scorecardresearch
 

कौन बनेगा बिहार का बॉस? दिल्ली चुनाव नतीजे ने दिया है इशारा, और सबक भी

दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम का असर बिहार विधानसभा चुनावों पर भी पड़ना वाला है. कांग्रेस और आरजेडी के बीच जबरदस्त मचमच होने वाली है. जेडीयू और बीजेपी के बीच भी सीटों के लिए मारामारी कम नहीं होगी. और इस बार तो प्रशांत किशोर भी मैदान में हैं.

Advertisement
X
तेजस्वी यादव और राहुल गांधी
तेजस्वी यादव और राहुल गांधी

दिल्ली में विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुका है. दिल्ली में एनडीए ने विपक्ष को धूल चटाने के बाद अगले रणक्षेत्र के लिए हुंकार भर दी है. अगला मुकबला बिहार की धरती पर होने वाला है. कांग्रेस ने भी बिहार पर ध्यान केंद्रित किया है. इसी के तहत 5 फरवरी को जब दिल्ली में मतदान हो रहा था, राहुल गांधी एक दिन के दौरे पर पटना पहुंचे थे. यह 18 दिनों में उनकी दूसरी बिहार यात्रा थी. केंद्रीय बजट में बिहार के लिए कई घोषणाएं करके एनडीए ने पहले ही बिहार मिशन के लिए अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं. इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 24 फरवरी को बिहार के दौरे पर जा सकते हैं. बताया जा रहा है कि पीएम बिहार में कुछ विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे और एक किसान सभा को संबोधित करेंगे. पर चुनाव जीतने के लिए सिर्फ प्रचार करना ही काफी नहीं होता है. चुनाव जीतने के लिए रणनीति सबसे अहम होती है. दिल्ली विधानसभा चुनावों के परिणाम का असर बिहार के सभी राजनीतिक दलों पर होने वाला है. आइये देखते हैं बिहार की 243 सीटों में से 225 सीटें का जादुई नंबर कौन हासिल करने के लिए कौन सी रणनीति पर काम करने जा रहा है?

Advertisement

1-आरजेडी के लिए क्या है संकट?

बिहार में इस साल नवंबर में चुनाव होने की संभावना है. आरजेडी के लिए सबसे बड़ा प्लस पॉइंट यह है कि राज्य में एंटी इंकंबेंसी जबरदस्त है. पर मुश्किल यह है कि क्या  आरजेडी नेता  तेजस्वी यादव उसे भुना सकेंगे.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐतिहासिक पांचवें कार्यकाल के लिए मैदान में उतरने के लिए रणभेरी बजा चुके हैं. अब देखना है कि तेजस्वी यादव दो दशकों की सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने के लिए क्या करते हैं. क्यों कि बीजेपी अपने सहयोगी जेडीयू के साथ गठबंधन में है और  महागठबंधन जिसमें कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं की तुलना में मजबूत स्थिति में मानी जा रही है. महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में कठिन चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद एनडीए का हौसला बुलंद है.

दरअसल आरजेडी के साथ संकट यह है कि वह कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनावों में जरूरत से ज्यादा सीट देखकर उसका नुकसान भुगत चुकी है. कायदे से देखा जाए तो दिल्ली में हुए हश्र के बाद कांग्रेस को बिहार में ज्यादा सीटों की डिमांड भी नहीं रखनी चाहिए. पर अगर कांग्रेस अलग से चुनाव लड़ती है तो जिस तरह अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को दिल्ली में नुकसान हुआ है उसी तरह का नुकसान बिहार में आरजेडी को भी हो सकता है.2020 के बिहार चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ 19 सीटें जीत सकी थी, जबकि आरजेडी ने 144 सीटों में से 80 जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. 

Advertisement

2-कांग्रेस क्या अपनी दिल्ली वाली यात्रा जारी रखेगी?

जिस तरह दिल्ली में कांग्रेस ने अपना नुकसान की चिंता न करते हुए अपने वोट बैंक पर ध्यान दिया है क्या वैसा ही कुछ वो बिहार में भी करने वाली है. जिस तरह कांग्रेस अपनी रणनीति बदलती हुई दिख रही है उससे तो यही लगता है कि बिहार में भी कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ सकती है. कांग्रेस को यह समझ में आ गया है कि अगर उसे अपनी पुराना दौर वापस लाना है तो जिन पार्टियों का जन्म और विकास कांग्रेस के वोट पर हुआ है उसे पहले खत्म करना होगा. इसके लिए कांग्रेस ने यह मान लिया है कि बीजेपी को रोकने के चक्कर में वो अपनी बैंड नहीं बजवाएगी. दिल्ली वाली रणनीति अगर कांग्रेस अपनाती है तो आरजेडी और वाम दलों के लिए मुश्किल होनी तय है. जिस तरह पिछले महीने राहुल गांधी अपनी बिहार यात्रा पर लालू परिवार के घर में बिहार की जाति जनगणना को फर्जी बता दिया था उससे तो यही लगता है कि कांग्रेस यहां अपना अलग रास्ता अख्तियार कर सकती है. गौरतलब है कि बिहार में सबसे पहले जाति सर्वे कराने का श्रेय तेजस्वी यादव लेते रहे हैं. पर राहुल गांधी उनके घर में दही चूड़ा खाने गए और लालू परिवार को आईना दिखा दिया था.

