दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की चुनावी रणनीति को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन जैसा होता जा रहा है. जिस तरह अचानक उन्होंने दिल्ली सीएम की कुर्सी छोड़ने का फैसला किया है यह उसका एक छोटा सा उदाहरण भर है. जेल से छूटने के बाद ऐसा लग रहा था कि हरियाणा विधानसभा चुनावों को देखते हुए उनके निशाने पर कांग्रेस नेतृत्व भी रहेगा. पर ठीक इसके विपरीत उन्होंने अब तक कांग्रेस का नाम तक नहीं लिया है. हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी के गठबंधन की वार्ता चल रही थी जो सफल नहीं हुई. इस बात को लेकर केजरीवाल कांग्रेस को निशाना बना सकते थे.
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन के तहत INDIA गठबंधन का हिस्सा बनकर दिल्ली में चुनाव लड़ा था. दिल्ली की सात में से चार सीटों पर आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ा, जबकि कांग्रेस ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. बुरी तरह असफल होने के बाद दोनों ही पार्टियों की ओर से स्टेटमेंट आया कि अब हमारे बीच गठबंधन खत्म हो चुका है. इस तरह दोनों ही पार्टियों के बीच दरार की खाई बहुत चौड़ी हो गई थी. इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल कांग्रेस को लेकर अब कुछ नहीं बोल रहे हैं. आइये देखते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिसके चलते अरविंद केजरीवाल की कांग्रेस को लेकर टोन बदल गई है.
1-राष्ट्रीय नेता बनने की भूख बिना कांग्रेस के सहयोग के संभव नहीं
अरविंद केजरीवाल शुरू से ही राष्ट्रीय राजनीति करना चाहते रहे हैं. यही कारण रहा कि उन्होंने 2014 में बनारस से बीजेपी के प्राइम मिनिस्टर कैंडिडेट नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का साहस दिखाया था. जिस तरह वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टार्गेट करते रहे हैं वह भी उनके राष्ट्रीय राजनीति में छा जाने की भूख को दर्शाता रहा है. ठीक उसी तरह जेल से छूटने के बाद अरविंद केजरीवाल ने इस बार कभी भी दिल्ली का नाम नहीं लिया. वे बार-बार देश की बात कर रहे थे. उन्होंने कहा कि उनके खून का एक एक कतरा देश के लिए काम आएगा. पहले ये बात कहते हुए वो दिल्ली का नाम भी लिया करते थे. पर अब ऐसी बात नहीं है.
पर आज परिस्थितियां बदली हुईं नजर आ रही हैं. बीजेपी के कमजोर होने के साथ कांग्रेस पहले की तुलना में मजबूत हो रही है. फिर भी देश का कोई भी एक दल ऐसा नहीं है जो अकेले ही मोदी सरकार को केंद्र से हटा सके. इस बात का भान अच्छी तरह से अरविंद केजरीवाल को है. शायद यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल का मुख्य फोकस मोदी विरोधी वोटों को कब्जा करना हो गया है. अरविंद केजरीवाल यह अच्छी तरह समझते हैं कि एक साथ दो मोर्चे खोलने पर वो कहीं के नहीं होंगे. इसलिए उनकी रणनीति एक सूत्री कार्यक्रम मोदी विरोध पर ही केंद्रित है. यही कारण है कि मोदी कांग्रेस के खिलाफ मुंह नहीं खोल रहे हैं.
2-लोकसभा चुनावों में बीजेपी का वोट प्रतिशत कांग्रेस के प्रति नरम रुख का है कारण
लोकसभा चुनावों के दौरान हरियाणा और दिल्ली में बीजेपी का वोट प्रतिशत इस तरह का है कि उसे कमजोर समझना किसी भी पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है. हरियाणा में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस करीब 42 विधानसभाओं में लीड कर रही थी, जबकि बीजेपी करीब 44 विधानसभा में आगे थी. इसी तरह आम आदमी पार्टी भी करीब 4 विधानसभा सीटों पर आगे रही थी. दिल्ली में भी यही हाल था बीजेपी का वोट प्रतिशत कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कुल हिस्से से भी काफी ज्यादा था. हालांकि आम आदमी पार्टी के लिए संतोष की बात ये थी कि पिछले चुनावों के मुकाबले उसके कुल वोट में 6 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई. मतलब साफ है कि अरविंद केजरीवाल जनता के बीच चाहे कितना भी सहानुभूति बटोरने में कामयाब हो जाएं पर बीजेपी को हराने के लिए उन्हें अभी बहुत कुछ करना होगा. शायद यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल अभी कांग्रेस से पंगा लेने के मूड में नहीं हैं.
