ये कहानी 80 के दशक की है. कश्मीर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाला एक लड़का जो सिविल सर्विसेज़ में जाने के ख्वाब देखता था, पढ़ाई करते करते जमात ए इस्लामी का मेंबर बना और पढ़ाई पूरी करने के बाद –सिविल सर्विसेज का सपना छोड़ कर, मदरसे में इस्लामी टीचर बन गया. औरतों को बुरका पहनने और पाकिस्तान के समर्थन में लोगों को सड़क पर उतरने के लिए उकसाने वाले इस शख्स ने, 1987 में श्रीनगर की अमीरा कदल सीट से चुनाव लड़ा फिर हार गया. हिंसा पर उतारू हो गया और सरकार ने उठा कर उसे जेल में डाल दिया. दो साल बाद जब वो जेल से निकला – तो वो यूसुफ शाह से सैयद सलाउद्दीन बन चुका था. हिजबुल मुजाहिद्दीन का सरगना. जिसने जम्मू कश्मीर में 1990 से शुरू हुई हिंसा की खूनी दास्तान लिखी. जिसके बंदूक उठाने के बाद, कश्मीर की सड़कें खून से रंग गईं और वहां हिंदुओं का कत्लेआम मच गया. भारत के खिलाफ सलाउद्दीन की ये जंग, आज भी जारी है.