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...क्योंकि बनारस जैसा था, वैसा ही रहेगा

...क्योंकि बनारस जैसा था, वैसा ही रहेगा

बनारस की गंगा-जमनी तहजीब पर बीते 72 घंटों के दौर में सियासी बिसात बिछी. पहली बार बनारसी पान की महक, अध्यात्म का सुकुन, मंदिरों के घंटे की आवाज में आजान की मिठास का संगम, चाय के ठिकानों पर अड्डेबाजी और बनारसी अल्हड़पन तले बहस के हर मुद्दे को पीछे छोड़ दिया.जिस शहर के हर कोने को शिव ने भी मुक्ति द्वार माना. उस शहर के मोहल्ले दर मोहल्ले और गलियों को रौंदते नेताओं ने मुक्ति नहीं सत्ता सुकुन पाला. '10 तक' में देखें तीन दिनों में बनारस पर कितना सियासी रंग चढ़ा.

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