Advertisement

3-बीजेपी को क्या बड़ा भाई मानेगी जेडीयू?

दिल्ली चुनाव के नतीजों का असर एनडीए में भी सीट बंटवारे में देखने को मिल सकता है. लगातार तीन जीत के बाद, बीजेपी एनडीए में अधिक सीटों की मांग कर सकती है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था और सिर्फ 43 सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ने 110 सीटों में से 74 पर जीत दर्ज की थी. यह बीजेपी के लिए एक मजबूत तर्क है. पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कम सीटों के बावजूद दोनों ही गठबंधनों में अपनी स्वीकार्यता साबित कर चुके हैं. यही कारण है कि नीतीश कुमार को चाहकर भी बीजेपी अलग नहीं कर पाती है. पर निश्चित है कि इस बार बीजेपी इस बार अधिक सीटों की डिमांड करेगी.इंडियन एक्सप्रेस अपने सूत्रों के आधार पर लिखता है कि जेडीयू भी सीट बंटवारे में कम सीट पर तैयार नहीं होने वाली है. क्योंकि उसने पिछले साल के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन किया था. तब दोनों दलों ने 12-12 सीटें जीती थीं, लेकिन जेडीयू की स्ट्राइक रेट बेहतर थी.

4-नीतीश कुमार की रणनीति पर रहेगी सबकी नजर

नीतीश कुमार के बारे में बार-बार उनके स्वास्थ्य को लेकर अटकलें लगाई जाती रहती हैं. पर जिस तरह से उन्होंने पिछले 2 महीनों से  यात्राएं शुरू की हैं वो आश्चर्यजनक है. 23 दिसंबर 2023 को उन्होंने प्रगति यात्रा की शुरुआत की थी, जिसके तहत वे पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं. इसके अलावा, वे विशेष समूहों को साधने के लिए ‘नारी शक्ति रथ यात्रा’ और ‘कर्पूरी रथ यात्रा’ जैसे अलग-अलग अभियान भी चला रहे हैं. जेडीयू ‘अंबेडकर रथ यात्रा’ भी निकाल रही है, जो सभी जिलों को कवर कर दलितों से संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रही है. इसी तरह, मुसलमानों को लुभाने के लिए ‘अल्पसंख्यक रथ’ भी चलाया जा रहा है.

Advertisement

नीतीश कुमार के लिए इंडिया गठबंधन का कमजोर होना बहुत फायदेमंद होने वाला है. पर बार-बार एनडीए और महागठबंधन के बीच पाला बदलने के कारण उनकी साख पर असर पड़ा है. पर यह उनकी इस समय यूएसपी भी है. बीजेपी आज भी उनकी इसी कला के चलते उनके खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं कर पाती है. हालांकि बीजेपी के साथ रहने का फायदा उन्हें भी मिलता है. इस बार के विधानसभा चुनावों में भी मिलने वाला है. पिछले साल के केंद्रीय बजट में केंद्र सरकार ने बिहार के लिए करीब 70,000 करोड़ रुपये के विभिन्न इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली और बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं के लिए आवंटित किए थे. इस बार के बजट में बिहार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ‘मखाना बोर्ड’ और बाढ़ नियंत्रण के लिए ‘कोसी नहर परियोजना’ और ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट आदि की घोषणा को वो अपनी उपलब्धि बता सकते हैं.

5-प्रशांत किशोर की पार्टी पर आप का प्रभाव

प्रशांत किशोर की जनसुराज बहुत तेजी से बिहार के गांव -गांव में अपनी जगह बना रही है. प्रशांत किशोर में सभी को भविष्य नजर आ रहा है. ऐसे समय में जब बिहार में मजबूत नेतृत्व का अभाव दिख रहा है ,प्रशांत किशोर के लिए बहुत बड़ा मौका है. पर दिल्ली विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल को मिली पराजय में प्रशांत किशोर की पार्टी के लिए शुभ नहीं है. प्रशांत किशोर भी अरविंद केजरीवाल की तरह परंपरागत राजनीति से अलग नेतृत्व देने की बात कर रहे थे. लोग उनकी तुलना अरविंद केजरीवाल से ही करते थे. प्रशांत किशोर को जनता के सामने यह साबित करना होगा कि वो अरविंद केजरीवाल से कितने अलग हैं.

Live TV

Advertisement
Advertisement