता रहा है. 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद उनको मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया गया, और मध्य प्रदेश में उनका प्रभाव खत्म करने के लिए दिल्ली शिफ्ट किया गया - लेकिन, अब भी उनको निशाना बनाया जा रहा है.
4. किसानों के साथ साथ जाटों का सपोर्ट हासिल करना भी बीजेपी के लिए लोहे के चने चबाने जैसा होता आ रहा है. हरियाणा चुनाव में ये शिद्दत से महसूस भी किया गया. पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक भी जब तब बीजेपी नेतृत्व के लिए मुसीबतें पैदा करते रहे हैं. सत्यपाल मलिक को काउंटर करने के लिए बीजेपी को वैसे भी एक मजबूत और उसी कैटेगरी के जाट लीडर जरूरत तो अर्से से रही ही है - क्या जगदीप धनखड़ ने उसी पोजीशन के लिए ये बात आगे बढ़ाई है?
5. सवाल ये भी है कि क्या बीजेपी शिवराज सिंह चौहान पर ठीकरा फोड़ कर MSP और किसानों से जुड़ी चुनौतियों से पल्ला झाड़ने के लिए किसी नई रणनीति पर काम कर रही है? ये सब क्या बीच का रास्ता तलाशने की बीजेपी की कोई खास कोशिश हो सकती है?