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मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त की नियुक्ति को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस की आपत्ति क्‍यों बेदम है?

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ज्ञानेश कुमार को भारत का नया मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया है, लेकिन सरकार के फैसले पर कांग्रेस सवाल उठा रही है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी का आरोप है कि नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन हुआ है - आखिर तथ्य से परे ऐसे बयान का मतलब क्या है?

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नये मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर विपक्ष के सवाल पर भी सवालिया निशान लगा हुआ है.
नये मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर विपक्ष के सवाल पर भी सवालिया निशान लगा हुआ है.

देश के नये मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार 19 फरवरी को कार्यभार ग्रहण करेंगे, और उसी दिन सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति से जुड़े एक मामले में सुनवाई भी होने वाली है.

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लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने ज्ञानेश कुमार की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के उल्लंघन का आरोप लगाया है. राहुल गांधी चाहते थे कि सरकार नियुक्ति के लिए मीटिंग को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई होने तक होल्ड कर ले, लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी बात की परवाह नहीं की. क्‍योंकि मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त राजीव कुमार का कार्यकाल 18 फरवरी को ही खत्‍म हो रहा है.

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए बने नए कानून के तहत यह पहली नियुक्ति थी. इस कानून के अनुसार सिलेक्‍शन पैनल में प्रधानमंत्री, पीएम के द्वारा नामित एक मंत्री और नेता प्रतिपक्ष शामिल होने का प्रावधान है. लिहाजा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बने इस पैनल की साउथ ब्लॉक में प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठक हुई थी. जिसमें गृह मंत्री अमित शाह और राहुल गांधी मौजूद रहे. राजीव कुमार के बाद सबसे सीनियर चुनाव आयुक्‍त ज्ञानेश कुमार का नाम पैनल द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजा गया था, जिस पर उन्‍होंने नियुक्ति की मुहर लगा दी. 

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ये नियुक्ति नये कानून के तहत हुई है, और खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस नियुक्ति को लेकर दायर की गई याचिकाओं को सुनवाई के लिए स्वीकार तो कर लिया है, लेकिन स्टे ऑर्डर जारी करने से पहले ही इनकार कर दिया था. 

मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति

विपक्ष की आपत्ति से अलग हटकर देखें तो मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति बिलकुल वैसे ही हुई है, जैसी परंपरा चली आ रही है. परंपरा यही रही है कि सबसे सीनियर चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिया जाता रहा है. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के बाद ज्ञानेश कुमार ही सबसे सीनियर चुनाव आयुक्त थे - और 18 फरवरी को राजीव कुमार के रिटायर होने के अगले ही दिन ज्ञानेश कुमार कार्यभार ग्रहण कर रहे हैं.

नियुक्ति में खास बाद ये है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 के तहत ऐसा पहली बार हो रहा है. मार्च, 2024 में इस कानून के तहत ही चुनाव आयुक्त के रूप में ज्ञानेश कुमार और एसएस संधू की नियुक्ति हुई थी. दोनो आयुक्तों की नियुक्ति अनूप चंद्र पांडे की रिटायर होने और अरुण गोयल के इस्तीफे के बाद की गई थी. 

ये कानून भी सुप्रीम कोर्ट के उसी आदेश के बाद बना, जिसका हवाला विपक्ष दे रहा है, और दिसंबर, 2023 में ये कानून लागू भी कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च, 2023 को एक आदेश जारी कर मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले पैनल में मुख्य न्यायाधीश या उनके प्रतिनिधि को शामिल किये जाने का आदेश दिया था. बाद में सरकार ने नियुक्ति को लेकर नया कानून बना दिया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश को पैनल से बाहर करके उनकी जगह प्रधानमंत्री की तरफ से किसी केंद्रीय मंत्री को नॉमिनेट किये जाने का प्रावधान कर दिया - और उसी के तहत मोदी और राहुल गांधी के अलावा पैनल में अमित शाह शामिल हुए थे. 

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सुप्रीम कोर्ट में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले नये कानून को चुनौती दी गई है. और उसी बात को लेकर प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर कांग्रेस नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी कहते हैं, अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर तीन ऑर्डर पास किये हैं... और अगली सुनवाई 19 फरवरी को होनी है. राहुल गांधी की बात को आगे बढ़ाते हुए सिंघवी भी बैठक को स्थगित करने की मांग कर रहे थे, मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन को लेकर कांग्रेस का रुख बड़ा स्पष्ट है.

राहुल की आपत्ति केवल राजनीतिक है!

बताते हैं राहुल गांधी मीटिंग से पहले ही उठ कर चले आये थे. निकलने से पहले राहुल गांधी ने पैनल को एक असहमति पत्र भी दिया था. जो असहमति पत्र कांग्रेस नेता ने सौंपा है, उसमें सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. ये पत्र राहुल गांधी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल X पर भी शेयर किया है.

सुप्रीम कोर्ट के जिस ऑर्डर का राहुल गांधी ने हवाला दिया है, वो मार्च, 2023 का है, और उस फैसले के बाद ही कानून बना है. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से ये अनिवार्य कर दिया गया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त के सेलेक्शन पैनल में प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश होंगे, लेकिन जो कानून बना उसमें मुख्य न्यायाधीश को पैनल में जगह नहीं दी गई, और उनकी जगह प्रधानमंत्री की तरफ से नामित केंद्रीय मंत्री का प्रावधान रख दिया गया. 

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सुप्रीम कोर्ट ने तभी बोल दिया था कि आदेश तब तक कायम रहेगा जब तक कि संसद कानून न बना दे - और जब संसद ने कानून बना दिया तो सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर खत्म भी हो गया, और सुप्रीम कोर्ट की कही बात भी मान ली गई.

देखें तो राहुल गांधी ने महज एक कोरा राजनीतिक बयान जारी किया है. राजनीतिक बयान किसी भी दल का राजनैतिक स्टैंड होता है, उसका फैक्ट या ऐसी किसी चीज से कोई सीधा वास्ता होना भी जरूरी नहीं होता. देश में हर रोज ऐसे राजनीतिक बयान जारी होते रहते हैं.

अब अगर राहुल गांधी के नजरिये से देखने की कोशिश करें, तो शाहबानो प्रकरण और एससी-एसटी एक्ट पर तत्कालीन केंद्र सरकारों का जो रुख सामने आता है, ठीक वही चीज चुनाव आयुक्त की नियुक्ति वाले कानून को लेकर समझ में आती है. 

शाहबानो केस में भी ऑर्डर तो सुप्रीम कोर्ट ने ही जारी किया था, और तत्कालीन सरकार ने उसे अपनी संवैधानिक ताकत से पलट दिया था. तब राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ही प्रधानमंत्री थे, और कांग्रेस की सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक पर संरक्षण कानून), 1986 बना दिया था.
 
और यही काम चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में भी हुआ है - अगर राहुल गांधी के नजरिये से देखें तो शाहबानो केस में भी सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का उल्लंघन माना जाएगा, लेकिन क्या ऐसा कहा भी जा सकता है? 

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और क्या ज्ञानेश कुमार की मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है?

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