संसद अगर इसी में उलझ जाए कि विजय माल्या को भगाया किसने और 9 हजार करोड दिए किसने और इशरत आंतकवादी थी या नहीं या फिर एनकाउंटर फर्जी था या नहीं. तो यह जवाब हर नेता को परेशान कर सकता है कि जनता के साथ सरकार या नेताओं के सरोकार इसीलिये जुड़ नहीं पा रहे हैं क्योंकि सत्ता और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप से आगे निकल नहीं पा रहा है.