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तेजस्वी को "नौवीं पास" बताकर बिहार में कितनी राजनीतिक जमीन तैयार कर लेंगे प्रशांत किशोर

तेजस्वी यादव काफी दिनों से प्रशांत किशोर के निशाने पर हैं. उनको 'नौवीं पास' बोल कर प्रशांत किशोर लगातार पर्सनल अटैक कर रहे हैं. उनके जन सुराज अभियान को साल भर से ज्यादा हो चुके हैं, और वो लगातार लोगों के बीच बने हुए हैं - सवाल ये है कि इस मुहिम का असली लाभार्थी कौन है, नेता या जनता?

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तेजस्वी यादव का बार बार नाम लेकर क्या प्रशांत किशोर अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं?
तेजस्वी यादव का बार बार नाम लेकर क्या प्रशांत किशोर अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं?

प्रशांत किशोर अक्सर नीतीश कुमार पर हमलावर देखे जाते हैं. बीजेपी को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के उपाय भी बताते हैं, और कांग्रेस को ये भी समझाते हैं कि हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला - लेकिन बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव काफी दिनों से उनके निशाने पर बने हुए हैं. 

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तेजस्वी यादव की पढ़ाई लिखाई को लेकर प्रशांत किशोर ज्यादा ही आक्रामक नजर आते हैं. तेजस्वी यादव का नाम लेकर वो हर मौके पर नौवीं क्लास का जिक्र करते हैं - यहां तक कि नीतीश कुमार के जिस बयान को लेकर भयंकर बखेड़ा हुआ, प्रशांत किशोर सवाल कर रहे थे कि तेजस्वी यादव को कैसे पता कि स्कूलों में क्या पढ़ाया जाता है. असल में तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के बयान का ये कहते हुए बचाव किया था कि वो सेक्स एजुकेशन की बात कर रहे थे, जिसकी पढ़ाई स्कूलों में होती है. 

ये सुनते ही प्रशांत किशोर ने पूछना शुरू कर दिया, 'तेजस्वी यादव ने कहां से यौन शिक्षा ली?'

कहने लगे, 'लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ने नौवीं कक्षा भी पास नहीं की है... ये बात बिहार का बच्चा-बच्चा जानता है... फिर उन्होंने किस स्कूल में यौन शिक्षा की पढ़ाई की? तेजस्वी को अगर भाषा का ज्ञान होता तो वो नीतीश के बयान का समर्थन नहीं करते.' 

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पर्सनल अटैक के साथ वो तेजस्वी यादव की राजनीतिक हैसियत पर भी सवाल खड़े कर देते हैं, 'तेजस्वी यादव की क्या पहचान है? वो नौंवी फेल आदमी है... वो क्रिकेट खेलने गये तो वहां भी पानी ढोते थे... लालू यादव के लड़के हैं इसलिए सब लोग जानते हैं... इसीलिए वो आरजेडी के नेता हैं.'

तेजस्वी यादव के साथ ही प्रशांत किशोर राहुल गांधी के बारे में भी करीब करीब ऐसी ही बातें करते हैं. कह रहे हैं, 'राहुल गांधी... राजीव गांधी के लड़के हैं इसलिए वो कांग्रेस के नेता हैं... इससे वो देश के नेता थोड़े न हो जाएंगे.'

परिवारवाद की राजनीति की तरफ इशारा करते हुए प्रशांत किशोर का कहना है, 'आपके बाबू जी की पार्टी है तो कोई भी नेता बन जाएगा... आपके बाबूजी की दुकान है तो कोई भी जाकर बैठ जाएगा... दुकान का मालिक हो जाएगा... उसमें आपकी योग्यता क्या है?

क्या प्रशांत किशोर, तेजस्वी यादव पर निजी हमले करके किसी और को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं? क्या प्रशांत किशोर के तेजस्वी यादव पर निजी हमलों से बीजेपी को कोई फायदा हो सकता है? क्या तेजस्वी यादव को प्रशांत किशोर के घेरने से कांग्रेस को कोई लाभ मिल सकता है - क्या प्रशांत किशोर ये सब बोल कर बिहार की राजनीति में अपना पांव जमा सकते हैं?

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प्रशांत किशोर की मुहिम का मकसद क्या है?

2 अक्टूबर, 2022 से प्रशांत किशोर बिहार में सुराज अभियान पर निकले हैं - और तभी से लगातार लोगों के बीच बने हुए हैं. वो लोगों से संवाद स्थापित कर उनको उन्हीं की भाषा में वे बातें बता रहे हैं जो उनसे ही जुड़ी हैं - कुछ तो अच्छी बातें भी हैं, लेकिन कई ऐसी बातें भी हैं जो बिहार की राजनीति में व्यावहारिक नहीं लगतीं. 

जैसे जातिगत गणना का मुद्दा है. प्रशांत किशोर जातिगत गणना पर भी सवाल उठाते हैं, और लोगों को  जाति और धर्म के नाम पर वोट न देने की सलाह देते हैं? बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर कितने लोग उनकी ये सलाह मानने जा रहे हैं? 

अपनी तरफ से लोगों को वो ये भी बताते हैं कि जाति और धर्म के नाम पर नेता चुनाव इसीलिए जीत रहे हैं, क्योंकि वे लोग वोट दे रहे हैं, 'मुखिया के चुनाव में 500 रुपये लेकर और मुर्गा-भात खाकर वोट देंगे, तो जो जीतेगा वो चोरी ही करेगा... 10-12 हजार की मजदूरी के लिए आपके घर का सवांग अपना पूरा जीवन दूसरे राज्यों में खपा रहा है... फिर भी वोट के दिन आप जाति-धर्म से बाहर नहीं निकलते हैं.'

