10 तक में बात उस गुरु की जिसकी बात मौजूदा वक्त में कौन-किस रूप में करता है, यह देखने-समझने की बात है. उसे राष्ट्रपति भवन में सम्मान नहीं दिया है, उसकी पहचान कुछ भी नहीं है. वो नहीं चाहता कि किसी को डॉक्टर या इंजीनियर बना दे, वो उन्हें इंसान बनाना चाहता है. अमृतसर में नंगली गांव के एम-रियल स्कूल में गरीब बच्चों को पढ़ाता-समझाते हैं मिथुन कुमार. मिथुन के पिता रिक्शा चलाते हैं. मां घरों में बर्तन मांजती है. खुद मिथुन एक ढाबे पर काम करते हैं. इस देश में करोड़ों बच्चे स्कूल तक नहीं पहुंच पाते, क्योंकि मां-बाप के पास इतने भी पैसे नहीं होते कि उनकी कॉपी-पेंसिल का खर्च उठा सकें. मिथुन को यह दर्द मालूम है. देश में शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचा जर्जर है और सरकारें फेल हैं-ये सच है, लेकिन इसी सच के बीच मिथुन कुमार जैसे लोग भी हैं-जो सीमित संधाधनों के बीच शिक्षा की अलख जगा रहे हैं.