कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की गुंजाइश पर राज्य के नेताओं से राय मांगी है. कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में हरियाणा के नेताओं से बातचीत करते हुए राहुल गांधी आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन के पक्ष में दिखे. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने हरियाणा, गुजरात, गोवा, दिल्ली और चंडीगढ़ में लोकसभा चुनाव संयुक्त रूप से लड़े पर अपेक्षित सफलता नहीं मिली . उल्टे दोनों ही पार्टियों के स्थानीय इकाइयों को लगता है कि उनकी हार का कारण दूसरी पार्टी से गठबंधन था. शायद यही कारण है कि दिल्ली हो या पंजाब-हरियाणा दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ता और स्थानीय नेता नहीं चाहते कि आपस में कोई गठबंधन हो.पर राहुल गांधी की नजर आप के साथ गठबंधन पर टिकी हुई है जो यूं ही नहीं है. इसके पीछे कई वाजिब वजहें हैं.
1- हरियाणा में अलायंस के बहाने केंद्रीय विपक्ष में और मजबूत होना चाहते हैं राहुल गांधी
दरअसल राहुल गांधी बहुत दूर तक देख रहे हैं. उन्हें लगता है कि भविष्य में अगर भारतीय जनता पार्टी थोड़ी और कमजोर होती है तो कांग्रेस के लिए सरकार बनाने की गुंजाइश बन सकती है. राहुल गांधी जानते हैं कि कांग्रेस के लिए अभी केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाना बहुत दूर की कौड़ी है. दूसरी बात यह भी है कि अगर इंडिया एलायंस सत्ता में आता भी है तो पीएम पद के लिए कई दावेदार हो सकते हैं. कुछ लोग उद्धव ठाकरे जैसे भी आ सकते हैं जो कहें कि हमारी सीट भले ही कम है पर पीएम हम ही बनेंगे.
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यही कारण है कि राहुल गांधी सोची समझी रणनीति को ध्यान में रखते हुए गठबंधन को बढ़ावा देने की सोच रहे हैं. इसके लिए कई जगह ऐसा भी सकता है कि कांग्रेस को नुकसान पहुंचे. पर उनकी नजर में एनडीए की रणनीति दिख रही है. बीजेपी ने कई महाराष्ट्र और बिहार में अधिक सीटों के बावजूद छोटे भाई की भूमिका में है. राहुल समझ गए हैं कि गठबंधन धर्म निभाना है तो बीजेपी की तरह कुर्बानियां देने को तैयार रहना होगा. जाहिर है कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कांग्रेस के लिए फायदेमंद नहीं है. ऐसा नहीं है कि ये बातें उन्हें पहले ही नहीं बताई गईं होंगी. पर राहुल गांधी का मकसद राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए के सामने इंडिया गठबंधन को महाविपक्ष के रूप में खड़ा करना है.
2-हरियाणा में क्यों फायदेमंद हो सकता है कांग्रेस-आप गठबंधन
आप का प्रभाव दिल्ली की तुलना में हरियाणा में कम है, लेकिन लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी को चार विधानसभा क्षेत्रों से अच्छे रिजल्ट मिले. आप की मौजूदगी इस दौड़ में रिजल्ट को प्रभावित कर सकती है, जिससे संभावित रूप से भाजपा या कांग्रेस से वोट छिटक सकते हैं.
अगर 2024 के लोकसभा परिणाम का विश्लेषण करते हैं तो जो बातें समझ में आती है कि अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा को फायदा हो सकता है. बूथ-स्तरीय डेटा से पता चलता है कि भाजपा ने 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 44 में बढ़त हासिल की, कांग्रेस ने 42 में और आम आदमी पार्टी ने चार में बढ़त बनाई.इस तरह लोकसभा चुनावों के समय़ में अगर विधानसभा चुनाव होता तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन मिलकल 46 सीट हासिल कर लेते. मतलब कि सरकार बनाने के लिए बहुमत हासिल कर लेते. जाहिर है कि लोकसभा चुनावों को आधार मानकर दोनों पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ती हैं तो बीजेपी को बहुमत मिलता दिख रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती है गठबंधन में ताकत होती है.शायद राहुल गांधी यही सोच रहे हैं.
3-पर कांग्रेस की हरियाणा इकाई का सोचना भी सही है
हरियाणा में आम आदमी पार्टी अभी मजबूत स्थिति में नहीं है. फिर भी उसकी सीटों की डिमांड बहुत ज्यादा है. जबकि हरियाणा कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि आम आदमी पार्टी की हैसियत हरियाणा में 3 से 4 सीटों से अधिक की नहीं है. सोमवार को कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में राहुल गांधी ने पूछा कि क्या अकेले चुनाव लड़ने से नुकसान नहीं होगा.क्या गठबंधन की कोई संभावना बन सकती है. राहुल के इस सवाल का जवाब पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दिया. उन्होंने कहा, आम आदमी पार्टी ज्यादा सीटें मांग रही हैं, इसलिए उनसे गठबंधन कर पाना मुश्किल है.हुड्डा ने कहा कि तीन से चार सीटें दी जा सकती हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी की ख्वाहिश बड़ी है.
दरअसल हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन में कांग्रेस को कई फायदा नहीं हुआ था. कांग्रेस को लगता है कि कुरुक्षेत्र सीट अगर उनके खाते रहती तो हो सकता है बीजेपी को यहां से हार मिलती. हालांकि कुरुक्षेत्र में मिली हार के बाद आम आदमी पार्टी के हरियाणा प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष अनुराग ढांडा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कांग्रेस पर गंभीर आरोप लगाए थे. उन्होंने कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला और अशोक अरोड़ा पर निशाना साधते हुए उन पर भितरघात करने का शक जताया था. अनुराग ढांडा ने कहा कि कुछ ताकतों ने यह कोशिश की कि हरियाणा में आम आदमी पार्टी की भ्रूण हत्या की जाए. क्योंकि उन्हें लगा कि यदि आप कुरुक्षेत्र में जीतती है तो हरियाणा की राजनीति में तूफान आ जाएगा और बड़े राजनीतिक दलों को दिक्कत हो जाएगी.
