लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर पिछले 2 साल से यूपी की राजधानी लखनऊ सियासी अखाड़ा बन रही है. उत्तर प्रदेश सरकार की थोड़ी सी अदूरदर्शिता समाजवादी पार्टी के मुखिया पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को हर 11 अक्टूबर को हीरो बना देती है. जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल सेंटर को 10 अक्टूबर की शाम से ही ऊंचे-ऊचे टिन की चादरों से घेरने का काम शुरू हो गया था. ताकि समाजवादी पार्टी के नेता यहां आकर जेपी की जयंती पर उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण न कर सकें. जाहिर है कि इसके विरोध में अखिलेश यादव ने वहां पहुंचकर अपने विडियो सोशल मीडिया पर डालने शुरू कर दिए.11 अक्टूबर को सुबह से अखिलेश यादव को एक तरीके से उनके घर में ही घेर लिया गया था. अखिलेश यादव भी बार-बार कहते रहे कि उन्हें जेपी की जयंती मनाने से कोई नहीं रोक सकता. सपा कार्यकर्ताओं के हंगामे के बाद यूपी पुलिस ने अखिलेश के घर के बाहर जेपी की प्रतिमा मंगवाई , जिस पर सपा मुखिया ने अपने समर्थकों के साथ माल्यार्पण किया.देश की राजनीति में यह पहली बार होगा जब किसी राज्य सरकार ने मुख्य विपक्षी नेता को उनके घर के बाहर किसी महापुरुष की जयंती पर उसकी प्रतिमा ही उनके घर भेज दी हो.सोच कर देखिए कितना हास्यास्पद लगता है.
1-जयप्रकाश नारायण किसके हैं?
पिछले एक दशक में भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के कई आईकॉनिक लीडर्स को अपने खेमें में लाने में सफल हुई है. सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, नरसिम्हाराव आदि की जितनी जय जयकार कांग्रेस नहीं करती है, उससे कहीं ज्यादा बीजेपी करती है. जिस इमरजेंसी को आज बीजेपी संविधान हत्या दिवस बोल रही है उसका सबसे प्रबल विरोध करने वाले जयप्रकाश नारायण ही थे. जय प्रकाश नारायण की एक आवाज पर पूरे देश में इंदिरा गांधी और इमरजेंसी के खिलाफ जो आंधी उठी थी, उसकी तीव्रता अंग्रेजों के खिलाफ हुए भारत छोड़ो आंदोलन से किसी भी कीमत पर कम नहीं था. देश में पहली बार कांग्रेस हटाओ का नारा भी जेपी ने ही दिया था.उनके ही आंदोलन ने देश को पहली बार गैरकांग्रेसी , गैर गांधी वंशी सरकार बनाने का मौका दिया. जिस सरकार में भारतीय जनता पार्टी (तब की जनसंघ) भी शामिल थी.
पर यूपी में आज जो माहौल है, उससे लगता है कि अगर अखिलेश यादव ने एक मूर्ति पर जाकर माल्यार्पण कर दिया तो सूबे की कानून व्यवस्था पर गाज गिर जाएगी. शासन-प्रशासन की मूर्खता ही है कि आज पूरा दिन नैशनल मीडिया पर अखिलेश यादव छाए हुए हैं. लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से इस मुद्दे पर एक बेहद हास्यास्पद पत्र जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि अभी जेपीएनआईसी का काम अधूरा है और बारिश के कारण वहां पर जीव-जंतु भी हो सकते हैं, इसलिए सपा मुखिया को जाने नहीं दिया जा सकता है. आम जनता सवाल पूछ रही है आखिर जयप्रकाश नारायण की मूर्ती पर अखिलेश के माल्यार्पण से उत्तर प्रदेश में क्या बिगड़ जाएगा. एक्स पर लखनऊ के तमाम बीजेपी समर्थक पत्रकार भी उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले पर अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं.
2-पिछले सात सालों से एक महान नेता के नाम पर बनी बिल्डिंग के काम को रोककर सरकार ने क्या हासिल किया
सपा शासन काल में साल 2012 में इंडिया हैबिटेट सेंटर की तर्ज पर जयप्रकाश नारायण अंतराष्ट्रीय केंद्र का निर्माण शुरू हुआ था, साल 2017 तक इस पर करीब 860 करोड़ रुपये खर्च हो चुके थे. 17 मंजिल की इस इमारत में पार्किंग, जेपी नारायण से जुड़ा एक म्यूजियम, बैडमिंटन कोर्ट, लॉन टेनिस खेलने की व्यवस्था है. साथ ही यहां ऑल वेदर स्वीमिंग पूल भी बनाया गया है. इसके अलावा करीब 100 कमरों का एक बड़ा गेस्टहाउस भी तैयार किया गया है. 2017 तक जेपी सेंटर का करीब 80 फीसदी काम पूरा हो गया था. योगी सरकार बनने पर इसका निर्माण रुक गया. निर्माण कार्य में गड़बड़ी मिलने पर योगी सरकार ने जांच बैठा दी.
