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क्या कुणाल कामरा से वैसा ही सुलूक होना चाहिये जैसा उद्धव सरकार ने कंगना रनौत संग किया था?

शिवसेना यूबीटी का अदना सा नेता भी एकनाथ शिंदे को गद्दार बोलने से नहीं हिचकता है. और जब इन नेताओं के खिलाफ एफआईआर नहीं होती है तो फिर कॉमेडियन कुणाल कामरा पर क्यों? ऐसा इसलिए क्‍योंकि जब कंगना रनौत ने उद्धव ठाकरे पर टिप्‍पणी की थी, तो उनका भी घर गिरा दिया गया था. जिस पर कुणाल कामरा ने कहा था कि 'मुझे अच्‍छा लगा'.

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कुणाल कामरा आर्टिस्ट नहीं नेता बन चुके हैं.
कुणाल कामरा आर्टिस्ट नहीं नेता बन चुके हैं.

स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा पर महाराष्ट्र पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है. कुणाल ने अपने एक शो में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे को गद्दार कहा था. कुणाण अपनी कॉमेडी में एकनाथ शिंदे का बिना नाम लिए तंज कसते हुए कहते हैं कि ये परिवारवाद बदलने गए थे पर दूसरे के बाप को ही चुरा लिए. शिंदे समर्थकों को कामरा की बातें बुरी लगीं और उन्होंने कुणाल से जुड़े ठिकानों पर तोड़ फोड़ की और कामरा के खिलाफ एफआई भी दर्ज कराई. ये महाराष्ट्र पुलिस की समझ है कि उन्होंने शिंदे समर्थकों को तोड़फोड़ करने के आरोप में हिरासत में ले लिया है हालांकि कामरा अभी आजाद घूम रहे हैं. ये महाराष्ट्र पुलिस की सदाशयता ही है कि उसने कामरा की गिरफ्तारी अभी नहीं की है. महाराष्ट्र पुलिस आजकल कुछ ज्यादा ही एथिक्स दिखाने लगी है. यही कारण रहा कि नागपुर में भी दंगे करने वाले हिंदू संगठनों के नेताओं को भी पुलिस ने नहीं बख्शा. जबकि उद्धव सरकार के दौरान सोशल म‍ीडिया पर टिप्‍पणी करने वाली कंगना रनौत का घर अवैध निर्माण कहकर तोड़ दिया गया था. जिसमें बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने 'दूर्भावना भरी कार्रवाई' करार दिया था.

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वैसे, देखा जाए तो महाराष्ट्र पुलिस को कामरा के खिलाफ मामला भी नहीं दर्ज करना चाहिए था. आखिर कामरा ने वही कहा जो शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे और उनके पुत्र आदित्य ठाकरे हर रोज कहा करते हैं. शिवसेना यूबीटी का अदना सा नेता भी एकनाथ शिंदे को गद्दार बोलने से नहीं हिचकता. अगर महाराष्ट्र पुलिस उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे,संजय राउत सहित तमाम शिवसेना यूबीटी के छुटभैये नेताओं के खिलाफ अब तक कोई एफआईआर नहीं दर्ज की है तो आखिर किस आधार पर कुणाल कामरा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है? आखिर मुंबई पुलिस को यह समझना चाहिए कि शिवसेना नेताओं और कुणाल कामरा में अंतर ही क्या है? कुणाल भी पार्टी के लिए ही काम कर रहे हैं. बस अंतर इतना है कि वो बिना पार्टी जॉइन किए इंडिया एलायंस के दलों की चरणवंदना करते हैं. कुणाल की कॉमेडी में एनडीए नेता ही टार्गेट पर रहते हैं.

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कुणाल कामरा की कॉमेडी बेहद सतही होती है. उनकी कॉमेडी को कभी समान्य दर्शकों ने तवज्जो नहीं दिया. ये कारण है कि उनका कोई बहुत बड़ा फैन बेस नहीं है. इसलिए उन्होंने सही रास्ता पकड़ लिया. भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़े नेताओं और पार्टियों के खिलाफ बोला जाए. इससे एक तरह के समर्थकों का वर्ग तैयार हो जाएगा. ये ऐसे लोग हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके साथ आधे-अधूरे ढंग से खड़े लोग भी देश के दुश्मन लगते हैं. इन लोगों के खिलाफ निकला जहर हमेशा देश में कुछ लोगों को अमृत लगता है.

