एक समय था जब आम आदमी पार्टी के साथ देश भर के नामी गिरामी लोग जुड़ते थे. जो अपनी फील्ड के जहीन और ईमानदार लोग होते थे. पार्टी में शामिल होने वाले लोगों में बड़े वकील, पत्रकार, टेक्नोक्रेट, ब्यूरोक्रेट, कलाकार आदि रहे हैं. जिनकी छवि इतनी साफ सुथरी होती थी कि ये अपनी फील्ड के लोगों के लिए आईडियल होते थे. पर अब आए दिन पार्टी में ऐसे लोग आ रहे हैं जो किसी तरह एक सीट जिता सकने की क्षमता रखते हैं. अचानक क्या कारण हो गया कि पार्टी को ऐसे मौकाटेरियन (अवध ओझा ने लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में खुद को मौकाटेरियन कहा था) लोगों को पार्टी में लाने की जरूरत महसूस होने लगी है. क्या पार्टी आगामी दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर आश्वस्त नहीं है? या आम आदमी पार्टी में अच्छे लोग आने से कतराने लगे हैं. अवध ओझा की भी पहली प्राथमिकता आम आदमी पार्टी नहीं थी. बीजेपी और कांग्रेस में जगह न मिलने के बाद ही उन्होंने आम आदमी पार्टी में आने का फैसला किया.
1-अवध ओझा की उपलब्धियां
अवध ओझा एक शिक्षक के रूप में फेमस जरूर हो गए हैं पर आम लोगों के बीच उनकी छवि एक गंभीर आदमी की नहीं है. वो कुछ भी बोल सकते हैं. सोशल मीडिया पर अटेंशन पाने के लिए ही उन्होंने खुद अपने आपको मौकाटेरियन तक कह दिया था. वो कभी ओसामा बिन लादेन की तारीफ करने लगेंगे तो कभी खुद कट्टा चलाने वाला भी बता देंगे. उनकी विचारधारा भी स्पष्ट नहीं है. उनके हीरो और आइडियल भी हर इंटरव्यू में बदल जाते रहे हैं. कभी वो नरेंद्र मोदी तो कभी राहुल गांधी उन्हें अच्छे लगते लगते हैं. कभी उन्हें अखिलेश यादव में तमाम अच्छाइयां दिखने लगती हैं.
अरविंद केजरीवाल भी कभी उन्हें महाभ्रष्ट नजर आते रहे हैं तो कभी आईडियल बन जाते रहे हैं. लोकसभा चुनावों के दौरान वो एक साथ प्रयागराज से बीजेपी से टिकट चाहते थे तो रायबरेली से कांग्रेस उम्मीदवार बनना चाहते थे. कुल मिलाकर एक सिविल सर्विसेस का कोचिंग पढ़ाने वाला शिक्षक जो मसखरी केवल इसलिए करता है कि ताकि चर्चा में रह सके, ताकि सोशल मीडिया पर उसे व्यूज मिल सके. जो लोग अवध ओझा को बहुत दिनों से फॉलो कर रहे होंगे उन्हें पता होगा कि वो येन केन प्रकाणेन नेता बनना चाहते रहे हैं. उम्मीद है कि अब आम आदमी पार्टी की वजह से उनकी ये इच्छा पूरी हो जाएगी. दिल्ली विधानसभा में विधायक बनकर पहुंचते ही वो नेता बन जाएंगे. पर आम आदमी पार्टी को अवध ओझा को पार्टी में शामिल करके क्या मिलने वाला है?
2-ओझा किस तरह करेंगे शिक्षा में सुधार
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि अवध ओझा के पार्टी में आने से शिक्षा क्षेत्र को बहुत मजबूती मिलने वाली है. अरविंद केजरीवाल कहते हैं कि मेरी पार्टी में जब भी कोई शामिल होता है तो हम कहते हैं कि इससे हमारी पार्टी मजबूत होगी, मगर अवध ओझा के आने से हम कह सकते हैं कि इससे शिक्षा मजबूत होगी. सवाल यह है कि अवध ओझा ने शिक्षा के क्षेत्र में कौन से तीर मारे हैं. सिवाय कोचिंग सेंटरों में पढ़ाने के उनकी उपलब्धि क्या है? इस सवाल का जवाब गूगल भी नहीं बता पा रहा है. जबकि अवध ओझा के नाम से गूगल पर हजारों पेज खुलते हैं. पर अधिकतर में उनकी ओछी हरकतों की ही चर्चा है.