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का आरोप है कि योगी सरकार जेपी सेंटर को बेचना चाहती है. हालांकि जांच और सियासत के चलते अब जेपी सेंटर खंडहर में तब्दील हो चुका है. परिसर में झाड़ियां उग आई हैं. सात सालों में हुई जांच में अभी तक कुछ हासिल नहीं हुआ है. अगर भ्रष्टाचार किया गया तो कम से कम कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज होनी चाहिए थी. या कम से कम जांच के लिए सीबीआई को सौंपना चाहिए था. आखिर मध्यवर्ग के पॉकेट से गए टैक्स से बने इस संस्थान को रद्दी के टोकरी में फेंकने से राज्य के नागरिकों को क्या लाभ होने वाला है.
3-सरकार माल्यार्पण से रोक कर हर साल अखिलेश को हीरो बनने का मौका देती है
कल्पना करिए कि अगर अखिलेश यादव को सरकार ने माल्यार्पण करने से रोका नहीं होता तो क्या अखिलेश आज दिन भार लाइम लाइट में रहते. 10 अक्टूबर की शाम जेपी की जयंती से पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव सेंटर पहुंचे तो वह टिन शेड से ढकने का काम किया जा रहा था. इसे देख अखिलेश यादव सरकार पर हमलावर हो गए. पिछले साल जेपी की जयंती पर अखिलेश यादव अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ जेपी सेंटर के अंदर गेट पर चढ़कर घुसने की कोशिश किए थे. उस समय भी भारी पुलिस फोर्स ने उन्हें रोकने की कोशिश की थी. इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. आज भी दिन भार अखिलेश के घर के बाहर मीडिया का जमावड़ा लगा हुआ है.
4- जेपी की विरासत और अखिलेश यादव में जमीन आसमान का अंतर
सरकार अखिलेश यादव को रोकने के बजाय जयप्रकाश नारायण पर समाजवादी पार्टी से भी बड़ा आयोजन करके अखिलेश को लोकनायक के नाम पर राजनीति को फीका कर सकती थी. वैसे भी अखिलेश यादव की पार्टी का नाम ही सिर्फ समाजवादी पार्टी है. उनके काम सभी समाजवादियों से अलग होते हैं. जिस नेता ने कांग्रेस हटाओ का नारा दिया आज खुद को उनका समर्थक बोलने वाले अखिलेश आज कांग्रेस के साथ ही हैं. लोकनायक लोकतंत्र में परिवार वाद, वंशवाद और जातिवाद के घोर विरोधी थे. जेपी के नेतृत्व मे ही चले जातिवाद के खिलाफ चले आंदोलन में यूपी और बिहार में लाखों लोगों ने अपने नाम के आगे से जाति संबंधित टाइटिल लगाना बंद कर दिया था. नीतीश कुमार, सुशील कुमार, लालू प्रसाद आदि के नाम के आगे टाइटिल इसी नहीं दिखता .पर यहां तो अखिलेश यादव ने जेपी के सिद्धांतों के खिलाफ जाकर अपने परिवार के करीब 7 लोगों को संवैंधानिक जिम्मेदारियों वाले पद पर बिठाया है. नाम के आगे जाति की टाइटिल इस तरह चलती है कि सत्ता से बाहर आने के बाद टाइटिल वाली जाति के नाम पर ही उनकी राजनीति टिकी हुई है.
5-अखिलेश और मायावती के समय हुए काम पर टेढ़ी नजर
उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम मायावती की सरकार में बने हुए काम हों या पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समय हुए काम हों सब पर सरकार की तिरछी नजर है. मायावती के समय बने दलित प्रेरणा पार्कों मरम्मत और रख ऱखाव न होने के चलते धीरे-धीरे खराब हो रहे हैं. दिक्कत यह है कि बीजेपी सरकार चाहती है दलित उन्हें वोट दें पर सरकार की यह शर्त है कि मायावती के समय बने पार्क ,चाहे लखनऊ के हों या नोएडा के उनकी मरम्मत सरकार नहीं करवाएगी. यही हाल अखिलेश यादव के ड्रींम प्रोजेक्ट लखनऊ गोमती रिवर फ्रंट हो या जेपीएनआईसी की है. सरकार इन संस्थानों को घोटाले के आरोप में बंद तो कर दिया पर न जांच हुई और न कोई गिरफ्तारी हुई . न ही इस तरह के कोई नए काम की शुरूआत ही हुई है.हां सरकार ने एक बात में एकरूपता दिखाई है कि विचारधारा के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करेंगे.इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है लखनऊ में दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर बनने वाला पार्क. इसका भी काम कई साल हो गए अभी तक पूरा नहीं हो पाया है.