बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए की सफलता का आधार बहुत कुछ सीएम कैंडिडेट पर निर्भर होगा. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू को यह कतई बर्दाश्त नहीं होगा कि सीएम कैंडिडेट किसी और को बनाए जाए. जाहिर है कि यह स्थिति उनके लिए बहुत शर्मिंदगी वाली होगी. और ऐसा होना बीजेपी के लिए भी खतरे से खाली नहीं है. गृहमंत्री अमित शाह ने कुछ महीने पहले आजतक एजेंडा में यह कहकर सनसनी फैला दी थी नीतीश कुमार के सीएम कैंडिडेट होने को लेकर फैसला दोनों ही पार्टियों की बैठक में बाद में किया जाएगा. अब एक बार फिर बिहार के दौरे पर पहुंचे अमित शाह की बात को समझना बहुत मुश्किल है. शाह ने नीतीश कुमार के नाम पर एक तरह से मुहर लगा दी है पर दूसरे तरीके से एनलसिस करने पर बात कुछ और समझ में आती है. आइये देखते हैं कि असल में बीजेपी चाहती क्या है?
अमित शाह ने सीएम पद की दावेदारी के बारे क्या कहा?
अमित शाह ने अपने बिहार के दौरे में एक बात तो स्पष्ट कर दी कि चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. पर यह बात कि चुनाव जीतने के बाद सीएम भी उन्हें ही बनाया जाएगा इस पर प्रकाश नहीं डाला. हालांकि पटना के बापू सभागार में सहकारिता विभाग के एक कार्यक्रम मे गृहमंत्री ने कहा कि 2025 में बिहार में मोदी जी और नीतीश जी के नेतृत्व में बिहार में एक बार फिर से एनडीए की सरकार बनाइये और भारत सरकार को बिहार के विकास का एक और मौका दीजिए. शाह ने यह भी कहा कि बिहार को बदलने में नीतीश कुमार की अहम भूमिका रही है. शाह की इन बातों की सीधा अर्थ है कि नीतीश को किनारे लगाने के बारे में नहीं सोचा जा रहा है. दूसरे शब्दों में नीतीश के नाम पर कोई विवाद नहीं है. पर मोदी जी और नीतीश जी दोनों का नाम लेने और दूसरे खुलकर यह न कहने कि चुनाव जीतने पर नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनेगी, लोगों में संदेह बरकरार रह गया. हालांकि मोदी का नाम पीएम होने के नाते लेने का कोई दूसरा अर्थ नहीं लगाना चाहिए. पर राजनीति संभावनाओं का खेल है इसलिए हर बात के कई अर्थ निकाले जाते हैं.
बिहार में आप की दिल्ली वाली स्ट्रैटेजी पर बीजेपी का फोकस
इसमें कोई दो राय नहीं है कि नीतीश की बढ़ती उम्र और उनकी तबीयत की चिंता को बीजेपी समझ रही है. बीजेपी ये मान कर भी चलती है कि नीतीश की इस स्थिति का फायदा विपक्ष हर हाल में उठाना चाहेगा. ऐसी स्थिति में बीजेपी अगर खुलकर नीतीश कुमार को नेता मान लेती है तो इसमें पार्टी का कई तरह से नुकसान हो सकता है. नीतीश के सीएम कैंडिडेट घोषित करते ही बीजेपी के समर्थक और कार्यकर्ता निष्क्रिय हो सकते हैं. ऐसी दशा में वे ढीले पड़ सकते हैं. ऐसी स्थिति में जो नीतीश के नेतृत्व से नाराज बीजेपी के वोटर हैं वो सीधे-सीधे प्रशांत किशोर की ओर मूव कर सकते हैं. हालांकि बीजेपी के लिए यह भी फायदेमंद सौदा ही है. बीजेपी ये चाहती है कि एंटी इंकंबेंसी वाले वोट किसी भी सूरत में पूरे के पूरे आरजेडी की ओर न जाए. दिल्ली में यही रणनीति आम आदमी पार्टी ने अपनाई थी. इसलिए कांग्रेस के साथ आप ने समझौता नहीं किया. वहां भी यही तर्क था आम आदमी पार्टी से नाराज वोटर्स बीजेपी की ओर पूरी तरह न जाएं इसके लिए कांग्रेस के रूप जनता के सामने एक और विकल्प होने से पार्टी को फायदा होगा. ठीक उसी तरह बीजेपी बिहार में भी सोच रही है. शायद यही कारण है कि प्रशांत किशोर को लेकर बीजेपी परेशान नहीं है.
बिहार में महाराष्ट्र वाली स्ट्रैटेजी पर काम होगा
जिस तरह महाराष्ट्र में बीजेपी ने पूरे चुनाव के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को नेता बनाए रखा कुछ उसी तर्ज पर बिहार में चुनाव लड़ने के मूड में है पार्टी. आपको याद होगा महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान एक बार एक स्टेज पर देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे एक साथ बैठे हुए थे. पत्रकारों ने फडणवीस से पूछा कि चुनाव परिणाम आने के बाद सीएम कौन बनेगा. तो फडणवीस ने एकनाथ शिंदे की ओर इशारा करके कहा था हमारे सीएम तो यहीं हैं. पर परिणाम आने के बाद ऐसा हुआ नहीं . एकनाथ शिंदे अपना रोना लेकर रोते रहे पर पार्टी को कोई असर नहीं पड़ा. अंत में एकनाथ शिंदे डिप्टी सीएम बनने को तैयार हो गए. आज की तारीख में बीजेपी बिहार में शायद इसी रणनीति पर काम कर रही है. चुनाव परिणाम आने के बाद नीतीश कुमार डिप्टी सीएम नहीं बनेंगे , पर हो सकता है कि नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार को डिप्टी सीएम बनाया जाए. पार्टी चाहती है कि चुनाव में सभी लोग एकजुट होकर मेहनत करें.