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कुत्तों के अधिकारों की रक्षा जरूरी या ह्यूमन राइट्स? ऐक्टिविस्ट हैरान-जनता परेशान

दिल्ली-एनसीआर में लगातार डॉग बाइट की घटनाएं ही नहीं बढ़ रही हैं, बल्कि कुत्तों को लेकर विवाद भी बढ़ रहा है. कुत्तों के अधिकार के लिए काम करने वाले संगठनों की संख्या की तुलना में कुत्तों से पीड़ित लोगों के लिए काम करने वालों की कमी हो गई है. कितने ही गरीब लोगों को रैबीज के इंजेक्शन तक नसीब नहीं हो रहे हैं.

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डॉग बाइट की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं
डॉग बाइट की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं

फरीदाबाद की एक कॉलोनी में बुधवार को एक आवारा कुत्ते ने करीब 3 बच्चों सहित 6 लोगों को काट लिया. इसी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में आवारा कुत्ते का मामला गूंजा. वकील कुणाल चटर्जी हाथों में पट्टी बांधकर कोर्ट पहुंचे, CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा- क्या हुआ है, पट्टी क्यों बंधी है? कुणाल बताते हैं कि गाजियाबाद में मेरे ऊपर 5 कुत्तों ने एकसाथ हमला बोल दिया. दूसरी ओर मंगलवार को ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक आदेश पारित करके दिल्ली नगर निगम को आवारा कुत्तों को छोड़ने का आदेश पारित किया.कोर्ट ने आवारा कुत्तों को पकड़ने के लिए बने नियम कानून को कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करने का आदेश दिया. दरअसल दिल्ली उच्च न्यायालय को शिकायत मिली थी कि जी- 20 सम्मेलन के दौरान जिन आवारा कुत्तों को दिल्ली नगर निगम ने पकड़ा था उन्हें अभी तक फिर से उन्हीं के इलाके में छोड़ा नहीं गया है.एमसीडी ने कोर्ट को बताया कि जी20 शिखर सम्मेलन की तैयारी के लिए पकड़े गए कुत्तों को भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) की सहायता से एबीसी नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए रिहा किया जा रहा है. 

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इन तीनों खबरों का यहां जिक्र करने का मतलब यह है कि समाज में आवारा कुत्तों से निजात चाहने वालों और आवारा कुत्तों के अधिकारों के लिए होने वाली लड़ाई बहुत बड़ी होती जा रही है.सरकार और कोर्ट दोनों परेशान हैं कि ऐसा क्या किया जाए कि कुत्तों के अधिकारों की भी रक्षा हो जाए और ह्यूमन राइट्स की?

क्यों जटिल हो रही समस्या

दरअसल कुत्तों की समस्या इतनी जटिल हो गई है कि प्रशासन हो या कोर्ट इस मामले में बीच का रास्ता अपनाते के लिए मजबूर होता है. आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए किया जाने वाला हर उपाय एनिमल राइट के लिए काम करने वाली संगठनों को बोलने का मौका मिलता है. सरकार कुत्तों की नसबंदी कराए,इन्हें उठाकर शेल्टर होम में डाले तो परेशानी और ऐसा न करे तो परेशानी. आवारा कुत्तों की संख्या उनके बढ़ते झुंड को देखकर लगाया जा सकता है.कुत्तों के हमले की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं. तो क्या कुत्तों के व्यवहार में परिवर्तन हुआ है? जनता के लिए परेशानी का सबब बनने पर अगर बंदरों को मारने का आदेश सरकारें दे सकती हैं, किसानों के हित के लिए नील गायों को मारने का आदेश सरकारें दे सकती हैं तो कुत्तों के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता है?

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कुत्ते बिना छेड़े हमला नहीं करते कितना सही