देश में यूट्यूबर का एक खास वर्ग है जो आज करीब 10 साल से हर दिन भविष्यवाणी करता है कि मोदी के खिलाफ बीजेपी में कुछ चल रहा है. इनकी हेडलाइन ऐसी होती है जैसे- मोदी की सरकार बस गिरने ही वाली है, मोदी के सहयोगी बस उनका साथ छोड़ने ही वाले हैं , 2024 में मोदी की नहीं होगी वापसी, 2029 तक मोदी नहीं रहेंगे पद पर, मोदी अनपढ़ हैं, मोदी ने देश को बेच दिया... इस तरह की हेडलाइन देने वाले यू ट्यूबर भी जानते हैं कि मोदी अभी कहीं जाने वाले नहीं हैं. पर देश में एक तबके को ये सब देखकर -सुनकर बड़ी तसल्ली होती है.बस उसी खास तबके को पकड़ने की कोशिश में कामरा जैसे कॉमेडियन कुछ ऐसा करते रहते हैं कि उनकी रोजी- रोटी चलती रहे. इन लोगों में कोई कला नहीं है.

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ये जानते हैं कि कला के नाम पर अगर एक दिन भी ये बोल दिए कि क्या शिवसेना यूबीटी में बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे, उद्धव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे ही नेता हैं ? क्या ठाकरे परिवार से बाहर का नेता यूबीटी का लीडर नहीं बन सकता है?  कामरा कभी यह भी नहीं पूछ सकते कि उद्धव ठाकरे ने जब 2020 में बीजेपी के साथ चुनाव लड़कर जनता से वोट लिया था तो रिजल्ट आने के बाद फिर कांग्रेस के साथ क्यों चले गए? दरअसल कुणाल कपूर जैसे लोग आर्टिस्ट हैं ही नहीं. ये आर्टिस्ट होने का ढोंग करते हैं. आर्टिस्ट होने के नाम पर ये वैचारिक स्वतंत्रता की बात करते हैं. पर कोई दूसरा आर्टिस्ट विचारों की स्वतंत्रता दिखाएगा तो ये अपना मुंह बंद कर लते हैं. आपको याद होगा कि बॉलिवुड अभिनेत्री कंगना रनौत जो अब सांसद बन चुकी हैं ने भी कभी कामरा की तरह विचारों की स्वतंत्रता दिखाई थी. उसका हश्र ये हुआ कि कंगना के मुंबई ऑफिस पर बुलडोजर एक्शन हो गया. उस समय यही कुणाल कामरा बुलडोजर एक्शन पर शिवसेना नेता संजय राउत के साथ टीवी पर बैठकर  ही..ही..ही. कर रहे थे. 

बीजेपी सरकार ने तो कम से कम अभी कामरा के ठिकानों पर बुलडोजर एक्शन नहीं किया है. कामरा को स्टैंडअप कॉमेडी छोड़कर कंगना की तरह पार्टी जॉइन करके राजनीति करनी चाहिए.  जी भर के मोदी समर्थकों के खिलाफ भड़ास निकालनी चाहिए. आखिर क्यों वो एक कला को बदनाम कर रहे हैं. पर कामरा समझदार हैं, वो जानते हैं कि कंगना तो चुनाव जीत गईं पर वो कभी चुनाव नहीं जीत पाएंगे. चुनाव लड़कर जीतने की कूवत तो अब उनके आकाओं में भी नहीं है. कामरा जानते हैं कि जो वो अभी कर रहे हैं बस वो ही उनके बस की बात है. इसलिए शायद ही कामरा कंगना की राह पर चलने की कोशिश करें.

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याद है, कुछ सालों पहले कुणाल कामरा ने लखनऊ से मुंबई की फ्लाइट के दौरान पत्रकार अरनव गोस्वामी से किस तरह की हरकत की थी? उसे कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता था. विदेश में होते तो किसी को- पैसेंजर को परेशान करने के आरोप में उन्हें जेल जाना पड़ा होता. या देश में ही उद्धव ठाकरे की सरकार रही होती और कुणाल कामरा को फ्लाइट में कोई उसी तरह से परेशान किया होता तो हो सकता था कि फ्लाइट के लैंड करते ही उसे जेल भेज दिया होता. या उसके घर पर मुंबई पुलिस या बीएमसी की नोटिस पहुंच गई होती.

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