दिल्ली या देश में कहीं भी कोचिंग सेंटरों में उन्हीं को मौका मिलता रहा है जो बच्चे अमीर घरों से बिलॉंग करते रहे हैं. इन कोचिंग सेंटरों के चलते ही गरीब घरों के होनहार बच्चे भी कॉम्पिटिटीव एग्जाम में असफल हो जाते रहे हैं. कोचिंग सेंटर के शिक्षक मोटी फीस वसूल कर अपने छात्रों को किसी भी एग्जाम को क्रैक करने के शॉर्ट कट तरीके बताते रहे हैं. दिल्ली में आम आदमी पार्टी को वोट देने वाला क्लास मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी और मुफ्त बस सवारी करता है. उसके बच्चों को ऐसे कोचिंग सेंटरों से क्या मिलने वाला है? क्या अवध ओझा ने कभी गरीब बच्चों के लिए मुफ्त कोचिंग क्लास की सुविधा दी है. क्या बिहार सुपर 30 की तरह इन्होंने कभी ऐसे संस्थान की शुरूआत की जहां गरीब होनहार बच्चों की प्रतिभा को चमकाया जा सके. या ओझा जैसे लोगों को सरकार में लाकर सरकार की योजना ऐसी नीतियां बनाने की है कि कोचिंग सेंटर का धंधा दिल्ली में और फले फूले. ताकि कोई भी गरीब होनहार बच्चा बिना इन कोचिंग सेंटरों में दाखिला लिए कभी सफलता की सीढ़ी न चढ़ सके.
3-क्या एंटी इंकंबेंसी से परेशान है आम आदमी पार्टी
दरअसल आम आदमी पार्टी दिल्ली में करीब 11 साल से शासन कर रही है. जाहिर है कि इतने समय के शासन के बाद एंटी इंकंबेंसी से मुकाबला करना कठिन हो जाता है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेताओं को कहना है कि उनके शासन काल में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार हुआ है . वहीं बहुत से लोगों का यह भी मानना है कि आम आदमी पार्टी के शासन में दिल्ली स्लम बस्ती बन चुकी है. जिस तरह की खबरें आ रही हैं कि आम आदमी पार्टी बड़े पैमाने पर सीटिंग एमएलए का टिकट काटने वाली है. अभी कुछ दिन पहले आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए प्रत्याशियों की पहली लिस्ट जारी की थी. उस लिस्ट में अधिकतर ऐसे लोग उम्मीदवार के रूप में दिख रहे हैं जो हाल ही में दूसरी पार्टियां छोड़कर आम आदमी पार्टी में शामिल हुए हैं. यानि स्पष्ट है कि पार्टी को अपने नेताओं से ज्यादा दूसरी पार्टियों से आए लोगों पर भरोसा है. भारतीय जनता पार्टी भी यह टैक्टिस अपनाती रही है.
एंटी इनकंबेंसी से ही घबड़ाकर आम आदमी पार्टी दिल्ली में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करना चाहती है. पार्टी की मंशा यही है कि एंटी इंकंबेंसी के चलते जो लोग पार्टी से नाराज हैं उनके लिए विकल्प केवल बीजेपी के रूप में न रहे. पार्टी से नाराज लोगों के सामने जब बीजेपी के साथ कांग्रेस का भी विकल्प होगा तो जाहिर है कि वोट बंटेगा और आम आदमी पार्टी को लाभ होने की उम्मीद बढ़ जाएगी. जाहिर है एंटी इंकंबेंसी को खत्म करने में बाहर से आए लोग अवध ओझा जैसे लोग बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. पार्टी की यही कोशिश होगी जितने भी लोग बाहर से आ सकते हैं उन्हें लाया जाए. उम्मीद है कि अभी बहुत से लोग दिल्ली में आम आदमी पार्टी जॉ़इन करेंगे.