दिल्ली और एनसीआर की सोसायटियों में आज कल कुत्ता संघर्ष चरम पर है.ये संघर्ष भी तीन तरह का है. पहला संघर्ष उन लोगों का जो है आवारा कुत्तों पर जान छिड़क रहे हैं. उनके लिए सोसायटी हो या गली मुहल्ला हर जगह वो उनके अधिकारों के लिए मरने मारने पर उतारू हैं. उनका कहना है कुत्ता किसी के लिए हानिकारक नहीं हैं , कुत्ता तभी हिंसक होता है जब कुत्ते को छेड़ा जाता है . दूसरी ओर कुत्तों से पीड़ित लोग तर्क देते हैं कि एनसीआर में कई बार ऐसी घटनाएं हुईं हैं जब अबोध बच्चों को कुत्तों ने शिकार बनाया है. इनमें आवारा कुत्ते भी हैं और पालतू भी. कई ऐसे विडियो इधर वायरल हुए जिसमें कुत्तों के झुंड ने एक नन्हे से बच्चे पर हमला बोल दिया. कुछ घटनाओं में तो बच्चों की मौत भी हो गई.ये बच्चे तो कुत्तों को छेड़ नहीं रहे थे.फिर ये हमलावर क्यों हो रहे हैं? इसका पता लगाना जरूरी है. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो आंकड़े बताएं हैं वो चिंताजनक हैं. 2020 में आवारा कुत्तों के काटने की संख्या 4.31 लाख थी. 2021 में यह 1.92 लाख और 2022 में 1.69 लाख हो गई है.घंटे के हिसाब से देखा जाए तो देश में हर घंटे करीब 19 लोग आवारा कुत्तों का शिकार बन रहे हैं. 

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तीन तरह के कुत्ता प्रेमी

 सोसायटियों में कुत्तों को लेकर तीन पक्ष में लोग बंट गए हैं. एक तो वो लोग हैं जो एक्टिविस्ट हैं जिनके लिए जान से भी प्यारे हैं कुत्ते और कुत्तों के अधिकार . इनकी संख्या बहुत कम है पर आश्चर्य यह है कि इनकी संख्या बहुत कम होने के बावजूद ये बहुसंख्यक कुत्ता विरोधियों पर भारी पड़ते हैं. दूसरा पक्ष उन लोगों का है जो कु्त्तों से सुरक्षा कारणों के चलते उन्हें सिविल सोसायटी से दूर करना चाहते हैं. इसमें एक पक्ष तीसरा भी है जो कुत्ते को पेट डॉग कहना पसंद करते हैं . उनके लिए उनका कुत्ता उनके बाल बच्चों जैसा ही है. उसे वो उसी तरह से प्यार करते हैं जिस तरह से कोई अपने बच्चों से प्यार करता है . पर इनके लिए आवारा कुत्ता कोई मसला नहीं है. उसके लिए इनके मन में प्यार हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है. समस्या है कि तीनों तरह के कुत्ता प्रेमी लोग कहीं न कहीं से परेशानी का सबब बन रहे हैं. 

कुत्तों को एंटी रैबीज वाले इंजेक्शन सही समय से नहीं लगाए जा रहे हैं. अस्पतालों में रैबीज के इंजेक्शन हैं नहीं. और इन कुत्तों का शिकार बनते हैं घरेलू काम करने वाली महिलाएं या सड़क पर चलने वाले वो लोग जिनके पास बाइक या कार से चलने के लिए पैसे नहीं है. हैरान करने वाली बात ये है कि जितने संगठन कुत्तों के अधिकार के लिए काम करने वाले हैं उसका पांच प्रतिशत भी गरीब लोगों की मदद करने वाले नहीं हैं.

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पेट डॉग को लेकर झगड़े

खुले में शौच को खत्म करने के लिए मशहूर सरकार खुले में आवारा या पालतू कुत्तों के शौच को रोकने में असमर्थ है. पिछले कुछ सालों में देश भर में स्वच्छता का अभियान चला और शहरों में क्या सुदूर देहातों में भी खुले में शौच से काफी हद तक रोक लगाने में सरकार कामयाब हुई है.पर आवारा कुत्तों और पालतू कुत्ते के शौच से पूरे दिल्ली एनसीआर में गंदगी बढ़ती जा रही है. पालतू कुत्तों को टहलाने के नाम पर गलियों में शौच कराया जाता है. बहुमंजिली इमारतों वाली सोसायटियों में शौच कराने के लिए सारे नियम कानून तोड़े जाते हैं. कुत्ते के मुंह में जाली वाला मास्क लगाना लोग पसंद नहीं करते. अगर किसी ने टोक दिया तो मार पीट की नौवत आ जाती है. अभी कुछ हफ्ते पहले ही नोएडा की एक सोसायटी के वायरल विडियो में लिफ्ट में डॉगी की मालकिन से एक बच्चे की मां से तु-तू ,मैं -मैं इसी के चलते होती दिख रही थी. कुत्ते में गले में उसका मास्क लटका हुआ था पर मालकिन सीधे अपने कुत्ते को मास्क लगाने से इनकार कर देती है. 

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