दलित संगठनों ने आज महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया था. इस बंद के दौरान कई जगहों पर तोड़ फोड़, हिंसा और आगज़नी की छिटपुट घटनाएं हुई हैं. कम से कम दोपहर तक तो दलित संगठन बंद को कुछ हद तक सफल बनाने में कामयाब रहे. लेकिन भीमा कोरेगांव की घटना और उसके बाद सड़कों पर आए दलित संगठनों के गुस्से ने कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. सवाल ये कि क्या वाकई बीजेपी शासित राज्यों में दलितों पर ज़्यादा अत्याचार हो रहे हैं, जैसा कांग्रेस आरोप लगा रही है ? या कुछ घटनाओं में राजनीतिक फायदा तलाश कर कांग्रेस - बीजेपी पर निशाना साधने के लिए दलित संगठनों के गुस्से को हवा दे रही है , जैसा बीजेपी का आरोप है. 200 साल पहले हुए एक युद्ध की याद में शौर्य दिवस मनाने के लिए भीमा कोरेगांव में महार समुदाय के लोग हर साल एक जनवरी को इकट्ठा होते हैं. हर साल ये कार्यक्रम शांति पूर्वक हो जाता है. फिर इस साल ऐसा क्या हुआ कि शौर्य दिवस के कार्यक्रम से उठी चिंगारी महाराष्ट्र के कई शहरों तक पहुंच गई ? महाराष्ट्र पुलिस की शुरूआती जांच में दो हिंदूवादी संगठनों के नाम आए हैं, जबकि हिंदूवादी संगठनों का आरोप है कि कांग्रेस समर्थित गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी और जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद की वजह से तनाव हुआ.