अनुराग ढांडा का तर्क था कि कैथल में जिस रणदीप सुरजेवाला को कद्दावर नेता माना जाता है. वह कई राज्यों में प्रभारी भी रहे हैं. वो पिछली बार अपने विधानसभा चुनाव में 500-700 वोटों से रह गए थे, उसके बाद बीजेपी के खिलाफ इतनी एंटी वेव भी चल रही थी, उसके बावजूद सुरजेवाला जी के इलाके से गठबंधन 17000 वोट पीछे कैसे रह गया? ये बात समझ नहीं आती है. जिस बूथ पर सुरजेवाला ने वोट किया वहां भी गठबंधन हार गया. ऐसे में तो सवाल तो उठेगा ही.' जाहिर है कि अनुराग ढांढा की बातों में दम है.
दरअसल आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के वोट करीब-करीब एक ही जैसे हैं. दोनों को ही मुस्लिम-दलित और जाट वोटों का भरोसा है. दोनों को ही एंटी इनक्ंबैंसी वोट मिलने की उम्मीद है.यही कारण है कि दोनों आपस में गठबंधन करने में फायदा नजर नहीं आता है. इसके साथ ही कांग्रेस जानती है कि अगर राज्य में आम आदमी पार्टी कुछ सीट जीत जाती है तो फिर कांग्रेस के लिए खतरा पैदा हो जाएगा. क्योंकि जिन स्टेट में आम आदमी पार्टी मजबूत हुई है वहां से कांग्रेस का सफाया हो गया है.क्योंकि कांग्रेस के वोटर आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो रहे हैं.
यही कारण है कि दोनों ही पार्टियां एक दूसरे से गठबंधन रहकर चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं. हरियाणा की सीनियर नेता कुमारी सैलजा ने आम आदमी पार्टी के साथ किसी भी तरह के गठबंधन से इनकार करती हैं. पिछले महीने उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी पार्टी राज्य में एक मजबूत खिलाड़ी है और चुनाव में अकेले दम पर उतरेगी. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कहते रहे हैं कि आम आदमी पार्टी हरियाणा की सभी 90 सीटों पर अपनी ताकत से चुनाव लड़ेगी.
यही नहीं दिल्ली में भी लोकसभा चुनावों में दोनों ही पार्टी के स्थानीय नेता लगातार गठबंधन का विरोध करते रहे है इसके बावजूद गठबंधन तय हुआ. पर एक भी सीट यह गठबंधन नहीं जीत सकी. हरियाणा में भी स्थानीय इकाइयों को विरोध के बावजूद दोनों ही पार्टियों में गठबंधन हुआ. कुरुक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी को मिली पर, गठबंधन यह सीट जीत नहीं सका. मतलब साफ है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन करके कुछ हासिल नहीं कर सके हैं. हालांकि चंडीगढ़ सीट को अपवाद माना जा सकता है. लोकसभा चुनावों में यहां दोनों ही पार्टियों मिलकर चुनाव लड़ा. कांग्रेस से मनीष तिवारी उम्मीदवार रहे और विजय भी हासिल किए. पंजाब में तो दोनों ही पार्टियों के स्थानीय इकाइयों का विरोध इतना ज्यादा था कि मजबूरी में दोनों ही दलों ने अलग अलग कैंडिडेट उतारे. पर यह ध्यान रखा गया कि जहां आम आदमी पार्टी का मजबूत दावेदार था वहां से कांग्रेस ने कमजोर प्रत्याशी उतारे और जहां से कांग्रेस का दमदार प्रत्याशी था वहां से आम आदमी पार्टी ने डमी कैंडिडेट उतारा.
4- हरियाणा में क्या है चुनावी समीकरण
लोकसभा चुनाव-2024 में हरियाणा में कांग्रेस के प्रदर्शन अच्छा रहा है. उसने 10 में से 5 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं, आप 3.94 वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रही थी. हरियाणा में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 90 में से 31 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसका वोट शेयर 28.08 प्रतिशत था.
हरियाणा विधानसभा में 90 सीटें हैं. भाजपा के पास 40, कांग्रेस के पास 31 और निर्दलीय/अन्य के पास 19 सीटें हैं. वर्चस्व की लड़ाई तेज होती जा रही है, क्योंकि तीनों प्रमुख पार्टियां ( भाजपा-कांग्रेस-आम आदमी पार्टी) सभी सीटों पर लड़ने का लक्ष्य बना रही हैं.
बूथ-स्तरीय डेटा से पता चलता है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 44 में बढ़त हासिल की, कांग्रेस ने 42 में और आम आदमी पार्टी ने चार में बढ़त बनाई. कांग्रेस ने ग्रामीण और अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में मजबूती दिखाई. फिरोजपुर झिरका में कांग्रेस ने 98,558 वोटों से जीत दर्ज की. कोसली की दो वोटों के अंतर और बवानी खेड़ा की 282 वोटों के अंतर जैसी छोटी जीत से पता चलता है कि कुछ लड़ाई छोटे अंतर से तय हो सकती हैं, जिससे कड़ी टक्कर की संभावना है. अगर यहां आम आदमी अलग लड़ती है तो जाहिर है कि इन सीटों पर भी कांग्रेस को हार मिल सकती है.