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित कई नेताओं के लिए सफल चुनाव अभियान चला चुके प्रशांत किशोर लोगों को उनके वोट की कीमत भी समझाने की कोशिश करते हैं, 'नेता मंगल ग्रह से नहीं आया है... उसे आपने-हमने मिलकर चुना है, इसलिए नेताओं को दोष देना बंद कीजिए... आपको नेता नहीं ठग रहे हैं... आप खुद ही ठगे जाने के लिए तैयार बैठे हैं.'

लोगों को प्रशांत किशोर की बातें जैसी भी लगती हों, अपनी तरफ से वो आगाह तो कर ही रहे हैं, 'जिन नेताओं ने आपके बच्चों को अनपढ़ और मजदूर बना दिया है, उन्हीं नेताओं को जाति और धर्म के नाम पर वोट देंगे, तो आप नहीं भोगेंगे तो कौन भोगेगा?'

प्रशांत किशोर तेजस्वी यादव की शिक्षा पर सवाल तो उठाते ही हैं, लोगों के बीच पहुंच कर जगह जगह ये भी पूछ रहे हैं, 'आपका बच्चा पढ़ रहा है कि नहीं, नेता आकर कभी भी आपसे यह पूछा?
और समझाते भी हैं, 'गरीबी की वजह से अगर सभी बच्चों को नहीं पढ़ा सकते हैं, तो कम से कम एक बच्चा को भी पढ़ाइये... तभी जीवन सुधरेगा.'

जन सुराज अभियान का असली लाभार्थी कौन है?

सोशल साइट X पर जन सुराज अभियान के बॉयो में लिखा है, 'सही लोगों को साथ जोड़कर, सही सोच के साथ, समाज के समग्र विकास के लिए एक नयी राजनीतिक व्यवस्था बनाने का सामूहिक प्रयास.'

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साफ है, प्रशांत किशोर बिहार में राजनीतिक बदलाव के लिए काम कर रहे हैं. साफ है, वो बिहार की मौजूदा सत्ता में बदलाव के लिए लोगों से बात कर रहे हैं. और ये भी साफ है कि वो बदलाव के जरिये नयी व्यवस्था देने का भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं - लोगों को अब तक प्रशांत किशोर पर अब तक भरोसा बना है या नहीं, ये तो वे लोग ही जानते हैं जिनसे वो मिल जुल रहे हैं. 

अगर बिहार की मौजूदा सरकार की बात की जाये तो जेडीयू और आरजेडी सहित सात राजनीतिक दलों की गठबंधन सरकार नीतीश कुमार, अपने मुंहबोले भतीजे तेजस्वी यादव के साथ मिल कर चला रहे हैं. सत्ताधारी गठबंधन के सहयोगी दलों में कांग्रेस भी शामिल है.

बिहार की सत्ता पर फिलहाल काबिज लोग अगर किसी की आंख में सबसे ज्यादा खटक रहे हैं, तो वो बीजेपी है. कुछ हद तक कांग्रेस को भी लगता है सत्ता का नेतृत्व तो उसके हाथों में ही होना चाहिये. राहुल गांधी जब क्षेत्रीय दलों में विचारधारा के अभाव की बात करते हैं तो ऐसा ही भाव प्रकट होता है. 

और इसीलिए प्रशांत किशोर के अभियान को लेकर सवाल उठता है कि क्या ये सब बीजेपी को फायदा पहु्ंचाने के लिए है? ये सवाल इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि प्रशांत किशोर के अभियान का फायदा अभी तो उनको मिलने से रहा, फायदा तो वही उठा पाएगा जो 2024 के लोक सभा चुनाव या 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में मजबूत स्थिति में होगा. निश्चित तौर पर ऐसी स्थिति में अभी तो बीजेपी ही नजर आ रही है. 

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अगर बॉयो के हिसाब से जन सुराज अभियान को समझें तो ऐसा भी लगता है कि प्रशांत किशोर अपनी राजनीतिक पार्टी खड़ा करने के लिए काम कर रहे हैं. जैसे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर आंदोलन खड़ा किया, प्रशांत किशोर राजनीतिक बदलाव का सपना दिखा कर अपनी स्टाइल में 'अच्छे दिन' लाने की कोशिश कर रहे हैं. ये प्रशांत किशोर ही हैं जिन्होंने बीजेपी के चुनाव कैंपेन के लिए अच्छे दिन का स्लोगन दिया था.

अपने अभियान से प्रशांत किशोर जिन लोगों को जोड़ रहे हैं, उनके नाम भी सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है. सवाल है कि ये सिर्फ डाटा के रूप में इकट्ठा किया जा रहा है, या प्रशांत किशोर अपना कोई नया संगठन खड़ा कर रहे हैं?

अन्ना हजाने के नेतृत्व में सफल रामलीला आंदोलन चलाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने राजनीति का रुख किया तो कुछ लोगों को हैरानी हुई. खुद अन्ना हजारे और किरण बेदी जैसी शख्सियतों ने अरविंद केजरीवाल से दूरी बना ली, लेकिन बहुत सारे लोग बड़ी उम्मीदों के साथ जुड़े भी - ये ठीक है कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के लोगों ने दोबारा सत्ता सौंप दी है, पंजाब में भी AAP की सरकार बनवा दी है, लेकिन उनकी राजनीति से भारी निराशा भी हुई है.

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ये भी विडंबना ही है कि नायक बन कर उभरे अरविंद केजरीवाल और उनके साथी अब भ्रष्टाचार के आरोपों में ही घिर चुके हैं - प्रशांत किशोर का अभियान भी अरविंद केजरीवाल के आंदोलन का नया वर्जन तो नहीं है? 

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