पिछले चालीस दिन में कई दफे आपने सैकड़ों की तादाद में घर वापसी के लिए बेचैन मज़दूरों की तस्वीरें टीवी पर देखी होंगी. कभी रेलवे स्टेशन पर डंडे खाते. कभी सड़क किनारे फुटपाथ पर बीवी बच्चों के साथ बैठे पैरों को सहलाते. कभी झुंड के झुंड बना कर तेज़ रफ्तार में बिना किसी भाव के, हज़ारों हज़ार किलोमीटर दूर जाने की हकीकत जानते हुए भी लगातार पैदल चलते जाते. हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में सरकारें गांधी जी का जंतर हर दफ्तर में टांग कर रखती हैं. गांधी जी ने कहा था कि जो भी तुम करने जा रहे हो, उसे करने से पहले सोचो कि जो तुम करने जा रहे हो उससे सबसे गरीब और कमज़ोर आदमी पर क्या फर्क पड़ेगा. फिर भी इस देश में गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप और अपराध है? आखिर इन सोलह लोगों की मौत का ज़िम्मेदार कोई तो होगा?