3-दिल्ली फिर से फतह करने के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन जरूरी
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि अरविंद केजरीवाल के रिजाइन करने के फैसले से वो दिल्ली में अपने फेवर में माहौल तैयार करने में सफल हो सकते हैं . पर यह भी गौर करने वाली बात है कि जब वो ताजा ताजा जेल गए थे तो मामला ज्यादा सहानुभूति बटोरने वाला था. उसी समय लोकसभा चुनाव हो रहे थे. कई सर्वे आए जिसमें यह बताया गया कि केजरीवाल के जेल जाने का फायदा आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को अवश्य होगा. पर अरविंद केजरीवाल के जेल जाने का फायदा पार्टी को नहीं हुआ. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद भी बीजेपी के प्रत्याशी भारी बहुमत से चुनाव जीतने में सफल साबित हुए . मतलब साफ है कि विधानसभा चुनावों तक स्थितियां रिजाइन करने के बाद भी बहुत बदलने वाली नहीं हैं. दूसरे कांग्रेस पार्टी भी रिवाइइव हो रही है. राहुल गांधी को लेकर लोगों का नजरिया बदल रहा है. दलित और मुसलमान फिर से कांग्रेस की ओर जा रहे हैं. इसलिए कांग्रेस को साथ लेना जरूरी है.
4-हरियाणा में मोदी को टारगेट करने में ही आप का फायदा
जेल से छूटने के बाद अरविंद केजरीवाल की पहली अग्निपरीक्षा हरियाणा चुनाव है . आम आदमी पार्टी ने जिस तरह यहां ठसक के साथ कुल 90 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं उसे सही साबित करना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है. अगर इन चुनावों में आम आदमी पार्टी अपना वोट प्रतिशत नहीं बढ़ा पाती है या कम से कम 10 सीटों पर बढ़िया प्रदर्शन नहीं कर पाती है तो यही कहा जाएगा कि अरविंद केजरीवाल की रिहाई का जादू चल नहीं पाया. केजरीवाल को अगर हरियाणा में बेहतर प्रदर्शन करना है तो उन्हें कांग्रेस की बजाय बीजेपी और पीएम मोदी को टार्गेट करना होगा. इसके लिए उन्हें अपने बीजेपी विरोध को कांग्रेस से भी ऊपर ले जाना होगा. तभी वो बीजेपी विरोधी वोटों में अपना हिस्सा ले सकेंगे. शायद यही कारण है कि केजरीवाल ने कांग्रेस को लेकर नरम रुख अख्तियार कर रखा है.
5. क्योंकि कांग्रेस भी है केजरीवाल को लेकर खामोश
आमतौर पर सभी पार्टियां मौका पाकर एक दूसरे की आलोचना करती हैं. और जरूरत पड़ने पर दोस्त भी बन जाती हैं. आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही लव-हेट रिलेशनशिप वाला है. अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के पैरों तले जमीन खींचकर ही की थी. तमाम कांग्रेस नेताओं को वे भला-बुरा कहते थे. फिर जब दिल्ली में आप की पहली सरकार बनाने का मौका आया, तो उन्होंने कांग्रेस से ही गठजोड़ किया. दिलचस्प ये है कि केजरीवाल जिन शराब घोटाले के आरोप में तिहाड़ जेल से होकर आए हैं, उसकी पहली शिकायत कांग्रेस पार्टी ने ही की थी. कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने प्रेस कान्फ्रेंस करके केजरीवाल सरकार पर इस बारे में गंभीर आरोप लगाए थे. अब जबकि केजरीवाल इस मामले में पूरी तरह फंस गए हैं तो कांग्रेस उनके प्रति सहानुभूति जता रही है. बीजेपी पर आरोप लगाया जा रहा है कि वह विपक्षी नेताओं को जेल में डाल रही है. केजरीवाल के जेल से रिहा होने के बाद बीजेपी ही आम आदमी पार्टी को घेर रही है, जबकि कांग्रेस पूरी तरह खामोश है. हां, दिल्ली के कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने जरूर केजरीवाल को लेकर तंज किया है. और कहा है कि आप में केजरीवाल ही अकेले नेता हैं, बाकी सब सेवक हैं. हालांकि, संदीप दीक्षित का केजरीवाल से अलग हिसाब-किताब भी है, जो उनकी मां शीला दीक्षित के कार्यकाल से जुड़ा है. जब शीला दीक्षित दिल्ली सीएम थी, तब केजरीवाल उन भी खूब आरोप लगाते थे. खैर, अब बाकी कांग्रेस चुप है, और वह आप और बीजेपी की लड़ाई का चुपचाप मजा ले रही है.